भूमिका
सप्तस्तम्भ लेखों में से दूसरा स्तम्भलेख अशोक द्वारा जीव हिंसा न करने को कहा गया है। इसमें वे कहते हैं कि धर्म क्या है? फिर आगे वे इसका उत्तर भी देते हैं।
दिल्ली-टोपरा स्तम्भ लेख सबसे प्रसिद्ध स्तम्भ लेख है। इसकी प्रसिद्ध का कारण यह है कि केवल इसी पर अशोक के सातों लेख अंकित है जबकि अन्य स्तम्भों पर छः लेख ही प्राप्त होते हैं।
मध्यकालीन इतिहासकार शम्स-ए-शिराज़ के अनुसार टोपरा से इसको फिरोजशाह तुगलक ने लाकर दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में स्थापित स्थापित करवा दिया था। इसीलिए इसको दिल्ली-टोपरा स्तम्भ कहा जाता है। इसके कुछ अन्य नाम भी हैं; जैसे – भीमसेन की लाट, दिल्ली-शिवालिक लाट, सुनहरी लाट, फिरोजशाह की लाट आदि।
दूसरा स्तम्भलेख : संक्षिप्त परिचय
नाम – दूसरा स्तम्भलेख या अशोक का द्वितीय स्तम्भलेख ( Ashoka’s Second Pillar Edict )
स्थान – यह मूलतः टोपरा, हरियाणा के अम्बाला जनपद में स्थापित था, जिसको दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुग़लक़ ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में स्थापित कराया। इसी से इसको दिल्ली-टोपरा स्तम्भ भी कहते है।
भाषा – प्राकृत
लिपि – ब्राह्मी
समय – मौर्यकाल
विषय – जीवहिंसा का विरोध, धर्म की परिभाषा।
दूसरा स्तम्भलेख : मूलपाठ
१ – देवानंपिये पियदसि लाज
२ – हेवं आहा [ । ] धंमे साधू [ । ] कियं चु धंमे ति [ । ] अपासिनवे बहुकयाने
३ – दया दाने सचे सोचये [ । ] चखुदाने पि में बहुविधे दिंने [ । ] दुपद-
४ – चतुपदेसु पखि वालिचलेसु विविधे में अनुगहे कटे आ पान-
५ – दाखिनाये [ । ] अंनानि पि च मे बहूनि कयानि कटानि [ । ] एताये मे
६ – अठाये इयं धंम लिपि लिखापि हेवं अनुपटिपजन्तु चिलं-
७ – थितिका च होतू ती ति [ । ] ये च हेवं संपटिपजीसति से सुकटं कंछती ति [ । ]
संस्कृत छाया
देवानां प्रियः प्रियदर्शी राजा एवं आह। धर्मः साधु। कियान तु धर्मः इति? अल्पासिनवं, बहुकल्याणं, दया, दानं, सत्यं शौचम्। चक्षुदानम् अपि मया बहुविधं दत्तम्। द्विपदचतुष्पदेषु पक्षिवारिचरेषु विविधः मया अनुग्रहः कृतः आ प्राणदाक्षिण्यात्। अन्यानि अपि च मया बहूनि कल्याणानि कृतानि। एतस्मै मया अर्थाय इयं धर्मलिपिः लेखिता — एवम् अनुप्रतिपद्यताम् चिरस्थितिका च भवतु इति। यः च एवं सम्प्रतिपेत्स्यते सः सुकृतं करिष्यति इति।
अनुवाद
१ – देवों का प्रिय प्रियदर्शी राजा
२ – इस प्रकार कहता है — धर्म साधु ( उत्तम ) है। किन्तु धर्म क्या है ? कम [ से कम ] पाप, बहुत कल्याण,
३ – दया, दान, सत्य और शौच ( पवित्रता )। मेरे द्वारा बहुत से चक्षुदान भी किया गया है। द्विपदों,
४ – चतुष्पदों, पक्षियों ( और ) वारिचरों ( जलचर प्राणियों ) पर मेरे द्वारा विविध अनुग्रह-प्राण
५ – दक्षिणा तक किये गये हैं। अन्य भी बहुत कल्याण मेरे द्वारा किये गये हैं। इस अर्थ ( उद्देश्य ) से
६ – मेरे द्वारा यह धर्मलिपि लिखवायी गयी ( है कि लोग ) इसी प्रकार
७ – अनुसरण करें [ और यह ] चिरस्थित हो। जो इस प्रकार सम्यक् रूप से प्रतिपादन करेगा, वह सुकृत ( पुण्य ) करेगा।
टिप्पणी
इस अभिलेख में अशोक ने धर्म की परिभाषा की है और अपने द्वारा किये गये कल्याणकारी कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा है कि लोग उसका अनुकरण करें।
यह अशोक का सबसे छोटा स्तम्भलेख है।
अशोक ने स्तम्भलेख में जीव हत्या का विरोध किया है। बौद्ध ग्रंथ दीयनिकाय के सिगालवादसूत्त में भी इसी प्रकार का विचार मिलता है।
ब्राह्मण ग्रंथ याज्ञवल्क्य स्मृति में इस तरह व्यक्त किया गया है — अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनियहः। दानं दमो दया क्षान्ति सर्वेषां धर्मसाधनमा॥
विष्णुपुराण में इसको इस तरह कहा गया है — एवं क्षमा सत्यं दमः शौचं दानमिन्द्रियसंयमः। अहिंसा गुरुशुश्रूषा तीर्थानुसरण दया॥ आर्जवं लोभशून्यत्वंन देवब्राह्मणपूजनम्। अन्भ्यसूया च तथा धर्मद्धः सामान्य उच्यते॥