दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (द्वितीय) – गुप्त सम्वत् १२८ ( ४४७-४८ ई० )

भूमिका

दामोदरपुर ( रंगपुर जनपद, बाँग्लादेश ) से कई अभिलेख प्राप्त हुए हैं, उन्हीं में से यह द्वितीय अभिलेख है। इसीलिये इसको दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (द्वितीय) कहते हैं। इसको राधागोविन्द बसाक ने प्रकाशित किया।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- कुमारगुप्त प्रथम का दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (द्वितीय) [ Damodarpur Copper Plate Inscription-II Of Kumargupta-I]

स्थान :- दामोदरपुर, उत्तरी बाँग्लादेश का रंगपुर जनपद।

भाषा :- संस्कृत

लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी

समय :- गुप्त सम्वत् १२८ ( ४४७-४८ ई० )

विषय :- भूमि क्रय करके दान करने से सम्बन्धित, विषय ( जनपद ) की प्रशासनिक जानकारी का स्रोत।

मूलपाठ

प्रथम पटल ( मुख भाग)

१. स[ ] १००(+)२०(+)८ वैशाख-दि १०(+)३ [।] पर[मदैव]त-परमभट्टारक-महाराजाधिराज [श्रीकुमा]-

२. रगुप्ते पृथिवी-पतौ [तत्पाद]परिगृहीतस्य पु[ण्ड्रवर्द्धन भुक्तावुपरिकचि]-रातदत्त [स्य]

३. भोगेना[नुव]ह[मानक] कोटिव[र्ष]-विषये तन्नियुक्तक-कु[मा]रामात्य-वे [त्र]-

४. वर्म्मणि अधिष्ठाना[धिक]र[णञ्च]नगर [श्रे]ष्ठि-धृतिपाल सार्थवा[हबन्धुमि]त्र प्र[थ]-

५. म-कुलिक-धृतिमत्र [प्रथ]म-कायस्थ [शाम्ब] पाल-पुरो[गे] सम्व्यव[हर]ति [यतः] स …..

६. विज्ञापितं अ[र्ह]थ मम प[ञ्च] महायज्ञ-प्रवर्त्तनायानुवृत्ताप्रदाक्षनि[वी]-

७. मर्य्यादया दातुमिति [।] एतद्विज्ञाप्यमुपलभ्य पुस्तपा[ल] रिसिदत्त-जयन-[न्दि-विभुदत्तानामव]-

८. धारणया दीयतामित्यु[त्प]न्ने एतस्माद्य[था]नुवृत्त त्रैदीनारि[क्य-कु]ल्य-वापे[न]

 

द्वितीय पटल ( पृष्ठ भाग )

९. [द्व]यमुप [संगृ]ह्य [ऐरा]वता [गो] राज्ये पञ्चिम दिशि पञ्चद्रो [णा]-

१०. अर्ध[ट्ट]पानकैश्च सहितेति दत्ताः [I] तदुत्तर-कालं सम्व्यवहारिभिः [धर्म्ममवेक्ष्या]नु[म]-

११. न्तव्याः [।] अपि च भूमि-दान सम्बद्धामिमौ श्लोकौ भवतः [।] पूर्व-दत्तां द्विजाति[भ्यो]

१२. यत्नाद्रक्ष युधिष्ठिर [।] महीं महीवतां श्रेष्ठ दानाच्छ्रेयो(ऽ) तुपा(ल) नं [॥] बहुभिर्व्वसुधा दत्ता दी [य] ते च

१३. पुनः पुनः [।] यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलमिति [॥]

हिन्दी अनुवाद

संवत् १२८ वैशाख दिन १३ । परमदैवत परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्त के पाद द्वारा गृहीत पुण्ड्रवर्धन भुक्ति के उपरिक चिरातदत्त के समृद्धिपूर्ण शासन के अन्तर्गत कोटिवर्ष के [चिरातदत्त] द्वारा नियुक्त (विषय-पति) कुमारामात्य वेत्रवर्मा और अधिष्ठान (नगर) के अधिकरण (प्रशासन-समिति) के सदस्य — नगर-श्रेष्ठि धृतिपाल, सार्थवाह बन्धुमित्र, प्रथम-कुलिक धृतिमित्र, प्रथम-कायस्थ शाम्बपाल [तथा] पुरोग, यह सूचित करते हैं —

……… ने निवेदन किया है कि पंचमहायज्ञ* के परिपालन के निमित्त अप्रद-नीवी मर्यादा के अनुसार मुझे [भूमि] दी जाय। इस प्रार्थना-पत्र को पाकर पुस्तपाल ऋषिदत्त, जयनन्दि और विभुदत्त से जाँच की गयी और जाँच करने के बाद तीन दीनार प्रति कुल्यवाप की दर से दो दीनार लेकर अर्हट्ट (पानी खींचने का रहट) और पानक (पानी के निकास की नाली) सहित पाँच द्रोण (भूमि) ऐरावत गोराज्य के पश्चिम दी जाती है।

  • बलि, चरु, वैश्वदेव, अग्निहोत्र और अतिथि। — मनुस्मृति (३/६९)*

भविष्य के शासनाधिकारी (सम्व्यवहारी) इसका परिपालन करें। भूमि-दान के सम्बन्ध में यह श्लोक कहा गया है — पूर्वकाल में ब्राह्मणों को दी गयी भूमि की रक्षा युधिष्ठिर ने भी की थी। भूमि-दान से [दान दी गयी] भूमि की रक्षा श्रेष्ठ है। बहुत से लोगों ने दान दिया है। दान बार-बार दिया जाना चाहिये । जो जितना ही भूमि-दान देता है उसे उसीके अनुसार फल मिलता है।

