मथुरा मूर्ति-लेख; गुप्त सम्वत् १३५ ( ४५४ ई ० )

भूमिका

मथुरा मूर्ति-लेख मथुरा-कारागार के निकट स्थित टीले से प्राप्त बुद्ध की एक खड़ी बुद्ध प्रतिमा के पादासन पर अंकित है सम्प्रति केवल पादासन और उसके ऊपर का कुछ ही भाग उपलब्ध है जिसमें केवल चरण-भाग और उसके बीच बैठी एक छोटी सी आकृति है। सम्भवतः यह अब लखनऊ संग्रहालय में है। इस लेख को पहले जे० डाउसन ने प्रकाशित किया; फिर एलेक्जेंडर कनिंघम ने इस लेख का अपना पाठ प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् जे० एफ० फ्लीट ने इसे अपने Corpus Inscriptionum Indicarum में संकलित किया है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- मथुरा मूर्ति-लेख [ Mathura Buddha Idol Inscription ]

स्थान :- मथुरा, उत्तर प्रदेश

भाषा :- संस्कृत

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- गुप्त सम्वत् १३५ ( ४५४ ई० ), कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल

विषय :- विहारस्वमिनी द्वारा भगवान बुद्ध की मूर्ति के निर्माण की विज्ञप्ति।

मूलपाठ

१. संवत्सर शते पंचस्त्रिंशोत्तरतमे १००[+]३०[+]५ पुष्यमासे दिवसे विंशे दि २० [।] देयधर्मोऽयमं विहारस्वमिन्या

२. देवतायाः॥ यदत्र पुण्यं तद्भवतु मातापित्रोः सर्व्वसत्वानाञ्च अनुत्तर-ज्ञानाप्तये॥

३. सौभाग्यं प्रतिरूपता गुणवती कीर्तिस्सपत्नक्षयः श्रीमतो विभवा भवाः सुखफला निर्वाणमंते शिवम्

४. अस्ताब्धानि(?) भवन्ति दाननिरतौ चित्तं नियोज्यैकदा [ …….. — — …… ] विचरण-[ …. …. ] धियां[ — — … … ]याम् [॥]

हिन्दी अनुवाद

संवत्सर १३५ पुष्य मास दिन २०। यह देव [मूर्ति] विहारस्वामिनी का धर्मदान है। इससे जो भी पुण्य [लाभ] हो वह सब माता-पिता तथा समस्त प्राणियों के परम-ज्ञान के निमित्त [अर्पित है]। सौभाग्य, प्रतिरूपता, गुण, कीर्ति (यश), सपत्नी (सौत) का क्षय, समृद्धि, सुख देनेवाली योनियाँ, मंगलकारी निर्वाण [ये] सभी अनित्य हैं। दान देने के उपरान्त चित्त को नियोजित कर …… ।

टिप्पणी

साँची प्रस्तर अभिलेख के समान ही इस लेख में भी शासक के नाम का उल्लेख नहीं है। इसमें अंकित तिथि १३५ को गुप्त-संवत् मानकर फ्लीट ने लेख को स्कन्दगुप्त के प्रारम्भिक शासन काल का अनुमान किया है। उनकी दृष्टि में कुमारगुप्त (प्रथम) इस काल तक शासन करना सम्भव नहीं है किन्तु कुमारगुप्त के चाँदी के सिक्के १३०+ तिथि के उपलब्ध हैं, दूसरी ओर स्कन्दगुप्त की जूनागढ़-प्रशस्ति से ज्ञात अद्यतम तिथि १३६ गुप्त सम्वत् ( ४५५ ई० ) है; वह इस लेख की तिथि के अति निकट है अतः फ्लीट के अनुमान के अनुसार इस लेख के स्कन्दगुप्त-कालीन होने की अधिक सम्भावना है। सम्प्रति निश्चयात्मक रूप से हम कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं। फिरभी इतिहासकारों ने कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल ४१५ से ४५५ ई० तक रहा। इस आधार पर यह अभिलेख कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का ठहरता है।

मथुरा मूर्ति-लेख बुद्ध-मूर्ति की स्थापना की सामान्य विज्ञप्ति है। बौद्ध धर्म और दर्शन की दृष्टि से पंक्ति ३-४ का महत्त्व जान पड़ता है। परन्तु अन्तिम पंक्ति के उत्तर भाग के कुछ शब्द अनुपलब्ध होने से इसका समुचि भाव ग्रहण कर सकना सम्भव नहीं हो पाया है।

बुद्ध प्रतिमा की संस्थापिका का उल्लेख विहार-स्वामिनी नाम से हुआ है। जे० एफ० फ्लीट महोदय ने इसका भाव विहार-स्वामी ( विहार के व्यवस्थापक) की पत्नी लिया है। परन्तु एक मत यह भी है कि यह कोई व्यक्तिवाचक नाम हो; यथा – ध्रुवस्वामिनी, हरिस्वामिनी आदि नामों की तरह – जो कि हमें गुप्तकाल में मिलते हैं।

कुमारगुप्त ( प्रथम ) का बिलसड़ स्तम्भलेख – गुप्त सम्वत् ९६ ( ४१५ ई० )

गढ़वा अभिलेख

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कुलाइकुरै ताम्र-लेख

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जगदीशपुर ताम्रलेख; गुप्त सम्वत् १२८ ( ४४७ – ४८ ई० )

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