भूमिका
बुधगुप्त का राजघाट स्तम्भलेख ४ फुट ४ इंच उँचे एक स्तम्भ पर अंकित है। इसके चारों ओर भगवान विष्णु के चार अवतारों की मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं। यह स्तम्भ वाराणसी के काशी रेलवे स्टेशन के निकट १९४०-४१ ई० में मिट्टी निकालते समय में प्राप्त हुआ था। सम्प्रति यह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘भारत कला भवन’ में सुरक्षित रखा गया है। इस स्तम्भलेख की ओर सर्वप्रथम अद्रीश बनर्जी महोदय ने ध्यान दिया तदुपरांत दिनेशचन्द्र सरकार ने इसको प्रकाशित किया।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- राजघाट स्तम्भलेख
स्थान :- राजघाट, वाराणसी; उत्तर प्रदेश
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- गुप्त सम्वत् १५९ (४७८ ई०); बुधगुप्त का शासनकाल
विषय :- स्तम्भ स्थापना की सामान्य विज्ञप्ति
मूलपाठ
१. स[म्वत्] १००(+)५०(+)९ मार्ग्ग-दि [२०] (+) ८ महाराजाधिरा[ज]-
२. बुध[गु]प्त-राज्ये पार्वरिक-वास्तव्य-मार-
३. [विष ?] दुहिता (त्रा) साभाटि (?) दुहि[त्रा] च दामस्वा-
४. मि[न्या] शिलास्तम्भ स्था[पि]तः [॥]
हिन्दी अनुवाद
सम्वत् १५९ मार्ग[शीर्ष] दिन २८। महाराजाधिराज बुधगुप्त के राज्य में पार्वरिक निवासी भार[विष] की पुत्री साभाटि (?) की बेटी दामस्वामिनी द्वारा स्थापित शिलास्तम्भ।
टिप्पणी
राजघाट स्तम्भलेख स्तम्भ की स्थापना की सामान्य विज्ञप्ति है। इस अभिलेख में स्तम्भ की स्थापना के उद्देश्य की चर्चा नहीं है। प्रस्तर स्तम्भ पर उकेरी गयी भगवान विष्णु की मूर्ति से यह अनुमान किया जाता है कि यह वैष्णव धर्म से सम्बन्धित किसी मंदिर या मंडप में लगाया गया होगा।
इसमें तत्कालीन गुप्त सम्राट बुधगुप्त का उल्लेख है और साथ ही गुप्त सम्वत् का भी।
बुधगुप्त का सारनाथ बुद्ध-मूर्ति-लेख; गुप्त सम्वत् १५७ ( ४७६-७७ ई० )