भूमिका
१८८६ ई० के आसपास गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) जनपद में सैदपुर के निकट भीतरी ग्राम में मकान के लिए नींव खोदते समय ताँबा-चाँदी मिश्रित धातु की बनी एक मुहर मिली थी। उसे कानपुर के न्यायाधीश सी० जे० निकोल्स को किसी सज्जन ने भेंट की थी। वह अब लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में है। उसमें ६२.६७ प्रतिशत ताँबा, ३६.२२५ प्रतिशत चाँदी तथा सोने की हलकी सी झलक है। आकार में यह अण्डाकार, ऊपर-नीचे नुकीली, पौने छ इञ्च लम्बी और साढ़े चार इञ्च चौड़ी है।
सर्वप्रथम इस मुहर का उल्लेख विंसेंट स्मिथ ने किया था। उनके साथ ही ए० एफ० आर० हार्न ने भी उसे प्रकाशित किया। तत्पश्चात् जे० एफ० फ्लीट ने उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये और उसे सम्पादित कर प्रकाशित किया ।
यह मुहर दो भागों में विभक्त है। ऊपरी भाग में पंख फैलाये गरुड़ का सम्मुख उभरा हुआ अंकन है उनका मानवरूपी मुख भरा हुआ और चौड़ा है, ओठ मोटे हैं; गले में साँप लिपटा हुआ है; उसका फण बायें कन्धे पर उठा हुआ है। गरुड़ के एक ओर चक्र और दूसरी ओर शंख है। अधोभाग में अभिलेख है।
भीतरी की इस मुहर की तरह की साढ़े चार इञ्च लम्बी और तीन इञ्च चौड़ी मुहर की मिट्टी की दो छापें नालन्द (बिहार) के उत्खनन में प्राप्त हुई हैं। इनमें एक तो काफी सुरक्षित है, केवल उसका दाहिना किनारा और पीठ का कुछ भाग क्षतिग्रस्त है; दूसरी छाप खण्डित है; उसका केवल आधा दाहिना भाग ही उपलब्ध है।
मिट्टी की इन दोनों छापों तथा भितरी धातु-मुहर के अभिलेख पंक्तिवत् एक समान हैं।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- कुमारगुप्त तृतीय का भीतरी मुद्रालेख और नालंदा मुद्रालेख
स्थान :- भीतरी, गाजीपुर जनपद; उ० प्र० और नालंदा, बिहार
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- गुप्तकाल, कुमारगुप्त तृतीय का शासनकाल
विषय :- भीतरी मुद्रालेख और नालंदा मुद्रालेख दोनों में गुप्त राजवंश का विवरण मिलता है।
मूलपाठ
१. सर्व्वराजोच्छेत्तु पृथिव्यामप्रतिरथस्य महाराज श्री गुप्त प्रपौत्रस्य महाराज श्री घटोत्कच पौत्रस्य महा-
२. राजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पुत्रस्य लिच्छवि-दौहित्रस्य महादेव्यां कुमारदेव्यामुत्पन्नस्य महाराजाधिराज
३. श्री समुद्रगुप्तस्य पुत्रस्तत्परिगृहीतो महादेव्यां दत्तदेव्यामुत्पन्नस्स्वयंचा-प्रतिरथ परमभाग
४. वतो महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तस्तस्य पुत्रस्तत्पादानुद्ध्यातो महादेव्यां ध्रुवदेव्यामुत्पन्नो महारा-
५. जाधिराज श्री कुमारगुप्तस्तस्य पुत्रस्तत्पादानुद्ध्यातो महादेव्यामनन्तदेव्यामुत्पन्नो महारा
६. जाधिराज श्री पूरुगुप्तस्तस्य पुत्रस्तत्पादानुद्ध्यातो महादेव्यां श्री चन्द्रदेव्यामुत्पन्नो महा-
७. राजाधिराज श्री नरसिंहगुप्तस्तस्य पुत्रस्तत्पादानुद्ध्यातो महादेव्यां श्रीमन्मित्र दे-
८. व्यामुत्पन्न परमभागवतो महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्तः [।]
हिन्दी अनुवाद
सर्वराजोच्छेता (समस्त राजाओं का उन्मूलन करनेवाला) पृथ्वी पर अप्रतिरथ ( जिसके समान कोई दूसरा न हो), महाराज श्री गुप्त के प्रपौत्र, महाराज घटोत्कच के पौत्र, महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त के पुत्र, लिच्छवि-दौहित्र, महादेवी कुमारदेवी के गर्भ से उत्पन्न महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्त; उनके महादेवी दत्तदेवी [के गर्भ] से उत्पन्न पुत्र तथा उनके द्वारा परिगृहीत, स्वयं भी अप्रतिरथ, परमभागवत महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त; उनके पुत्र (तथा) उनके पादानुध्यात, महादेवी ध्रुवदेवी [के गर्भ] से उत्पन्न महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्त, [उनके पुत्र] [तथा] पादानुध्यात महादेवी अनन्तदेवी [के गर्भ] से उत्पन्न महाराजाधिराज श्री पूरुगुप्त; उनके पुत्र [तथा] पादानुध्यात, महादेवी श्री चन्द्रदेवी [के गर्भ] से उत्पन्न महाराजाधिराज श्री नरसिंहगुप्त; उनके पुत्र तथा पादानुध्यात महादेवी श्रीमती मित्रदेवी [के गर्भ] से उत्पन्न परमभागवत महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्त।