समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख
भूमिका समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख ( Nalanda Copper-Plate of Samudragupta ) साढ़े दस इंच लम्बे और नौ इंच चौड़े ताम्र फलक पर अंकित है। यह १६२७-२८ ई० में नालन्दा ( बिहार ) के पुरातात्त्विक उत्खनन के समय बिहार संख्या १ के उत्तरी बारामदे में मिला था। हीरानन्द शास्त्री ने इसके सम्बन्ध में पहले एक छोटी सी सूचना प्रकाशित की। तदनन्तर अमलानन्द घोष ने इसे सम्पादित कर प्रकाशित किया। तत्पश्चात् दिनेशचन्द्र सरकार ने इसका विवेचन किया। संक्षिप्त परिचय नाम :- समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख ( Nalanda Copper-Plate of Samudragupta ) स्थान :- नालन्दा, बिहार भाषा :- संस्कृत लिपि :- ब्राह्मी समय :- गुप्त सम्वत् ५, अर्थात् ३२४ ई० विषय :- शासनादेश समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख : मूलपाठ १. ॐ स्वस्ति [ । ] महानौ-हस्त्यश्व जयस्कन्धावारानन्दपुरवासका [ त्स ] -र्व्वरा [ जोच्छे ] त्तु ( ः ) पृथिव्यामप्रतिरथस्य चतुरुदधि-सलि [ लास्वा ]- २. दित-यशसो धनद-वरुणे [ न्द्रा ] न्त [ क ]- समस्य कृतान्त-परशोर्न्ययगतानेक-गौ-हिरण्य- कोटि-प्रदस्य चिरोत्स [ न्ना ] – ३ श्वमेधाहुर्त्तम्महाराज-श्री-गु [ प्त ]- प्रपौत्रस्य महाराज-श्री-घटोत्कच-पौत्रस्य [ जाधि ] राज [ श्री चन्द्रगुप्त ] पुत्र- ४. स्य लिच्छवि-दौ [ हि ] त्रस्य महादेव्यांकुमारदेव्यामुत्पन्नः परमभा- [ गवतो महाराजाधिराज-श्री समुद्रगु ] प्तः वाविरिक्ष्यर ५. वैषयिकभद्रपुष्करकग्राम-क्रिविलावैषयिकपू [ र्णना ] गग्रा [ म ( योः ) ब्राह्मण-पुरोग ]-ग्रा [ म ]- व लत्कौशभ्यामाह ( । ) ६. एवं चाह विदितम्बो भवत्वेषौ ग्रा [ मौ ] [ मया ] [ मा ] तापित्रोर [ त्मनश्च ] पु [ ण्याभिवृद्ध ] ये जयभट्टिस्वामिने ७. ………[ सोपरि ] करो [ द्देशेना ] ग्रहा [ रित्वे ] नातिसृष्टः ( । ) तद्युष्माभिर [ स्य ] ८. त्रैविद्यस्य श्रोत्तव्यमाज्ञा च कर्त [ व्या ] [ स ] र्व्वे [ च ] [ स ] मुचिता ग्रा [ म ] प्रत्य [ या ] ( मेय )- हिरण्यादयो देयाः [ । ] न चेताः प्र- ९. [ भृ ] त्यनेन त्रै [ वि ] द्येनान्य-ग्रामादि-करद-कुटुम्बि- [ कारुक ] ादयः प्रवेश [ यित ] व्या [ ना ] न्यथा नियतमाग्रहाराक्षेपः १०. [ स्य ]ादिति। सम्वत् ५ माघ-दि० २ निवद्धं [ । ] ११. अनुग्रामाक्षपटलाधि [ कृत ] – महापीलूपति-महाबलाधि [ कृ ] त-गोपस्वाम्यादेश-लिखितः [ । ] १२. [ दूतः कुमा ] र श्री चन्द्रगुप्तः [ । ] हिन्दी अनुवाद ॐ स्वस्ति! आनन्दपुर स्थित महा नौ हस्ति और अश्व से युक्त जयस्कन्धावार से सर्वराजच्छेता ( समस्त राजाओं का उन्मूलन करने वाले ) भूमण्डल में अप्रतिरथ ( शक्ति में अद्वितीय ), चारो समुद्रों के जल के आस्वादित यशवाले, धनद ( कुबेर ), वरुण, इन्द्र, अन्तक ( यम ) के तुल्य, कृतान्त के परशु