सुई-विहार अभिलेख ( Sui-Vihar Inscription )

भूमिका

सुई-विहार अभिलेख पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग २६ किमी० ( ≈ १६ मील ) की दुरी पर पाया गया है। इसकी भाषा संस्कृत प्रभावित प्राकृत है और लिपि खरोष्ठी है। यह अभिलेख ताम्रपत्र पर अंकित कनिष्क प्रथम के राज्यारोहण के ११वें वर्ष अर्थात् ८९ ई० का है। इस स्थान पर सुई-विहार ( सूची-विहार ) नाम का एक स्तूप था। इसी भग्न स्तूप से १८६६ ई० में ७६.२ सेमी० ( ३० इंच ) का वर्गाकार ताम्रपत्र मिला है। यह लेख ४ पंक्ति का है। सम्भवतः अब यह कोलकाता के एसियाटिक सोसाइटी के संग्रह में है।

सुई-विहार अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम :- सुई-विहार अभिलेख ( Sui-Vihar Inscription ), कनिष्क प्रथम के ११वें शासनकाल का सुई-विहार ताम्रपत्र अभिलेख ( Sui-Vihar Copper Plate Inscription of the 11th reign of Kanishka I )

स्थान :- सुई-विहार स्तूप, बहावलपुर, पंजाब, पाकिस्तान

भाषा :- प्राकृत ( संस्कृत प्रभावित )

लिपि :- खरोष्ठी

समय :- ८९ ई० ( कनिष्क प्रथम के शासनकाल का ११वाँ वर्ष )

विषय :- बौद्ध धर्म से सम्बंधित

सुई-विहार अभिलेख : मूलपाठ

१. महरजस्य रजतिरजस्य देवपुत्रस्य क [ निष्कस्य ] संव [ त्स ] रे एकदशे सं १० [ + ] १ दइसिंकस्य मस [ स्य ] दिवसे अठविशे दि २० [ + ] ४ [ + ] ४

२. [ अ ] त्र दिवसे भिक्षुस्य नगदतस्य ध [ र्म ] कथितस्य अचर्यदमत्रत-शिष्यस्य अचर्य-भवे-प्रशिष्यस्य यठिं अरोपयत इह दमने

३. विहरस्वमिणिं उपसिक [ व ] लनंदि- [ कु ] टिंबिनि बलजय-मत च इमं यठि-प्रतिठनं ठप [ इ ] चं अनु परिवरं ददरिं [ । ] सर्वसत्वनं

४. हित-सुखय भवतु [ ॥ ]

हिन्दी अर्थांतर

महाराज रजतिराज देवपुत्र कनिष्क के संवत् ग्यारह (११) के दैशिक नामक मास का २८वाँ दिवस। इस दिन आचार्य भव के प्रशिष्य, आचार्य दमत्रात के शिष्य, धर्म-कथिन ( धर्मोपदेशक ) भिक्षु नागदत्त की यष्टि यहाँ दमन में आरोपित की जाती है। बलनन्दि की कुटुम्बिनी ( भार्या ) बलजय की माता, उपासिका विहारस्वामिनी ने इस यष्टि-प्रतिष्ठान को स्थापित किया [ और ] परिवार सहित दिया। [ इससे ] सर्वसत्यों ( जीवों ) का हित, सुख हो।

  • यह यूनानी ( मकदूनी, मैसिडोनियन ) मास का नाम है जोकि भारतीय पंचांग के ज्येष्ठ-आषाढ़ में पड़ता था।

सुई-विहार ताम्रपत्र अभिलेख : विश्लेषण

इस लेख से ऐसा ज्ञात होता है कि उपासिका विहारस्वामिनी को भिक्षु नागदत्त ने धर्म का उपदेश ( बौद्ध धर्म का ) दिया था। उनके देहावसान के बाद उसने उनकी स्मृति में यष्टि ( लाट, स्तम्भ ) स्थापित किया गया।

इससे धार्मिक जनों की स्मारक-स्तम्भ स्थापित करने की बात ज्ञात होती है।

सुई-विहार कदाचित् सूची-विहार है। हो सकता है सूची का तात्पर्य इसी स्तम्भ से हो और स्तम्भ तथा विहार के होने के कारण इस स्थान को सूची-विहार अर्थात् सुई-विहार कहा जाने लगा हो। इस प्रकार जहाँ यह अभिलेख मिला है उसके निकट ही यह स्तम्भ रहा होगा। सुई-विहार का ही पुराना नाम कदाचित् दमन रहा होगा।

सुईविहार ताम्रपत्र लेख से यह भी अनुमान लगाया जाता है कि धार्मिक शिक्षा के लिए आचार्यों की परम्परा इस समय तक बनने लगी थी। इससे आचार्य भव, उनके गुरु आचार्य दमत्रात और उनके गुरु धर्मकथिन भिक्षु नागदत्त की परम्परा ज्ञात होती है।

सुई विहार ताम्रपत्र अभिलेख में परिवार के मुखिया बलनन्दि, उनकी भार्या जिनको कि उपासिका, विहारस्वामिनी और बलजय की माता बताया गया का विवरण मिलता है।

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