भीतरी शिलापट्ट लेख; गुप्त सम्वत् १७० ( ४८९ ई० )

भूमिका

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद से बुधगुप्त का भीतरी शिलापट्ट लेख मिला है। यह ध्यान रहे कि यहीं से स्कंदगुप्त का भीतरी अभिलेख मिला है। प्रस्तुत अभिलेख १९७४-७५ में काशी विश्वविद्यालय के कृष्णकुमार सिन्हा प्राप्त किया था। यह भग्न अवस्था में है। इसको पृथ्वी कुमार अग्रवाल ने प्रकाशित किया है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- बुधगुप्त का भीतरी शिलापट्ट लेख या भितरी शिलालेख [ Bhitari Stone Inscription of Budhgupta ]

स्थान :- गाजीपुर जनपद; उत्तर प्रदेश

भाषा :-  संस्कृत

लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी

समय :- गुप्त सम्वत् १७० ( ४८९ ई० ), बुधगुप्त का शासनकाल

विषय :- सम्भवतया सूर्य देव से सम्बन्धित है(?)।

मूलपाठ

१. …….. सम्ब [ १००][+][७०] महाराजाधि

२. [रा]ज श्री बुधगुप्त राज्य [का]ले [।] उत्तरवाटि—

३. कायां पुष्प गृह-[सवितृ] पुष्करिण्याः

४. संलग्नोत्तर पार्श्वे वट्ट-पुष्प गृहकदेव

५. [प्रसारकं गुरु विप्र भावेन कारितक देव…

हिन्दी अनुवाद

……संवत् [१७०] महाराजाधिराज श्री बुधगुप्त के राज काल में उत्तर वाटिक स्थित पुष्प गृह और सावित्र पुष्करणी से संलग्न उत्तर भाग में स्थित वट्ट पुष्प गृह के देवता के मन्दिर में गुरु-विप्र के सम्मान में किया गया देव…

टिप्पणी

बुधगुप्त का भीतरी शिलापट्ट लेख खण्डित होने के कारण उसका प्रयोजन स्पष्ट नहीं है। केवल इतना ही अनुमान किया जा सकता है उत्तर वाटिक नामक स्थान में कोई उद्यान (पुष्प गृह) और उससे संलग्न कोई पुष्करणी (तालाब) थी वहाँ कदाचित कोई सवितृ (सूर्य) का मन्दिर भी उससे उत्तर की ओर सटे वट्ट नामक उद्यान (पुष्पगृह) में स्थित देव-मन्दिर में कोई कार्य सम्पन्न किया गया था। उसी के स्मारक स्वरूप यह स्तम्भ खड़ा किया गया होगा

अभी तक वर्ष १६६ का शंकरपुर ताम्रलेख बुधगुप्त के शासन का अन्तिम ज्ञात लेखा था। इस अभिलेख से यदि उसके तिथि का पाठ ठीक है तो उसके शासन काल में ४ वर्ष की वृद्धि होती है। पर उसके चाँदी के सिक्कों के परिप्रेक्ष्य में विशेष महत्त्व का नहीं है। उसके वर्ष १७५ के सिक्के ज्ञात रहे हैं।

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