स्वरूप, वैध ढंग से प्राप्त कोटि गौ और हिरण्य ( धन ) के दानदाता, चिरकाल से उत्सन्न अश्वमेघ के पुनस्थापक, महाराज श्रीगुप्त के प्रपौत्र, महाराज घटोत्कच के पौत्र, महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त के महादेवी कुमारदेवी से उत्पन्न पुत्र, लिच्छवि-दौहित्र, परमभागवत महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्त वाविरिक्ष्यर विषय स्थित भद्रपुष्करक तथा क्रिमिल विषय के पूर्णनाग ग्राम के ब्राह्मण, पुरोग, ग्राम एवं बलकौशन से कहता है — आप लोगों को विदित हो कि [ अपने ] माता पिता तथा अपने पुण्य वृद्धि के लिए जयभट्ट स्वामी के लिए उपरिकर सहित अग्रहार की सृष्टि करता हूँ। अतः आप सबका ध्यान इस बात की ओर जाना चाहिए तथा [ इस ] आज्ञा का पालन करना चाहिये। [ अब से ] ग्राम की परम्परा के अनुसार जो भी कर—मेय अथवा हिरण्य देय हो, उन्हें दिया जाय। अब से भूमिकर लेने वाले, कुटुम्बी, शिल्पी एवं अन्य लोग इस अग्रहार ( दान भूमि ) में हस्तक्षेप न करें अन्यथा अग्रहार सम्बन्धी नियमों का उलंघन होगा । संवत ५, माघ दि० २ को लिखा गया। [ यह पत्र ] इस ग्राम के अक्षपटलाधिकृत, महापीलुपति, महाबलाधिकृत गोपस्वामी के आदेश से लिखा गया। दूत कुमार श्री चन्द्रगुप्त। ऐतिहासिक महत्त्व समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है : समुद्रगुप्त के द्वारा धारण की गयी उपाधियों का उल्लेख मिलता है। सर्वराजोच्छेता, अप्रतिरथ, परमभागवत, महाराजाधिराज। समुद्रगुप्त की तुलना विविध देवताओं से की गयी है। कुबेर, वरुण, इंद्र व यम। गुप्तवंश की वंशावली का उल्लेख है। महाराज श्रीगुप्त — महाराज घटोत्कच — महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त — परमभागवत महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्त। माता का नाम महादेवी कुमारदेवी। कुमार लिच्छवि कुल की कन्या थी। समुद्रगुप्त स्वयं को लिच्छवि दौहित्र कहने में गौरव का अनुभव करता है। अग्रहार दान उल्लेख है। राज्य की ओर से ब्राह्मणों को भूखण्ड या ग्रामदान। कर सम्बन्धित ज्ञान मिलता है। उपरिकर – अस्थायी कृषकों से लिया जाने वाला भूमिकर मेय – किसानों द्वारा देय अन्य या पैदावार तौलकर दिया जाने वाला भूमिकर हिरण्य – किसानों द्वारा देय नकद भूमिकर पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। वलत्कौषन – इसका उल्लेख इस अभिलेख के साथ-साथ गया ताम्रलेख में मिलता है, अन्यत्र नहीं मिलता है। सम्भवतः यह राजस्व से जुड़ा कोई पदाधिकारी था। अक्षपटलाधिकृत – राजकीय दस्तावेज के सम्बन्धित अधिकारी। महापीलुपति – हस्तिसेना प्रमुख। महाबलाधिकृत – सेनापति अर्थात् सेना का सर्वोच्च अधिकारी। इसके अलावा समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेध यज्ञ करने का उल्लेख भी इसमें मिलता है।
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