भूमिका
तक्षशिला ताम्रलेख १४ इंच लम्बे और ३ इंच चौड़े ताम्रपत्र पर अंकित है। यह आभिलेख तीन टुकड़ों में खण्डित है। इसे तक्षशिला, रावलपिंडी, पाकिस्तान में कहीं मिला था और इसके प्राप्ति स्थान को निश्चित रूप से नहीं जाना जा सका है। वर्तमान में यह ताम्रलेख लन्दन के रायल एसियाटिक सोसाइटी में सुरक्षित है। यह लेख खरोष्ठी लिपि और प्राकृत भाषा में पाँच पंक्तियों में अंकित है। इसमें अक्षर की रेखाएँ बिन्दुओं द्वारा अंकित की गयी हैं।
तक्षशिला ताम्रलेख : संक्षिप्त परिचय
नाम :- तक्षखिला ताम्रलेख ( Taxila Copper plate ), पतिक का तक्षशिला ताम्रलेख ( Patika copper plate ), मोगा अभिलेख ( Moga inscription )
स्थान :- तक्षशिला, रावलपिंडी; पाकिस्तान। वर्तमान में रॉयल एशियाटिक सोसायटी, लंदन में है।
भाषा :- प्राकृत
लिपि :- खरोष्ठी
समय :- प्रथम शताब्दी ई०पू० से पहली शताब्दी ई० के मध्य
विषय :- बौद्ध धर्म से सम्बंधित
तक्षशिला ताम्रलेख : मूलपाठ
१. [ संवत्स ] रये अठसततिमए २० [+] २० [+] २० [+] १० [+] ४ [+] ४ महरयस महंतस [ मो ] गस प [ ने ] मस मसस दिवसे पंचमे ४ [+] १ [ । ] एतये पुर्वये क्षहर [ तस ]
२. चुख्ससच क्षत्रपस लिअको कुसुलुको नम तस पुत्रो [ पति ] [ को ] [ । ] तखशिलये नगरे उतरेण प्रचु-देशो क्षेम नम [ । ] अत्र
३. [ दे ] शे पतिको अप्रतिठवित भगवत शकमुनिस शरिरं [ प्र ] [ ति ] थ- [ वेति ] [ सं ] घरमं च सर्व-बुधन पुयए मत-पितरं पुययं [ तो ]
४. क्षत्रपस स-पुत्र-दरस अयु-बल वर्धिए भ्रतर सर्व [ च ] [ ञतिग ] घवस च पुययंतो महदनपति पतिक सज उव [ झ ] ए [ न ]
५. रोहिणिमित्रेण य इम [ मि? ] संघरमे नवकमिक [ । ]
६. पतिकस क्षत्रप लिअक [ ॥ ]
हिन्दी अनुवाद
महाराज महान् मोग के संवत्सर अठत्तर ( ७८ )१ के पनेमास२ नामक मास के पाँचवें दिवस को। इस पूर्व कथित [ तिथि ] को चुख्स का क्षहरात और क्षत्रप लियक कुसुलक नामक [ था ] उसका पुत्र पतिक [ है ]। तक्षशिला नगर३ की उत्तर दिशा में क्षेम नाम ( का ) पूर्वप्रदेश [ है ]। इस देश में पतिक ने अप्रतिष्ठित ( जो पहले प्रतिष्ठित नहीं हुआ था ) भगवान् शाक्य मुनि का शरीर ( अस्थि-अवशेष ) एवं संघाराम प्रतिष्ठित किया सर्व बुद्धों की पूजा के लिए, माता-पिता की पूजा के लिए, पुत्र-पुत्री सहित क्षत्रप के आयुर्बल के लिए, सभी भाइयों, जातिवासियों ( ज्ञातिक ) और पड़ोसियों ( अधिवासी ) के लिए। महादानपति पतिक ने उपाध्याय रोहिणीमित्र के साथ, जो इस संघाराम का नवकर्मिक ( निर्माण-कार्य की व्यवस्था करनेवाला ) है, पूजा कर। पतिक का क्षत्रप लियक।
- यहाँ खरोष्ठी की अंक-लेखन पद्धति द्रष्टव्य है। ७८ के लिए तीन बार २०, फिर १० और दो बार ४ लिखा गया है।१
- यह यूनानी ( मेसिडोनियन ) मास का नाम है। यह मास भारतीय गणना के अनुसार आषाढ़-श्रावण के महीनों में पड़ता है।२
- दिनेशचन्द्र सरकार तक्षशिला नगर का सम्बन्ध पतिक से जोड़ते हैं – पतिकः तक्षशिलायां नगरे [ स्थितः ] (पतिक जो तक्षशिला नगर में स्थित था)। किन्तु डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त तक्षशिला का सम्बन्ध अगले अंश से जोड़ते हैं।३
तक्षशिला ताम्रपत्र : विश्लेषण
