गोविन्द नगर बुद्ध-मूर्ति लेख

परिचय

गोविन्द नगर बुद्ध-मूर्ति लेख १९७६ ई० में मथुरा नगर के बाह्य भाग में गोविन्द नगर नामक नये उपनिवेशन के उत्खनन में प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख भगवान बुद्ध की एक खड़ी मूर्ति के पादासन पर अंकित है। यह मूर्ति मथुरा संग्रहालय में रखी हुई है इस लेख के रमेशचन्द्र शर्मा (संग्रहालय के तत्कालीन निदेशक) द्वारा प्रस्तुत पाठ को १९८२ ई० में जे० जी० विलियम्स ने अपनी पुस्तक ‘द आर्ट आव गुप्त इण्डिया’* में प्रकाशित किया है।

  • The Art of Gupta India – Joanna Gottfried William.*

संक्षिप्त परिचय

नाम :- गोविन्द नगर बुद्ध-मूर्ति लेख

स्थान :- गोविन्द नगर, मथुरा जनपद, उत्तर प्रदेश।

भाषा :- संस्कृत।

लिपि :- ब्राह्मी ( उत्तरी रूप )।

समय :- गुप्त सम्वत् – ११५ या ४३४ ई० ( ११५ + ३१९ ), कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल।

विषय :- बौद्ध-मूर्ति की स्थापना की विज्ञप्ति।

मूलपाठ

  • सिद्धम् सं १०० [ + ] १० [ + ] ५ दि १० [ + ] ३ [ । ] अस्यां दिवस पूर्व्वायाम् भगवतः दशबलिन शाक्यमुने [ : ]
  • प्रतिमा प्रतिष्ठापिता भिक्षुना सन्घवर्मना [ । ] यदत्त्र पुन्यं तत्मातापित्रोमर्पुवम् कृत्वा सर्वसत्वानाम्
  • सर्व दुःख प्रहानायानुत्तर जा ( ज्ञा ) नाप्तये [ । ] घटिता दिन्नेन।

हिन्दी अनुवाद

सिद्धि हो। सम्वत् ११५ श्रावण दिवस १३ इस दिन को भिक्षु संघवर्मन ने दशबल शाक्यमुनि की [ यह ] प्रतिमा प्रतिष्ठित की। इसका जो पुण्य हो, वह सब माता-पिता, पूर्वजों एवं सभी प्राणियों को मिले सभी लोगों के दुःख-निवारण और अनुत्तर ज्ञान प्राप्ति के निमित्त दिन्न ने [ इस प्रतिमा को ] गढ़ा।

टिप्पणी

यह अभिलेख जिस बुद्ध-मूर्ति के पादासन पर अंकित है, उसी मूर्ति के भिक्षु संघवर्मन द्वारा स्थापित किये जाने की यह प्रज्ञप्ति है। इससे पूर्व मथुरा से प्राप्त गुप्तकाल के केवल दो लेख हैं :

  • एक, तो चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का है जिसमें शिव-लिंग स्थापित किये जाने की घोषणा है। मथुरा स्तम्भ लेख
  • दूसरा, प्रस्तुत लेख से केवल दो वर्ष पूर्व गुप्त संवत् १०७ का कुमारगुप्त प्रथम के काल का ही है। उसमें जैन-मूर्ति की प्रतिष्ठा का उल्लेख है। मथुरा जैन-मूर्ति-लेख

इस प्रकार भगवान बुद्ध की मथुरा से प्राप्त अद्यतन मूर्ति है। इस दृष्टि से इसका महत्त्व है।

गोविन्द नगर बुद्ध-मूर्ति लेख में महात्मा बुद्ध को भगवान, दशबलिन और शाक्यमुनि कहा गया है। भगवान और शाक्यमुनि तो बुद्ध के लिये प्रयु होने वाले बहु-प्रचलित शब्द हैं। दशबलिन विशेषण अनजाना सा लगता है। पर इसका प्रयोग मथुरा से ही प्राप्त एक अन्य किन्तु परवर्ती लेख में भी हुआ है, जिसे मथुरा पादासन लेख गुप्त सम्वत् १६१ का बताया गया है। दशबलिन का अर्थ सम्भवतः दश गुण या बल से रहा हो।

इस अभिलेख की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस मूर्ति के शिल्पकार ने अपना नामोल्लेख किया है और अपना नाम दिन्न बताया है। भारतीय शिल्पकला में अपना नाम उद्भासित करने वाला एकमात्र यही शिल्पी है। दिन्न ने अपने नाम का उल्लेख न केवल इस मूर्ति के लेख में किया है, वरन् कसिया ( कुशीनगर, उ० प्र० ) में प्राप्त बुद्ध की विशालकाय निर्वाण मूर्ति एवं वहीं से प्राप्त एक अन्य बुद्ध मूर्ति उसी की कृति है। उन पर भी उसने अपना नाम अंकित किया है। इस प्रकार यह अभिलेख गुप्त कालीन मूर्तिकला के इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है ।

कुमारगुप्त ( प्रथम ) का बिलसड़ स्तम्भलेख – गुप्त सम्वत् ९६ ( ४१५ ई० )

गढ़वा अभिलेख

कुमारगुप्त प्रथम का उदयगिरि गुहाभिलेख (तृतीय), गुप्त सम्वत् १०६

मथुरा जैन-मूर्ति-लेख : गुप्त सम्वत् १०७ ( ४२६ ई० )

धनैदह ताम्रपत्र ( गुप्त सम्वत् ११३ )

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