शोडास का मथुरा आयागपट्ट अभिलेख

भूमिका

शोडास का मथुरा आयागपट्ट अभिलेख, मथुरा के कंकाली-टीला से प्राप्त हुआ है। जैन धर्म से सम्बंधित यह अभिलेख संस्कृत से प्रभावित प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में अंकित है।

मथुरा आयागपट्ट अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम : मथुरा आयागपट्ट अभिलेख या मथुरापूजा अभिलेख ( Mathura Votive Tablet Inscription ), शोडासकालीन मथुरापूजा अभिलेख सम्वत् ७२ ( Mathura Votive Tablet Inscription of the time of Shodasa/Sodas – Year 72 )

स्थान :- कंकाली टीला, मथुरा; उत्तर प्रदेश

भाषा :- प्राकृत ( संस्कृत प्रभावित )

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- प्रथम शताब्दी ई०, अनिर्दिष्ट सम्वत् ७२

विषय :- जैन धर्म के लिए अयागपट्ट या पूजा शिला की स्थापना। जैन भिक्षु की शिष्या अमोहिनी द्वारा जैन आयागपट्ट ( Votive ) की स्थापना।

मथुरा आयागपट्ट अभिलेख : मूलपाठ

१. नम अरहतो वर्धमानस [ । ]

२. स्व [ ा ] मिस महक्षत्रपस शोडासस संवत्सरे ७० [ + ] २ हेमंतमासे २ दिवसे ९ हरिति-पुत्रस पालस भयाये समन-स [ ा ] विकाये

३. कोछिये अमोहिनिये सहा पुत्रेहि पालघोषेन पोठघोषेन धनघोषेन आर्यवति [ प्र ] तिथापिता [ । ] प्रिय………..

४. आयवंति अरहत-पूजाये [ । ]

संस्कृत छाया

नमः अर्हते वर्धमानाय। स्वामिनः महाक्षत्रपस्य शोडास्य संवत्सरे ७२ हेमंत मासे २ दिवसे ९ हारीतपुत्रस्य पालस्य भार्याया श्रमण-श्राविकया कौत्स्या अमोहिन्या सह पुत्रेहि पालघोषेण, पीठघोषेण, धनघोषेण आर्यवती प्रतिष्ठापिता। प्रियं आर्यवती अर्हत् पूजायै।

हिन्दी अनुवाद

१ – नमः अर्हत वर्धमान

२ – स्वामी महाक्षत्रप शोडास के संवत्सर ७२ के हेमन्त के द्वितीय मास के दिवस ७ को हारीतिपुत्र पाल की भार्या श्रमण-श्राविका (जैन भिक्षु-शिष्या) के लिए

३ – कौत्स-गोत्रिया अमोहिनी ने अपने पुत्र पालघोष, पीठघोष और घनघोष सहित यह आर्यवती ( आयागपट्ट ) स्थापित किया। [ प्रिय भगवती ]

४ – अर्हत पूजा के निमित्त।

ऐतिहासिक महत्त्व

इस अभिलेख से मथुरा में जैन धर्म के अस्तित्व का परिचय मिलता है। पर इसका महत्त्व इस पर अंकित तिथि के कारण है। यह तिथि किस सम्वत् का प्रतीक है, यह अभी पूर्णत: निर्धारित नहीं किया जा सका है। परन्तु सम्वत् निर्धारण के लिए जो प्रयास हुए हैं उसमें यह तिथि समाधान में काफी सहायक समझा जाता है। अनुमान है कि यह प्राचीन शक-पह्लव सम्वत् का बोधक है, जिसे कुछ लोग विक्रम संवत्, जिसका आरम्भ ई०पू० ५७ से माना जाता है, अनुमान करते हैं।

यह अभिलेख एक पाषाण फलक पर अंकित है। इसपर दासियों से घिरी एक रानी का दृश्य है। एक दासी छत्र लिए खड़ी है। यह धार्मिक प्रकृत का पूर्णरूपेण व्यक्तिगत अभिलेख है। यह अभिलेख जैन धर्म को समर्पित है। इसमें उल्लिखित आर्यवती शब्द का अर्थ है – अयागपट्ट या आपागपट्ट। यह एक ऐसा पट्ट होता है जिसपर अर्हत की प्रतिमा बनी होती है।

कंकाली टीला को जैन धर्म का आगार ( Emporium ) माना जाता है। इसका कारण यह है कि कंकाली टीले से जैन धर्म से सम्बंधित विपुल सामग्री की प्राप्ति हुई है। इस टीले का नाम भी जैन धर्म की ६४ योगिनियों में से एक के नाम ‘कंकाली’ के ही नाम पड़ा है।

इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि शक-क्षत्रपों के शासनकाल में मथुरा में जैन धर्म उन्नत अवस्था में था।

मथुरा सिंह स्तम्भशीर्ष अभिलेख में शोडास का उल्लेख एक युवराज के रूप में किया गया है और उसको क्षत्रप कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि शोडास जो कि राजूल ( राजवुल ) का पुत्र था। वह राजूल के बाद शासक ( महाक्षत्रप ) बना।

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