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मथुरा जैन-मूर्ति-लेख : गुप्त सम्वत् १०७ ( ४२६ ई० )

परिचय मथुरा जैन-मूर्ति-लेख गुप्त सम्वत् १०७ ( ४२६ ई० ) की है। १८९०-९१ ई० में मथुरा स्थित कंकाली टीले के उत्खनन में मिली एक पद्मासना जैन मूर्ति के आसन पर यह लेख अंकित है। इसे पहले बुह्लर ने प्रकाशित किया था। बाद में भण्डारकर ने इसे पुनः सम्पादन किया है। संक्षिप्त परिचय नाम :- कुमारगुप्त […]

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कुमारगुप्त प्रथम का उदयगिरि गुहाभिलेख (तृतीय), गुप्त सम्वत् १०६

परिचय उदयगिरि गुहाभिलेख (तृतीय) विदिशा जनपद, मध्य प्रदेश स्थित उस गुहा-मन्दिर में है, जिसे एलेक्जेंडर कनिंघम ने ‘दसवीं जैन-गुहा’ का नाम दिया था। कनिंघम की दृष्टि में यह लेख १८७६-७७ ई० में आया था और उसे उन्होंने १८८० ई० में प्रकाशित किया था। १८८२ ई० में हुल्श ने उसका एक संशोधित पाठ प्रस्तुत किया तत्पश्चात्

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गढ़वा अभिलेख

परिचय प्रयागराज जनपद के बारा तहसील स्थित बारा मुख्यालय से लगभग ८ मील दक्षिण-पश्चिम शंकरगढ़ से डेढ़ मील की दूरी पर एक प्राचीन दुर्ग है जिसे लोग गढ़वा दुर्ग, शंकरगढ़ कहते हैं। इस दुर्ग के भीतर आजकल बस्ती बसी है। वहाँ एक आधुनिक मकान की दीवाल में पत्थर की एक पटिया लगी हुई थी। इसी

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कुमारगुप्त ( प्रथम ) का बिलसड़ स्तम्भलेख – गुप्त सम्वत् ९६ ( ४१५ ई० )

भूमिका एटा (उत्तर प्रदेश) जिला अन्तर्गत अलीगंज तहसील से चार मील उत्तर-पश्चिम बिलसड़ पुवायाँ नामक एक ग्राम है। इस ग्राम के उत्तर-पश्चिमी कोने पर लाल पत्थर के बने चार टूटे स्तम्भ (दो गोल और दो चौकोर) खड़े हैं। इनमें से दोनों गोल स्तम्भों पर यह लेख समान रूप से अंकित है। एक पर वह १३

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मन्दसौर अभिलेख – ४६७ ई० ( मालव सम्वत् ५२४ )

भूमिका मालव अभिलेख – ४६७ ई० एक शिलापट्ट पर अंकित है। इसे म० ब० गर्दे को १९२३ ई० के ग्रीष्म में मन्दसौर (मध्य प्रदेश) स्थित दुर्ग के पूर्वी दीवाल के भीतरी भाग में जड़ा हुआ मिला था। इसको म० ब० गर्दे ने ही प्रकाशित किया है। वर्तमान में यह ग्वालियर संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया

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ध्रुवस्वामिनी का मुद्रा अभिलेख ( Seal Inscription of Dhruvaswamini )

भूमिका १९०३-०४ ई० में बसाढ़ (प्राचीन वैशाली) जनपद वैशाली (बिहार) से पुरातात्विक उत्खनन में एक मुहर की मिट्टी की तीन छापें मिली थीं। ध्रुवस्वामिनी का मुद्रा अभिलेख आकार में अण्डाकार ढाई इंच लम्बी और पौने दो इंच चौड़ी रही होगी। छाप के अनुसार मुहर पर एक वामाभिमुख सिंह है; उसके नीचे एक पड़ी लकीर है।

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मथुरा खंडित लेख

भूमिका मथुरा खंडित लेख को १८५३ ई० में एलेक्जेंडर कनिंघम में खोज निकाला था।  उनको यह मथुरा नगर के कटरे के प्रवेश-द्वार के बाहर फर्श के रूप में प्रयुक्त एक तिकोने आकार का लाल रंग के पत्थर का टुकड़ा मिला था। यह प्रस्तर का टुकड़ा किसी बड़े चौकोर शिलाफलक का अंश है। उपलब्ध मथुरा खंडित

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हुंजा-घाटी के लघु शिलालेख ( गुप्तकालीन )

भूमिका हुंजा-घाटी के लघु शिलालेख गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि और संस्कृत भाषा में हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र गुप्त-शासकों का प्रभाव था। सिन्धुनद के काँठे के उत्तरी भाग में काराकोरम पर्वत शृंखला में स्थित दर्रे से होकर गिलगिट की ओर जाने वाले प्राचीन मार्ग को पाकिस्तान और चीन ने मिल कर एक नये

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चन्द्र का मेहरौली लौह स्तम्भ लेख

परिचय मेहरौली लौह स्तम्भ लेख संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली के दक्षिण दिल्ली जनपद के मेहरौली नामक गाँव से प्राप्त हुआ है। यह लौह स्तम्भ कुतुबमीनार के निकट स्थापित है। इसी लौह स्तम्भ पर ‘चन्द्र’ का अभिलेख अंकित है। चन्द्र का पहचान ‘चन्द्रगुप्त द्वितीय’ से की गयी है। मेहरौली लौह स्तम्भ के तल का व्यास सोलह

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चन्द्रगुप्त द्वितीय का साँची अभिलेख ( गुप्त सम्वत् – ९३ या ४१२ ई० )

परिचय यह अभिलेख साँची (विदिशा, मध्यप्रदेश) स्थित बड़े स्तूप की वेदिका पर बाहर की ओर २” फुट x ९” फुट की प्रस्तर शिला पर अंकित है। साँची अभिलेख की ओर १८३४ ई० में बी० एच० हाग्सन ने ध्यान आकृष्ट किया। १८३७ ई० में कैप्टेन एडवर्ड स्मिथ द्वारा प्रस्तुत छाप के आधार पर जेम्स प्रिंसेप ने

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