श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख

भूमिका

श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख उत्तर प्रदेश श्रावस्ती जनपद के सहेत-महेत नामक स्थान से मिला है। सहेत- महेत ( प्राचीन श्रावस्ती ) से प्राप्त बोधिसत्त्व की प्रतिमा और उसके छत्र पर यह अंकित है। इन पर सारनाथ बोधिसत्त्व अभिलेख के समान ही ब्राह्मी लिपि में संस्कृत से प्रभावित प्राकृत भाषा में में अभिलेख है और विषय भी लगभग समान है ।

श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम :- श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख ( Shravasti Bodhisattva Inscription ), सहेत-महेत बोधिसत्त्व अभिलेख ( Sahet-Mahet Bodhisattva Inscription ), कनिष्क का श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख ( Shravasti Bodhisattva Inscription of Kanishka )

स्थान :- सहेत-महेत ( प्राचीन श्रावस्ती ), श्रावस्ती जनपद, उत्तर प्रदेश।

भाषा :- प्राकृत ( संस्कृत प्रभावित )

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- कनिष्क का शासनकाल ( प्रथम शताब्दी ई० )

विषय :- बौद्धधर्म से सम्बन्धित

श्रावस्ती बोधिसत्त्व अभिलेख : मूलपाठ

( छत्र पर अंकित )

१. [ महाराजस्य ] … [ दे ] —

२. [ वपुत्रस्य कणिष्कस्य ] [ सं……दि…… ]

३. [ भिक्षुस्य पुष्यबुद्धिस्य ] [ सद्ध्ये ] विहारि —

४. [ स्य भिक्षुस्य … सद्धध्येयविहारि ]

५. स्य [ भिक्षुस्य बलस्य त्रेपिट ] कस्य

६. शावस्तिये [ भगवतो ] [ च ] क [ मे ] कोसंब —

८. [ कुटिये ] [ अचार्य्याणं सर्वास्ति ] वादिनं

९. [ परिग्रहे ] [ ॥ ]

( मूर्ति पर अंकित )

१. [ महाराजस्य देवपुत्रस्य कणिष्कस्य सं.. ..दि ] १० [ + ] ६ [ । ] एतए पूर्वये भिक्षुस्य पुष्य [ बु ] —

२. [ द्धिस्य ] सद्ध्येविहारिस्य भिक्षुस्य ब [ ल ] स्य त्रेपटिकस्य दान बोधिसत्वो छत्रंदाण्डश्च शावतस्तिये भगवतो चंकमे

३. कोसंबकुटिये [ अचर्य्या ] णां सर्वस्तिवादिनं परिगहे [ । ]

हिन्दी अनुवाद

[ महाराज देवपुत्र कनिष्क का राज्य संवत्सर का दिन ] इस पूर्वकथित दिन को भिक्षु पुष्यवृद्ध के साथ तीर्थयात्रा पर निकले त्रिपिटकविद् भिक्षु बल का दान- बोधिसत्त्व [ की मूर्ति ] और दण्ड श्रावस्ती के भगवान् के चंक्रम में के सम्बकुटी में [ स्थापित ] सर्वास्तिवादिन आचार्यों के परिग्रह के लिए।

सहेत-महेत अभिलेख : विश्लेषण

छत्र-दण्ड पर अंकित अभिलेख अत्यन्त क्षतिग्रस्त है परन्तु जो उपलब्ध है उससे यह ज्ञात होता है कि वह मूर्ति पर अंकित अभिलेख की थोड़े-बहुत अन्तर के साथ उसकी प्रतिलिपि ही लगती है।

इस अभिलेख की प्रत्येक पंक्ति में १२ अक्षर होने की कल्पना होती है। इससे अनुमान होता है कि प्रथम पंक्ति में ‘महाराजस्य रजतिराजस्य दे’ रहा होगा।

द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पंक्ति से ऐसा अनुमान होता है कि वहाँ सार्द्धबिहारी ( तीर्थयात्रा के साथी ) के रूप में एक नहीं, दो भिक्षुओं का नाम था। एक तो पुष्यवृद्ध ही रहे होंगे और दूसरे का नाम उपलब्ध नहीं है।

इन लेखों का महत्त्व इस बात में है कि इनसे सिद्ध होता है कि सहेत-महेत के ध्वंसावशेष ही प्राचीन श्रावस्ती है।

लेख में सर्वास्तिवादिन आचार्यों का उल्लेख है। इससे ऐसा जान पड़ता है कि इस सम्प्रदाय की शिक्षा के लिए यहाँ नियमित व्यवस्था थी और उसके लिए आचार्य नियुक्त किये जाते थे।

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