भूमिका
यज्ञश्री शातकर्णि का नासिक गुहालेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में नासिक ( पाण्डुलेण ) स्थित गुहा २० के बरामदे की दीवार पर अंकित है।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- यज्ञश्री शातकर्णि का नासिक गुहालेख ( राज्यवर्ष ७ )
स्थान :- नासिक, महाराष्ट्र
भाषा :- प्राकृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- यज्ञश्री शातकर्णि का ७वाँ राज्यवर्ष
विषय :- गुहा निर्माण का विवरण
यज्ञश्री शातकर्णि का नासिक गुहालेख : मूलपाठ
१. सिधं [।] रञो गोतमिपुतस सामि सिरि-यत्र-सातकणिस संवछरे सातमे ७ हेमताण पखे ततिये ३
२. दिवसे पथमें कोसिकस महासे [ णा ] पतिस [ भ ] वगोपस भरिजाय महासेणापतिणिय वासुय लेण
३. बोपकि-यति-सुजमाने अपयवसित-समाने बहुकाणि वरिसाणि उकुते पयवसाण नितो चातुदि-
४. सस च भिखु-सधस आवसो दतो ति॥
हिन्दी अनुवाद
सिद्धम्। राजा गौतमीपुत्र स्वामी श्री यज्ञ-शातकर्णि के संवत्सर ७ के हेमन्त के तृतीय पक्ष का प्रथम दिवस ( अर्थात् पौष कृष्ण पक्ष का प्रथम दिवस )। कौशिक [ गोत्र ] के महासेनापति भवगोप की भार्य्या [ पत्नी ] महासेनापत्नी वसु ने यति बोपकि द्वारा उत्खनित कराये गये लयण ( गुफा ) को, जो अपूर्ण होने के कारण बहुत वर्षों से अवहेलित था, पूर्ण कराया और वास के निमित्त चारों दिशाओं के भिक्षुसंघ को प्रदान दिया।
विश्लेषण
इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि स्वयं साधु ( यति ) लोग भी लयण उत्खनन करने का साहस करते थे पर कदाचित् धनाभाव के कारण सफल नहीं हो पाते थे। ऐसे ही एक गुहा के पूर्ण कराने का उल्लेख इस अभिलेख में है। इस अभिलेख की उल्लेखनीय बात यह है कि महासेनापति की भार्या ने अपने को महासेनापत्नी कहा है। सामान्यतः पति के पद, विरुद या उपाधि से राजपत्नी के अतिरिक्त दूसरा नहीं पुकारा जाता। ऐसे में किसी को अपने को महासेनापत्नी कहना दुस्साहस ही कहा जायेगा। किन्तु ऐसा कोई अकारण नहीं करेगा। बहुत सम्भव सातवाहन – शासन-व्यवस्था में राज्य के उच्च पदाधिकारियों की पत्नियों को उनके पति के पद, विरुद या उपाधि से अभिहित किये जाने की परम्परा रही हो। पर ऐसा कोई दूसरा उदाहरण इसके समर्थन के लिए प्राप्त नहीं है। एक दूसरा अभिप्राय यह भी हो सकता है कि वसु स्वयं किसी नारी सेना की प्रधान रही हो और अपने इस अधिकार से महासेनापत्नी कही जाती रही हो। पर अब तक किसी भी सूत्र से प्राचीन भारत में नारी सेना अज्ञात है। इस कारण पहली सम्भावना को ही ग्रहण करना उचित होगा।
नासिक गुहा अभिलेख : सातवाहन नरेश कृष्ण
गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख ( १८वाँ वर्ष )