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चन्द्रगुप्त द्वितीय का उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय )

परिचय उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय ) विदिशा के उदयगिरि पहाड़ी से मिला है। यह अभिलेख गुहा के छत पर अंकित है। गुहा के छत का ऊपरी भाग तवा के आकार का है; इस कारण यह गुहा ‘तवा-गुहा‘ के नाम से पुकारी जाती। है। इस गुहा के पिछली दीवाल पर प्रवेश-द्वार से थोड़ा बायें यह अभिलेख […]

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चन्द्रगुप्त द्वितीय का उदयगिरि गुहा अभिलेख ( प्रथम )

परिचय उदयगिरि गुहा अभिलेख (प्रथम) मध्य प्रदेश राज्य के विदिशा जनपद में स्थित है। यह अभिलेख गुप्त सम्वत् वर्ष ८२ या ४०१ ई० का है। उदयगिरि विदिशा (मध्य प्रदेश) के उत्तर-पश्चिम कुछ ही दूर स्थित एक पहाड़ी है। उसके निकट ही एक गाँव है, जो इस पहाड़ी के कारण उदयगिरि कहा जाता है। इस उदयगिरि

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चन्द्रगुप्त द्वितीय का मथुरा स्तम्भलेख ( Mathura Pillar Inscription of Chandragupta II )

भूमिका चन्द्रगुप्त द्वितीय का मथुरा स्तम्भलेख एक प्रस्तर-स्तम्भ पर अंकित है। यह मथुरा नगर स्थित रंगेश्वर महादेव के मन्दिर के निकट चन्दुल-मन्दुल की बगीचे के एक कुएँ में लगा हुआ था। यह अभिलेख अब मथुरा संग्रहालय में संरक्षित है। लेख स्तम्भ के पाँच पहलों पर अंकित है; तीसरे पहल वाला अंश क्षतिग्रस्त है। इसे सर्वप्रथम

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विदिशा जैनमूर्ति लेख

परिचय १६६९ ई० में विदिशा (मध्य प्रदेश) नगर से दो मील दूर बेस नदी के तटवर्ती दुर्जनपुर ग्राम के एक टीले की बुलडोजर से खुदाई करते समय जैन तीर्थकरों की तीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं, जो खुदाई करते समय क्षतिग्रस्त हो गयीं। विदिशा जैनमूर्ति लेख इस समय विदिशा संग्रहालय में संरक्षित हैं। इनमें एक आठवें

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समुद्रगुप्त का एरण प्रशस्ति

भूमिका ९ इंच चौड़े और ३ फुट १ इंच आड़े (खड़े) लाल बलुआ पत्थर ( red-sandstone  ) के फलक पर समुद्रगुप्त का ‘एरण प्रशस्ति’ अंकित है। १८७४ और १८७७ ई० के बीच किसी समय यह फलक एलेक्जेंडर कनिंघम को मिला था। कनिंघम महोदय को यह अभिलेख बीना नदी के बायें तट पर स्थित एरण (

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भारतीय और पाश्चात्य दर्शन में अंतर या तुलना

भूमिका एक जीवंत सभ्यता और संस्कृति का अपना विशिष्ट दर्शन होता है। ‘भारतीय दर्शन’ और ‘पाश्चात्य दर्शन’ का नामकरण भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है कि दोनों दर्शन एक दूसरे से भिन्नता रखते हैं। दर्शन की भाँति विज्ञान के क्षेत्र में हम ऐसा अन्तर नहीं कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में विज्ञान के सम्बन्ध

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वैदिक देवता

भूमिका ऋग्वैदिक आर्यों का सामाजिक व आर्थिक जन-जीवन जितना सरल था, धार्मिक जीवन उतना ही अधिक विशद और जटिल। यहाँ हमें प्रारम्भ में ‘बहुदेववाद’ के दर्शन होते। यह बहुदेववाद एकेश्वरवाद से होता हुआ एकवाद में प्रतिफलित होता है। इस एकवाद का पूर्ण परिपाक उपनिषदों में मिलता है। आर्यों के प्रधान देवता ‘प्राकृतिक’ शक्तियों के प्रतिनिधि

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दर्शन क्या है?

भूमिका किसी भी विषय को पढ़ने, समझने, और आत्मसात करने के लिये पहली स्वाभाविक जिज्ञासा यह होती है कि – अमुक विषय क्या है? अथवा अमुक विषय की परिभाषा क्या है? अतः सबसे पहले हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि — दर्शन क्या है? या दर्शन की परिभाषा क्या है? दर्शन किन प्रश्नों पर

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समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति

भूमिका प्रयाग प्रशस्ति ३५ फुट ऊँचे पत्थर के एक गोल स्तम्भ पर अंकित है, जो प्रयागराज ( इलाहाबाद ) में गंगा-यमुना तट पर स्थित मुगल कालीन दुर्ग के भीतर अवस्थित है। मूल रूप में सम्भवतः यह कौशाम्बी ( आधुनिक कोसम ) में, जो प्रयागराज के लगभग ४० किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम की ओर यमुना

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समुद्रगुप्त का गया ताम्रपत्र

भूमिका समुद्रगुप्त का गया ताम्रपत्र ( वर्ष ६ ) आठ इंच लम्बे और सात इंच से कुछ अधिक चौड़े ताम्र-फलक के एक ओर अंकित है। यह अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ( A. Cunningham  ) को गया में मिला था। वह कहाँ निकला था इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। वर्तमान समय में यह ब्रिटिश संग्रहालय में

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