मथुरा जिन-मूर्ति अभिलेख

भूमिका

मथुरा जिन-मूर्ति अभिलेख कंकाली टीला ( मथुरा जनपद ) उत्तर प्रदेश से मिली है। यह लेख संस्कृत प्रभावित प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में अंकित है। वर्तमान में यह अभिलेख लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है।

मथुरा जिन-मूर्ति अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम :- मथुरा जिन-मूर्ति अभिलेख या मथुरा जैन-मूर्ति अभिलेख ( Mathura Jin-Idol Inscription )

स्थान :- कंकाली टीला, मथुरा जनपद, उत्तर प्रदेश

भाषा :- प्राकृत ( संस्कृत प्रभावित )

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- कुषाणवंशी शासक वासुदेव के शासनकाल काल का। कनिष्क सम्वत् ८० ( शक सम्वत् ) अर्थात् १५८ ई०।

विषय :- अधूरा लेख, जैन धर्म सम्बन्धी।

मथुरा जिन-मूर्ति अभिलेख : मूलपाठ

१. सिधं [ ॥ ] महरजस्य व [ ] सुदेवस्य सं ८० हमव ( हैमंत ) १ दि १० [ + ] २ [ । ] एतस पुर्वा [  ] यां सनक [ ददस ? ]

२. घि [ त्र ] संघतिधिस वधुये बलस्य …….. [ ॥ ]

हिन्दी अनुवाद

सिद्धम्। महाराज वासुदेव के सं ८० [ के ] हेमन्त का प्रथम मास, दिन १२। इस पूर्व [ कथित दिवस को ] सनकदास की दुहिता ( पुत्री ), संघतिथि की वधू ( पत्नी ), बल की [ माता ….. ]

मथुरा जैन-मूर्ति अभिलेख : विश्लेषण

यह लेख अपूर्ण है। जैन प्रतिमा पर अंकित होने के कारण यह सहज ही अनुमानित किया जा सकता है कि इस अभिलेख में जैन मूर्ति के प्रतिष्ठित करने और दान की बात कही गयी होगी।

ऐतिहासिक दृष्टि से इसका महत्त्व है कि इसमें तिथि का और शासक का उल्लेख है। परन्तु साथ ही यहाँ पर कुषाणवंशी शासकों के लिए प्रयुक्त विरुदों ( जैसे – महाराज रजतराज, देवपुत्र ) का प्रयोग नहीं मिलता है। यहाँ पर वासुदेव के लिए मात्र मात्र माहाराज विरुद प्रयुक्त हुआ है।

धार्मिक दृष्टि से मथुरा ब्राह्मण व बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का भी केंद्र था। यहीं के कंकाली टीले से ही मथुरा आयागपट्ट अभिलेख भी जैन धर्म की उन्नति दशा का द्योतक है।

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