दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख ( प्रथम ) गुप्त सम्वत् १२४ ( ४४३ – ४४ ई० )

भूमिका

दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख १९१५ में तत्कालीन दीनाजपुर जनपद और वर्तमान रंगपुर जनपद से एक सड़क निर्माण के दौरान दीनाजपुर ग्राम से मजदूरों को मिले थे। इनकी संख्या ५ है। इसमें पहला यहाँ प्रस्तुत है।

तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट जे० ए० एजकील ने राजशाही के वारेन्द्र रिसर्च सोसाइटी को दे दिया जहाँ वे सुरक्षित हैं। उन्हें सर्वप्रथम राधागोविन्द बसाक ने प्रकाशित किया उन्हीं ताम्रपत्रों में से एक पर यह लेख अंकित है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- कुमारगुप्त प्रथम का दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख – १  ( Damodarpur Copper Plate Inscription -1 Of Kumargupta-I )

स्थान :- दामोदरपुर, उत्तरी बाँग्लादेश का रंगपुर जनपद।

भाषा :- संस्कृत

लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी

समय :- गुप्त सम्वत् १२४ ( ४४३-४४ ई० )

विषय :- भूमि क्रय करके से सम्बन्धित, विषय की प्रशासनिक जानकारी का स्रोत।

मूलपाठ

मुख भाग ( पहला पटल )

१. सम्व १००(+)२०(+) ४ फाल्गुण-दि ७ परमदैवत-परमभट्टारक-महाराज[ ]-

२. धिराज-श्रीकुमारगुप्ते पृथिवी-पतौ तत्पाद-परिगृहीते पुण्ड्रवर्द्ध[न]-

३. भुक्तादुपरिक-चिरातदतेनानुवानक-कोटिवर्ष-विषये च त-

४. न्नियुक्तक-कुमारामात्य-वैत्रवर्मन्यधिष्ठाणाधिकरणञ्च नगरश्रेष्ठि-

५. धृतिपाल सार्थवाह-बन्धुमित्र प्रथमकुलिक-धृतिमित्र प्रथमका[य]-

६. स्थ-शाम्बपाल पुरोगे संव्यवहरति यतः ब्राह्मण कर्प्पटिकेण

७. विज्ञापित(म्) अर्हथ ममाग्निहोत्रोपयोगाय अप्रदाप्रहतखि-

८. ल-क्षेत्रं त्रदीनारिक्य-कुल्यावापेण शश्वताचन्द्रार्क्कतारक-भोज्ये [त]-

 

पृष्ठ भाग ( दूसरा पटल )

९. या नीवी-धर्म्मेण दातुमिति एवं दीयतामित्युत्पन्ने त्रिनी दीना [राण्यु]-

१०. पसंगृह्य यतः पुस्तपाल-रिशिदत्त-जयनन्दि-विभुदत्तानामधा-

११. रणया डोङ्गाया उत्तर पञ्चिणद्देशे कुल्पवापमेकम् दत्तम् [॥]

१२. स्व-दत्तां परदत्ताम्बा यो हरेत वसुन्धरां भूमि-[दान]-संवद्धाः श्लोका भव[न्ति] [I]

१३. स विष्ठायां क्रिमिर्भूत्वा पित्रिभि सह पच्यतेति [॥] [इ]ति [॥]

हिन्दी अनुवाद

सम्वत् १२४ के फाल्गुन (मास) में ७वें दिन जब परमदैवत परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्त पृथ्वीपति थे तब उनके अधीन पुण्ड्रवर्धन भुक्ति का उपरिक चिरातदत्त था और उसके अधीन कोटिवर्ष विषय का उसके द्वारा नियुक्त कुमारामात्य वेत्रवर्मा था। अधिष्ठान के अधिकरण नगर श्रेष्ठि धृतपाल, सार्थवाह बन्धुमित्र, प्रथम कुलिक धृतमित्र, प्रथम कायस्थ शाम्बपाल से कर्पटिक नामक ब्राह्मण ने आवेदन किया कि मेरे अग्निहोत्र के उपयोग के लिये तीन दीनार मूल्य का खिल कुल्यवाय क्षेत्र को स्थायी रूप से तथा चन्द्र, सूर्य और ताराओं तक उपभोगार्थ उसको नीवीधर्मानुसार दिया जाय।

इस प्रकार देने की स्वीकृति पर तीन दीनार में क्रय करके पुस्तपाल ऋषिदत्त, जयनन्दि, विभुदत्त के नाम की पुष्टि पर डोंगा के उत्तर पश्चिम की ओर एक कुल्यवाय दिया गया।

“स्वयं दी गई तथा दूसरे द्वारा प्रदत्त भूमि को जो हरता है।

वह विष्ठा की क्रीड़ा होकर पितरों के साथ कष्ट पाता है॥”

ऐतिहासिक महत्त्व

आधुनिक बाँग्लादेश के रंगपुर जनपद के दामोदारपुर ग्राम से प्राप्त पाँच ताम्रपत्र अभिलेखों में से यह एक है। तिथि तथा अभिलेख में वर्णित शासक के अनुसार यह कुमारगुप्त प्रथम ( पृथ्वीपति ) का है।

दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख – १ में तिथि लेखन की जिस पद्धति का प्रयोग किया गया है उसमें सबसे पहले वर्ष, फिर मास और तब दिवस का उल्लेख किया गया है। वर्ष के लिये सम्वत् के बाद पहले सैकड़े का अंक दो शून्यों के साथ (१००), फिर दहाई का अंक एक शून्य के साथ ( २० ) और तब इकाई का अंक दिया गया है। इन तीनों का योग सम्वत् के लिये किया गया है। इसके बाद मास का नाम जैसे फाल्गुन और तब दिवस की संख्या के लिये पहले दि० और तब संख्या लिखी जाती थी।

यह अभिलेख १२४ सम्वत् के फाल्गुन मास और ७वें दिवस का है यह ज्ञात नहीं कि १२४ किस गणना क्रम में है गुप्त अभिलेख होने के कारण यह गुप्त संवत् ही होगा तथा इसकी तिथि गुप्त सम्वत् = ४४३-४४ ई० होगी।

राजा की उपाधि परमदैवत, परमभट्टारक, महाराजाधिराज अंकित है। ये उपाधियाँ इसके पूर्व और बाद के अभिलेखों से भी ज्ञात होती हैं। यह सम्पूर्ण लेख संस्कृत गद्य में है केवल नीचे की दो पंक्तियाँ पद्य में हैं।

इससे ज्ञात होता है कि राज्य प्रान्तों में विभक्त था। प्रान्तों को भुक्ति कहते थे जिसका अधिकारी ऊपरिक ( राज्यपाल ) होता था। प्रान्त में कई जनपद होते थे जिन्हें विषय कहा जाता था। विषय ( जनपद ) का शासक कुमारामात्य था। इसका कार्यालय प्रधान नगर में होता था जिसे ‘अधिष्ठानाधिकरण’ कहते थे। इसकी सहायता के लिये एक प्रतिनिधि समिति थी जिसमें चार सदस्य थे –

  • नगर श्रेष्ठि,
  • सार्थवाह,
  • प्रथम कुलीक तथा
  • प्रथम कायस्थ।

यहाँ पुण्ड्रवर्धन भुक्ति के अन्तर्गत कोटिवर्ष विषय का उल्लेख है जिसके कुमारामात्य वेत्रवर्मा थे। इसकी समिति में नगर श्रेष्ठि धृतपाल, सार्थवाह बन्धुमित्र, प्रथम कुलिक धृतिमित्र और प्रथम कायस्थ शाम्बपाल थे।

यहाँ पुस्तपाल का भी उल्लेख है। यह सम्भवतः लेखाधिकारी या दस्तावेजों का अधिकारी ( record keeper ) था। इसके पास भूमि-सम्बन्धित ( क्रय-विक्रय, सीमा, भूमि उपजाऊ इत्यादि ) का पूरा विवरण रहता था तथा वह कागज के आधार पर बताता था कि भूमि की प्रकृति किस प्रकार की है? क्या उसे राज्य बेच सकता है? अथवा कर रहित करने में राज्य को कोई विशेष हानि नहीं होगी।

दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख – १ में प्रयुक्त शब्दावलियाँ :

  • भुक्ति – गुप्तकालीन प्रशासनिक ईकाई। साम्राज्य को भुक्ति में बाँटा गया था। इसकी तुलना वर्तमान समय के प्रांत या राज्य से की जा सकती है। इस लेख में पुंड्रवर्धन भुक्ति का उल्लेख है। भुक्ति के प्रशासनिक अधिकारी को ‘उपरिक’ कहा गया है। इसमें चिरातदत्त का उपरिक के रूप में विवरण है।
  • विषय – भुक्ति को विषय में बाँटा गया था जिसकी तुलना वर्तमान ‘जनपदों’ से की जा सकती है। इसका प्रशासनिक अधिकारी ‘विषयपति’ होता था। तत्कालीन विषयपति कोटिवर्ष का उल्लेख इसमें किया गया है। यहाँ पर ‘कोटिवर्ष’ विषय का उल्लेख किया गया है।
  • अधिष्ठान का अधिकरण – विषय का शासन सुचारुरूप से चलाने के लिये एक चार सदस्यीय एक समिति थी जो विषयपति को शासन चलाने में सहायता करती थी –
    • नगर श्रेष्ठि – नगर के महाजनों का प्रमुख
    • सार्थवाह – व्यवसायियों का प्रधान
    • प्रथम कुलिक प्रधान शिल्पी
    • प्रथम कायस्थ – मुख्य लेखक
  • पुस्तपाल – विषयपति का एक कार्यालय होता था जहाँ सभी अभिलेखों को सुरक्षित रखा जाता था जिसका प्रमुख पुस्तपाल होता था।
  • नीवीधर्म – गुप्तकाल से हमें यह प्रक्रिया बढ़ती हुई देखने को मिलती है। अक्षयनीवी का अर्थ है – स्थायी धन या भूमि का दान जिसका की कभी क्षय न हो। इससे जुड़े धर्म को ही नीवीधर्म कहा गया है।
  • दीनार – गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्रा
  • कुल्यवाप – भूमि नापने की इकाई। भूमि की वह इकाई जिसमें एक कुल्य बीज को बोया जा सके।
  • अप्रदा अप्रहत खिल-क्षेत्र : अर्थात् अविक्रीत अक्षत ( परती ) भूमि।
    • अप्रदा – ऐसी भूमि जिसे किसी को न दिया गया है।
    • अप्रहत – बिना जोती हुई भूमि।
    • खिल क्षेत्र – परती भूमि, जिसे कुछ समय से ( ≈ ३ वर्ष ) से जोता न गया हो।

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