उषावदत्त का तिथिविहीन नासिक गुहालेख

भूमिका

नहपानकालीन तिथिविहीन उषावदत्त का नासिक गुहालेख ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में है। इसमें विविध दान का वर्णन और मालवों के विरुद्ध अभियान का विवरण सुरक्षित है।

संक्षिप्त परिचय

नाम : नहपानकालीन उषावदत्त का तिथिविहीन नासिक गुहालेख ( Undated Nasik cave inscription of Ushavdatta of time of Nahpan )

स्थान : नासिक गुहा सं० १०, महाराष्ट्र

भाषा : संस्कृत  ( प्राकृत प्रभावित )

लिपि : ब्राह्मी

समय : नहपान के काल का.

विषय : उषवदात द्वारा त्रिरश्मि पर्वत पर दिया गया दान

मूलपाठ

१. सिद्धम्! [ स्वस्तिक चिह्न ] (॥) राज्ञः क्षहरातस्य क्षत्रपस्य नहपानस्य जामात्रा दीनीकपुत्रेण उषवदातेन त्रि गोशत-सहस्रदेन नद्या बार्णासायां सुवर्णदानतीर्थकरेण देवत [ ] भ्यः ब्राह्मणेभ्यश्च षोडशग्रामदेन अनुवर्ष ब्राह्मणशतसाहस्री भोजापयित्रा

२. प्रभासे पुण्यतीर्थे ब्राह्मणेभ्य: अष्टभार्यप्रदेनी भरुकछे दशपुरे गोवर्धने शोपरिगे च चतुशालावसध-प्रतिश्रय-प्रदेन आराम तडाग-उदपान-करेण इबापाराद-दमण-तापा-करबेणा-दाहनुका-नावा-पुण्य-तर-करेण एतासां च नदीनां उभतो तीरं सभा-

३. प्रपाकरेण पींडीतकावडे गोवर्धने सुवर्णमुखे शोर्पारगे च रामतीर्थ चरक पर्षभ्यः ग्रामे नानंगोले द्वात्रीशत नाळीगेर-मूल सहस्र-प्रदेन गोवर्धने त्रोरश्मिषु पर्वतेषु धर्मात्मा इदं लेणं कारितं इमा च पोढियो ( ॥ ) भटारका-अञातिया च गतोस्मिं वर्षारतुं मालये [ हि ] हि रुधं उतमभाद्र मोचयितुं ( । )

४. ते च मालया प्रनादेनेव अपयाता उतमभद्रकानं च क्षत्रियानं सर्वे परिग्रहा कृता ( । ) तोस्मिं गतो पोक्षरानि ( । ) तत्र च मया अभिसेको कृतो त्रीणि च गोसहस्रानि दतानि ग्रामो च ( ॥ )दत च [ ] नेन क्षेत्र [ ] ब्राह्मणस वाराहि-पुत्रस अश्विभूतिस हथे कोणिता मुलेन काहापण-सहस्रेहि चतुहि ४००० यो-स-पितु-सतक नगरसीमायं उतारपरा [ यं ] दीसायं ( । ) एतो मम लेने वस-

५. तान चातुदीसस भिखु-सघस मुखाहारों भविसती ( ॥ )

हिन्दी अनुवाद

सिद्धम्‌ ! क्षहरात क्षत्रपराजा नहपान के दामाद और दीनीक के पुत्र उषवदात के द्वारा- जिसने तीन हजार गायें दान दी हैं, वर्णासा नदी पर सुवर्ण तथा सीढ़ियों का दान दिया है, देवताओं एवं ब्राह्मणों को ग्रामदान दिये हैं, जो प्रति वर्ष एक लाख ब्राह्मणों को भोजन कराता है, प्रतिवर्ष वह पुण्यतीर्थ प्रभास में ब्रह्मणों को आठ भार्याएँ देता है, जिसने भृगुकच्छ, दशपुर, गोवर्धन और शूर्पारक को चतुःशाला-गृह और विश्रामगृह प्रदान किया, जिसने वाटिका, तालाब और कुओं को बनवाया, उसने इबा, पारदा, दमन, तापी, करवेण्वा और दाहनुक नदियों के निःशुल्क नाव से पार करने की व्यवस्था किया है और इन नदियों के दोनों किनारों पर विश्रामालय और प्याऊ बनवाया है, जिसने पण्डितकावड़, गोवर्धन, सुवर्णमुख, शूर्पारक व रामतीर्थ में स्थित चरक सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए नानंगोल ग्राम में बत्तीस हजार नारियल का मूल ( पेड़ ) दिया।

धर्मात्मा उषावदत्त द्वारा गोवर्धन प्रदेश के त्रिरश्मि पर्वत पर गुहा और जलकुण्ड बनवाये गये। भट्टारक की आज्ञा वर्षा ऋतु में उत्तम भद्रों के अधिपति को मालवों द्वारा बंदी बनाया गया था छुड़ाने के लिए मैं ( उषावदत्त ) गया। वे मालव मेरा हुंकार सुनकर भाग गये और सभी अब उत्तमभद्रों द्वारा बन्दी बना लिये गये। फिर मैं पुष्करतीर्थ ( अजमेर ) गया और वहाँ स्नानकर ३,००० गायें और ग्राम दान दिया। वहाँ मेरे द्वारा वाराहीपुत्र अश्वभूति नामक ब्राह्मण के हाथ से ४,००० कार्षापण से खेत ख़रीदकर दिया गया जिसपर अश्वपति के पिता का स्वत्व है। यह नगर के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित है। इससे मेरी गुहा में रहने वाले चारों दिशाओं से आये भिक्षुसंघ का भोजन होगा।

महत्त्व

इस अभिलेख से निम्न जानकारी मिलती है :-

  • क्षहरात वंशी क्षत्रपराज नहपान के दामाद उषावदत्त ( ऋषभदत्त )।
  • उषावदत्त के पिता का नाम दिनीक मिलता है।
  • एक प्रमुख बात यह है कि इसमें एक साथ ब्राह्मणों और बौद्धों को दान देने की चर्चा मिलती है।
  • मालवों के विरुद्ध अभियान की चर्चा की गयी है।
  • साथ ही राज्य की सीमा का मोटे-तौर पर अनुमान मिलता है।
  • इसमें चरक सम्प्रदाय का उल्लेख मिलता है।

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