तक्षशिला ताम्रपत्र से शक शासकों द्वारा बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठा का परिचय मिलता है। परन्तु इसका महत्त्व राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से ही विशेष आँका जाता है।
इस अभिलेख में जिस महाराज महान् मोग ( Moga ) का उल्लेख है, उसकी पहचान सिक्कों से ज्ञात मोअ ( Maues ) से की जाती है। इन सिक्कों पर खरोष्ठी लेख रजतिरजस महतस मोअस प्राप्त होता है। किन्तु निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि अभिलेख का मोग और सिक्कों का मोअ एक ही है। कोई कारण नहीं है कि एक ही व्यक्ति को एक स्थान पर मोग और दूसरे स्थान पर मोअ लिखा जाय। इसके साथ-साथ अभिलेख में वर्णित सम्वत् के सम्बन्ध में भी प्रश्न उठता है। यह संवत् मोग का अपना है अथवा कनिष्क सम्वत् की तरह पहले से चला आता हुआ संवत् है और मोग के शासन- काल में उक्त संवत्सर में अभिलेख के अंकित होने मात्र का द्योतक है। इन दोनों ही बातें अभी तक अनुत्तरित हैं।
इस अभिलेख का सम्बन्ध मुख्य रूप से लियक कुसुल और पतिक नामक दो व्यक्तियों से है। इस अभिलेख में लियक कुसुल को क्षहरात और क्षत्रप कहा गया है और पतिक को केवल महादानपति कहा गया है। इससे प्रकट होता है कि इस अभिलेख के अंकन के समय वह कोई शासनिक अधिकारी नहीं था। क्षहरात शकों के किसी शाखा, वंश अथवा कुल का नाम था। पश्चिमी शक क्षत्रप भूमक और नहपान ने अपने सिक्कों पर अपने को क्षहरात कहा है। वंश के रूप में क्षहरात का उल्लेख सातवाहन-नरेश पुलुमावि के नासिक अभिलेख में भी हुआ है।
कुछ विद्वानों की धारणा है कि जिस कुसुलक और पतिक का उल्लेख मथुरा सिंह-स्तम्भशीर्ष-अभिलेख में हुआ है, उन्हीं का उल्लेख इस अभिलेख में भी है। कुछ लोग कुसुलक को वंश अथवा कुल का नाम अनुमान करते हैं। उनके अनुसार इस लेख के पतिक के पिता का नाम लियक था। मथुरा सिंह-स्तम्भशीर्ष-अभिलेख में पिता का नाम नहीं है । वहाँ केवल ‘कुसुल’ का उल्लेख है जो सन्दर्भ के अनुसार वंश-बोधक की अपेक्षा व्यक्तिवाचक है। यदि इसे वंश-बोधक स्वीकार करें तब भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वह लियक का ही पुत्र था।
लियक कुजूल की पहचान लोग कुछ सिक्कों पर अंकित लियक कुजूल ( Liako Kozoylo ) से करते हैं। ये सिक्के यवन यूक्रितिद के सिक्कों के अनुकरण पर बने जान पड़ते हैं। परन्तु इस आधार पर लियक का समय निर्धारित नहीं किया जा सका। लियक कुसुलक के सम्बन्ध में इतनी सूचना और उपलब्ध है कि वह चुख्स का शासक था। चुख्स की पहचान के लिए बुह्लर ने संस्कृत शब्द चोस्क की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। त्रिकाण्डशेष नामक कोष के अनुसार घोड़ों को चोस्क कहते थे। जिस प्रकार सिन्धु के घोड़ों को सैन्धव कहते हैं उसी प्रकार चोस्क का प्रयोग भी सिन्धु नदी के तटवर्ती प्रदेश से आनेवाले घोड़ों के लिए किया गया हो तो आश्चर्य की बात नहीं। अतः इस आधार पर बुह्लर क्षत्रप लियक कुसुलक को सिन्धु तक विस्तृत पूर्वी पंजाब का शासक अनुमान करते हैं। आरेल स्टाइन के मतानुसार चुस्ख अटक जिले के उत्तर, तक्षशिला के निकट स्थित चच ( चछ ) नामक समतल प्रदेश को कहते थे। अभिलेख में तक्षशिला के उल्लेख को देखते हुए यह पहचान अधिक संगत जान पड़ता है यद्यपि चुस्ख और चच ( चछ ) में कोई ध्वनि-साम्य नहीं है।