टिप्पणी

आधुनिक बाँग्लादेश के रंगपुर जनपद के दामोदरपुर से संस्कृत गद्य में प्राप्त कुमारगुप्त के शासनकाल का यह ताम्रपत्र है। दामोदरपुर से कई ताम्रपत्र मिले हैं। इन ताम्रपत्रों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ जैसे नाम दिये गये हैं; उदाहरणार्थ दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (द्वितीय )। प्रस्तुत अभिलेख में भूमिदान सम्बन्धी महाभारत के दो श्लोक उद्धृत हैं इनका उद्देश्य है किसी ब्राह्मण के पंचमहायज्ञ* की व्यवस्था के लिये राज्य से दो दीनार में पाँच द्रोण भूमि की खरीद करना।

  • यहाँ पंचमहायज्ञों का उल्लेख है। मनु के अनुसार ये पंचपातकों के निवारणार्थ किये जाते थे उनके विवरण के अनुसार पाँच पातक हैं— ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण चोरी, गुरु-शय्या-गमन और इनका संग। पाँच महायज्ञों को मनु ने गिनाया है — ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ तथा अतिथियज्ञ।*

प्रस्तुत ताम्र-लेख दामोदर ताम्र-लेख अभिलेख ( प्रथम ) की तरह ही भू-विक्रय की विज्ञप्ति है। दोनों ही एक ही स्थान से एक ही विषयपति और एक ही अधिकरण द्वारा प्रचारित हैं। इस प्रकार दोनों ही लेखों का पूर्वांश एक समान है दोनों के निवेदक भी ब्राह्मण हैं। पहले लेख में निवेदन अग्निहोत्र के निमित्त एक कुल्यवाप भूमि के लिये किया गया था। प्रस्तुत लेख में निवेदन पंच-महायज्ञ के निमित्त भूमि प्राप्त करने के लिये है। दोनों ही लेखों से ज्ञात होता है कि उस समय भूमि का मूल्य तीन दीनार प्रति कुल्पवाप था।

इस लेख में ५ द्रोणवाप भूमि क्रय किये जाने की बात कही गयी है। उसका मूल्य १/ दीनार होता है पर उससे मूल्यस्वरूप दो दीनार लिया गया, जो भूमि के मूल्य से दीनार अधिक है। सम्भवतः इस १/दीनार के बदले क्रेता को अर्हट्ट और पानक की सुविधा दी गयी थी।

दिनेशचन्द्र सरकार ने हट्टपानक का अर्थ हाट (बाजार) और आपानक (shed for watering cattle) बताया है। उनकी धारणा है कि भूमि के साथ वे भी दिये गये थे। इस प्रकार का अधिकार इतने अल्प मूल्य के बदले दिया जाना संदेहजनक है। अतः भण्डारकर ने इसे अरहट्टपानक (रहट-युक्त पौशाला) (drinking places having Persian wheels) का सुझाव दिया है। एक अन्य विद्वान् ने इसका तात्पर्य ‘खुदे नहर के पानी से सिंचाई का अधिकार’ ग्रहण किया है। इसकी कल्पना उन्होंने किस आधार पर की है, यह अज्ञात है।

इस अभिलेख में प्रयुक्त एरावतागोराज्य की व्याख्या के सन्दर्भ में भण्डारकर ने आप्टे के कोष में ऐरावत के बताये गये अर्थ की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। उनके अनुसार ऐरावत, जलहीन विस्तृत भूमि (vast and waterless region) को कहते हैं।

अगोराज्य का तात्पर्य भण्डारकर ने गो-विहीन (destiute of cows) किया है। इस प्रकार उनका कहना है कि इसका तात्पर्य ऐसी ऊसर भूमि से है जहाँ गायें भी नहीं जातीं। इस प्रकार की व्याख्या अपने आपमें ठीक नहीं है।

यह अभिलेख भूमि-विक्रय-पत्र है। इसमें विक्रीत भूमि का संकेत आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है यदि हम भण्डारकर की व्याख्या को स्वीकार करें तो हमें उस जगह का कोई संकेत उपलब्ध नहीं होता जहाँ विक्रीत भूमि थी। अतः स्पष्ट है यहाँ एरावतागोराज्य स्थानवाची है। ऐरावत को हम भले ही ऊसर भूमि मान लें पर गोराज्य के सम्बन्ध में ऐसी कल्पना नहीं कर सकते हैं। अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है कि विक्रीत भूमि गोराज्य में थी और वह ऊसर थी।

कुमारगुप्त ( प्रथम ) का बिलसड़ स्तम्भलेख – गुप्त सम्वत् ९६ ( ४१५ ई० )

गढ़वा अभिलेख

कुमारगुप्त प्रथम का उदयगिरि गुहाभिलेख (तृतीय), गुप्त सम्वत् १०६

मथुरा जैन-मूर्ति-लेख : गुप्त सम्वत् १०७ ( ४२६ ई० )

धनैदह ताम्रपत्र ( गुप्त सम्वत् ११३ )

गोविन्द नगर बुद्ध-मूर्ति लेख

तुमैन अभिलेख ( गुप्त सम्वत् ११६ )

मन्दसौर अभिलेख मालव सम्वत् ४९३ व ५२९

करमदण्डा शिवलिंग अभिलेख – गुप्त सम्वत् ११७ ( ४३६ – ३७ ई० )

कुलाइकुरै ताम्र-लेख

दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख ( प्रथम ) गुप्त सम्वत् १२४ ( ४४३ – ४४ ई० )

मथुरा बुद्ध-मूर्ति लेख – गुप्त सम्वत् १२५ ( ४४४ ई० )

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top