दामोदरपुर ताम्र-लेख ( तृतीय ); गुप्त सम्वत् १६३ ( ४८२ ई० )

भूमिका

दामोदरपुर (बंगलादेश) से प्राप्त पाँच ताम्र-लेखों में यह तीसरा लेख है। इसलिये इसको दामोदरपुर ताम्र-लेख ( तृतीय ) कहा गया है। इसे राधागोविन्द बसाक ने प्रकाशित किया है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- दामोदरपुर ताम्र-लेख ( तृतीय ) [ Damodarpur Copper Plate Inscription Of Budhgupta ]

स्थान :- दामोदरपुर, उत्तरी बाँग्लादेश का रंगपुर जनपद।

भाषा :- संस्कृत

लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी

समय :- गुप्त सम्वत् १६३ ( ४८२ ई० ); बुधगुप्त का शासनकाल

विषय :- भूमि क्रय करके अक्षयनीवी दान से सम्बन्धित, विषय की प्रशासनिक जानकारी का स्रोत।

मूलपाठ

एक ओर

१. [सं० १००] (+) [६०] (+) ३ आषाढ़-दि १० (+) ३ परमदैवत परमभट्टा[र]क- महाराजाधिराज-श्रीबुधगुप्ते [पृथि]वी-पतौ तत्पाद-[परि]गृहीते पुण्ड्र[व]-

२. [र्द्धन ] भुक्तावुपरिक-महाराज-ब्रह्मदत्ते संव्यवहरति [।] स्व[स्ति] [पलाशवृन्दकात्स-

विश्वासं महत्तराद्यष्टकुलाधि[क]-

३. [र]णं ग्रामिक-कुटुम्बिनश्च चण्डग्रामके ब्राह्मणाद्याक्षक्षुद्र-प्रकृति-कुटुम्बिनः कुशलमुक्त्वानुदर्शयन्ति [यथा]

४. [वि]ज्ञापयती नो ग्रामिक-नाभको(ऽ)हमिच्छे मातापित्रोरस्वपुण्याप्यायनाय कदि(ति)

चिदब्राह्मणार्य्यान्प्रतिवासयितुं

५. [तद]र्हथ ग्रामानुक्रम-विक्रय-मर्य्यादया मत्तो हिरण्यमुपसंगृह्य समुदय-बाह्याप्रद-

खिल[क्षेत्रस्य]

६. [प्र]सादं कर्तुमिति [।] यतः पुस्तपाल-पत्रदासेनावधारितं युक्तमनेन विज्ञापितमस्त्ययं

विक्रय-

७. मर्य्यादा-प्रसङ्गस्तद्दीयतामस्य परमभट्टारक-महाराज-पा[दानां] पुण्योपचयायेति [।] पुनरस्यैव

८. [पत्रदा]सस्यावधारणयावधृत्य नाभक-हस्ताद्दीनारद्वयमुपसंगृह्य स्थाणविल-कपिल-

श्रीभद्राभ्यायिकृत्य च समुदय-

दूसरी ओर

९. [बाह्याप्रद]-[खि]ल-क्षेत्रस्य कुल्यवापमेकमस्य वायिग्रामकोत्तर-पार्श्वस्यैव च सत्य-

मर्य्यादाया दक्षिण पश्चिम-पूर्व्वण

१०. महा[त्त]राद्यधिकरण-कुटुम्बिभिः     प्रत्यवेक्ष्याष्टक-नवक(नवक)नलाभ्यामपविञ्छय

च[क्षितिंनोच्छन्ध्य] च नाग[काय्]

११. [देयं] एतदुत्तर-कालं संव्यवहारिभिर्द्धर्म्ममवेक्ष्य प्रतिपालनीयं [।] उक्त महर्षिभिः[।]

स्वदत्ताम्परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां।

१२. [स विष्ठा]यां कृमिभूत्वा पितृभिरसह पच्यते[॥]

बहुभिर्व्यसुधा दत्ता राजभिरसगरादिभिः[।]

यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य

१३.                           [तदा] फलं[॥]

षष्टिं वर्ष सहस्राणि स्वर्ग्गे मोदति भूमिदः[॥]

आक्षेप्ता चानुमन्ता च तान्येव नरके वसेदिति॥

अनुवाद

संवत् १६३, आषाढ़ [मास] दिन १३। परमदैवत् परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री बुधगुप्त पृथ्वीपति हैं। उनका पादपरिगृहीत पुण्डवर्धन-भुक्ति का उपरिक महाराज ब्रह्मदत्त संव्यवहार करता है —

स्वस्ति। पलाशवृन्दक के महत्तर, अष्टकुलाधिकरण, ग्रामिक और कुटुम्बी चण्डग्राम के ब्रह्मण आदि तथा अन्य छोटे कुटुबियों की कुशल की कामना करते हुए विश्वासपूर्वक यह सूचित करते हैं —

ग्रामिक नामक ने अपने माता-पिता तथा अपने पुण्य के लिये किसी ब्राह्मण के निवास की व्यवस्था करने के निमित्त ग्राम में प्रचलित विक्रय की मर्यादा के अनुसार मूल्य (हिरण्य) देकर समुदयबाह्य-अप्रद-खिल क्षेत्र प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की है।

अतः पुस्तपाल पत्रादास से पूछताछ करने के बाद हम घोषित करते हैं कि परमभट्टारक महाराज के पाद को पुण्य प्राप्ति होगी, इसलिये विक्रय-मर्यादा के अनुसार [भूमि] दी जाती है। यह भी [घोषित करते हैं कि] पत्रदास से पूछकर नाग से स्थायपाल कपिल और श्रीभट्ट द्वारा दो दीनार प्राप्त कर एक द्रोणयाप समुदय बाह्य, अप्रद क्षेत्र (भूमि) वायिग्राम (वैग्राम) के उत्तर उसके बगल में दक्षिण, पश्चिम, पूर्व, महत्तर आदि के अधिकरण और कुटुम्बियों ने आठ, नव, नव नल नापकर चारों ओर की सीमा को अपने सामने स्पष्ट रूप से निर्धारित कराकर नाभक को दिया।

भविष्य में होनेवाले संख्यवहारी भी धर्म की दृष्टि से इसका पालन करें। महर्षि ने कहा है — अपना अथवा दूसरे द्वारा दी गयी भूमि का जो अपहरण करता है वह पितरों सहित विष्ठा का कीड़ा होता है।

सगर आदि राजाओं ने पूर्व काल में बहुत सी भूमि दान दी थी। जो जितनी भूमि दान देता है उसे उसी के अनुसार फल प्राप्त होता है।

भूमि दान करनेवाला छः हजार वर्ष तक स्वर्ग में निवास करता है और उसका अपहरण करनेवाला तथा अपहरण में सहयोग करनेवाला उतने ही काल तक नरकवासी होता है।

टिप्पणी

दामोदरपुर ताम्र-लेख ( तृतीय ) भी पूर्वोल्लिखित अभिलेखों के समान अक्षय-नीति-धर्म के अन्तर्गत भू-विक्रय की घोषणा है और इसका प्रारूप भी उन्हीं की तरह है। नयी बात केवल इतनी ही है कि इसमें एक नये राज्याधिकारी स्थाणविल का उल्लेख हुआ है। जिसके माध्यम से मूल्यस्वरूरप दो दीनार पाने की बात कही गयी है। दिनेशचन्द्र सरकार ने स्थानपाल मानकर इसका तात्पर्य पहरेदार या पुलिस का सिपाही अनुमान किया है। डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त इसे ख़ज़ांची अथवा कर-संग्राहक मानते हैं।

दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख ( प्रथम ) गुप्त सम्वत् १२४ ( ४४३ – ४४ ई० )

दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (द्वितीय) – गुप्त सम्वत् १२८ ( ४४७-४८ ई० )

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