भूमिका
विजयगढ़ का यौधेय शिलालेख संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में है। यह अभिलेख भरतपुर ( राजस्थान ) के बयाना नामक कस्बे से लगभग दो मील ( ≈ ३.२ किमी० ) दक्षिण-पश्चिम स्थित विजयगढ़ नामक पहाड़ी दुर्ग की भित्ति के भीतरी भाग में लगा मिला था। यह मूलतः किसी बड़े लेख का अंश है; इसमें आरम्भ की केवल दो पंक्तियों का अंश उपलब्ध है। उनका उत्तरांश तो अनुपलब्ध है ही, साथ ही यह भी अनिश्चित है कि मूल लेख में कुल कितनी पंक्तियाँ थीं।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- विजयगढ़ का यौधेय शिलालेख ( Yaudheya Rock Edict of Vijaygarh )
स्थान :- विजयगढ़ दुर्ग, बयाना, भरतपुर, राजस्थान
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- लगभग ३०० ई०, गुप्तपूर्वकाल
विषय :- अस्पष्ट
मूलपाठ
१. सिद्धम् [ ॥ ] यौधेय-गण पुरस्कृतस्य महाराज महासेनापते। पु……
२. ब्राह्मण पुरोग-चाधिष्ठान शरीरादि कुशलं पृष्ट्वा लिखत्या स्तिरस्मा…..
हिन्दी अनुवाद
सिद्धि [ ॥ ] यौधय-गण द्वारा पुरस्कृत ( मनोनीत, निर्वाचित ) महाराज महासेनापति पु…… ब्राह्मण, पुर के प्रमुख ( अग्रणी ) तथा अधिष्ठान के [ के अधिकारियों ] के शरीर आदि की कुशल पूछते ( चाहते ) हुए लिखते हैं…….
महत्त्व
विजयगढ़ का यौधेय शिलालेख खण्डित होने के कारण अभिलेख का प्रयोजन नहीं कहा जा सकता। इसका महत्त्व केवल इस बात में माना जाता रहा है कि इससे यौधेय गण के प्रमुख की उपाधि की जानकारी प्राप्त होती थी। प्रशासन के स्वरूप पर उससे कोई प्रकाश नहीं पड़ता था। अगरोहा से प्राप्त मुद्रांक के अनुरूप ही इस लेख की प्रथम पंक्ति है और उसके परिप्रेक्ष्य में इसे सहज भाव से देखा और समझा जा सकता है। स्वतन्त्र रूप में अब इसका कोई महत्त्व नहीं है।
यौधेयों का उल्लेख साहित्यों व अभिलेखों में कई स्थानों पर मिलता है; जैसे
- पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में उन्हें ‘आयुधजीवी संघ’ कहा है।
- रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में इनका विवरण मिलता है।
- लुधियाना से प्राप्त एक मिट्टी की मुहर पर ‘यौधेयानाम् जयमन्यधराणाम्’ लेख उत्कीर्ण है।
- समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की २२वीं पंक्ति में यौधेय का उल्लेख मिलता है।
इस तरह यह ज्ञात होता है कि यौधेय जन उत्तरी राजस्थान और दक्षिणी पंजाब में निवास करते थे। वे एक वीर, साहसी और स्वाभिमानी लोग थे। वे शकों, कुषाणों संघर्षरत रहे। अंततः वे गुप्त साम्राज्य में विलीन हो गये।
यौधेयों के सिक्के सहारनपुर, देहरादून, देहली, रोहतक, लुधियाना और काँगड़ा मिले हैं। उनके प्रारम्भिक सिक्कों में उनको यौधेयन जबकि बाद के सिक्कों में यौधेय गणजनस्य कहा गया है। यौधेय लोग युद्ध के देवता कार्तिकेय के उपासक थे।