भूमिका
१९०३-०४ ई० में बसाढ़ (प्राचीन वैशाली) जनपद वैशाली (बिहार) से पुरातात्विक उत्खनन में एक मुहर की मिट्टी की तीन छापें मिली थीं। ध्रुवस्वामिनी का मुद्रा अभिलेख आकार में अण्डाकार ढाई इंच लम्बी और पौने दो इंच चौड़ी रही होगी। छाप के अनुसार मुहर पर एक वामाभिमुख सिंह है; उसके नीचे एक पड़ी लकीर है। लकीर के नीचे चार पंक्तियों का लेख है। यह मुहर भारतीय संग्रहालय ,कोलकाता में है। इसे टी० ब्लाख ने प्रकाशित किया; बाद में भण्डारकर महोदय ने इसका विवेचन प्रस्तुत किया।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- ध्रुवस्वामिनी का मुद्रा अभिलेख ( Seal Inscription of Dhruvaswamini )
स्थान :- बसाढ़ ( प्राचीन वैशाली ), वैशाली जनपद, बिहार
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल ( ३७५ – ४१५ ई० )
विषय :- इसमें ध्रुवस्वामिनी का चन्द्रगुप्त द्वितीय की पत्नी होना, उनके गोविन्दगुप्त नामक एक अन्य पुत्र की जानकारी मिलती है।
मूलपाठ
१. महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त [ – ]
२. पत्नी महाराज श्री गोविन्दगुप्त [ – ]
३. माता महादेवी श्री ध्रु [ – ]
४. वस्वामिनी [ । ]
हिन्दी अनुवाद
महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त [ – ] ( की ) पत्नी; महाराज श्री गोविन्दगुप्त [ – ] ( की ) माता महादेवी श्री ध्रुवस्वामिनी [ – ]।
ऐतिहासिक महत्त्व
इस मुहर से ज्ञात होता है कि ध्रुवस्वामिनी महाराजधिराज श्री चन्द्रगुप्त की पत्नी और महाराज श्री गोविन्दगुप्त की माता थी। ध्रुवस्वामिनी ने चन्द्रगुप्त की पत्नी होने की बात अनेक लेखों से पहले से ही ज्ञात थी। इस मुहर से ज्ञात होने से पूर्व कुमारगुप्त (प्रथम) के ही उनका पुत्र होने की बात ज्ञात थी। इस मुहर से पहली बार यह बात प्रकाश में आयी कि उसके गोविन्दगुप्त नामक एक पुत्र और भी थे। इस मुहर पर गोविन्दगुप्त का नाम होने से यह भी अनुमान होता है कि गोविन्दगुप्त उनके ज्येष्ठ पुत्र रहे होंगे। डी० आर० भण्डारकर ने इस मुद्रा के आधार पर गोविन्दगुप्त को युवराज और तिर-भुक्ति का प्रशासक होने की कल्पना प्रस्तुत की है।
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