उषावदत्त का नासिक गुहालेख

भूमिका

नहपानकालीन उषावदत्त का नासिक गुहालेख ( वर्ष ४१, ४२, ४५ ) लयण संख्या १० में बायीं ओर स्थित कोठरी के द्वार के ऊपर नहपान की पुत्री और उषवदात ( ऋषभदत्त ) की पत्नी दक्षमित्रा के लेख के नीचे अंकित है। इसमें इस कोठरी ( ओवरक ) के दान की चर्चा है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- उषावदत्त का नासिक गुहालेख ( Nasik cave Inscription of Ushavadatta ), उषावदत्त का एक नाम ऋषभदत्त ( Rishabhadatta ) भी मिलता है।

स्थान :- नासिक, गुहा संख्या – १०, महाराष्ट्र

भाषा :- प्राकृत

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- नहपान का शासनकाल ( ≈ ११९ से १२४ वर्ष )

विषय :- नहपान के जामाता ऋषभदत्त ( उषावदत्त ) द्वारा गुहा निर्माण और दान की चर्चा

उषावदत्त का नासिक गुहालेख : मूलपाठ

१. सिघं [ ॥ ] वसे ४० (+) २ वेसाख-मासे राञो क्षहरातस क्षत्रपस नहपानस जामातरा दीनीक-पुत्रेन उषवदतेन संघस चातुदिसस इमं लेणं नियातितं [ । ] दत चाने अक्षय निवि काहापण-सहस्रा-

२. नि त्रोणि ३००० संघस चातुदिवस ये इयस्मि लेणे वसांतानं भविसंति चिवरिक कुशाणमूले च [ । ] एते च काहापणा प्रयुता गोवधनं वाथवासु श्रेणिसु [ । ] कोलीक निकाये २००० वृधि पडिक शत अपर कोलीक निका-

३. ये १००० वधि पा [ यू ] न- [ प ] डिक शत [ । ] एते च काहापणा [ अ ] पडिदातवा वधि-भोजा [ । ] एतो चिवरिक-सहस्रानि बे २००० ये पडिके सते [ । ] एतो मम लेणे वसवुथान भिखुनं वीसाय एकीकस चिवरिक वारसक [ । ] य सहस्त्र प्रयुतं पायुन पडिके शते एतो कुशन-

४. मूल [ । ] कापूराहारे च गाम चिखलपद्रे दतानि नालिगेरान मुल-सहस्राणि अठ ८००० [ । ] एत च सर्व स्रावित निगम-सभाय निबन्ध च फलकवारे चरित्रतो ति [ । ] भूयोनेन दतं वसे ४० (+) १ कातिक शूधे पनरस पुवाक वसे ४० (+) ५

५. पनरस नियुतं भगवतां देवानं ब्राह्मणानं च कार्षापण-सहस्राणि सतरि ७००० पंचत्रिंशक सुवण कृता दिन सुवर्ण सहस्रणं मूल्यं [ ॥ ]

६. फलकवारे चरित्रतोति [ ॥ ]

हिन्दी अनुवाद

१. सिद्धम्॥ वर्ष ४२ के वैशाख मास में क्षहरात राजा क्षत्रप नहपान के जामाता, दीनीकपुत्र ऋषभदत्त ( उषवदात ) द्वारा चारों दिशाओं के संघ ( भिक्षु-संघ ) के लिए यह लयण ( गुहा ) निर्मित कराया गया। तथा उसने

२. तीन सहस्र ( ३००० ) [ कार्षापण ] इस लयण में निवास करनेवाले चारों दिशाओं के ( भिक्षु ) संघ के चीवर और कुशणमूल [ के लिए ] अक्षयनीवी के रूप में दिये। ये कार्षापण गोवर्धन स्थित श्रेणियों के पास जमा किये गये हैं। कोलिक निकाय को २००० कार्षापण एक पादिक प्रतिशत ब्याज ( वृद्धि ) पर और दूसरे ( अपर ) कोलिक निकाय को

३. १००० पौन पादिक ( पाद-ऊन-पादिक ) प्रतिशत ब्याज पर। ये सब [ कार्षापण ] अप्रतिदातव्य ( न लौटानेवाले ) और [ केवल ] ब्याज ( वृद्धि ) प्राप्त करनेवाले हैं। इनमें से जो २००० ( कार्षापण ) एक पादिक प्रतिशत [ सूद पर ] हैं, वे चीवर के लिए हैं। उनसे मेरे इस लयण ( गुहा ) में वास करनेवाले २० भिक्षुओं में से प्रत्येक को प्रतिवर्ष एक-एक चीवर [ दिया जायेगा ]। जो एक हजार पौन पादिक प्रतिशत [ सूद पर ] हैं वे कुशणमूल के लिए हैं।

४. कर्पूर-आहार स्थित चिखलपद्र ग्राम में जो नारियल का बाग है, वह भी दिया जिसका मूल्य ८००० [ कार्षापण ] है। यह सब नियमानुसार निगम-सभा में श्रवित किया और फलक पर चित्रित (अंकित) किया गया। वर्ष ४१ के कार्तिक शुक्ल १५ को यह जो दिया गया था [ उसके बदले ]

५. वर्ष ४५ के पन्द्रहवें दिन भगवान ( बुद्ध ), देवताओं और ब्राह्मणों के लिए ७००० कार्षापण और हजार कार्षापण का मूल्य ३५ सुवर्ण के रूप में दिया गया।

६. यह फलक पर चित्रित ( अंकित ) किया गया।

उषावदत्त का नासिक गुहालेख : महत्त्व

यह अभिलेख पश्चिमी भारत के क्षहरात-वंशी शक क्षत्रप नहपान के जामाता ऋषभदत्त द्वारा उत्कीर्ण कराया गया है।

इसमें वर्ष ४२, ४१ और ४५ की तीन तिथियाँ अंकित हैं जिनमें पहली तिथि के साथ केवल मास का, दूसरे के साथ मास और दिन का और तीसरेके साथ केवल दिन का उल्लेख है। वर्ष का अकेले अथवा मास और दिन दोनों के साथ उल्लेख अभिलेखों में सामान्यतः पाया जाता है। परन्तु वर्ष के साथ केवल मास अथवा दिन का उल्लेख असाधारण है। पहली तिथि में मास के साथ दिन का उल्लेख न किया जाना उतनी खटकनेवाली बात नहीं है जितना मास का उल्लेख न कर केवल दिन का उल्लेख। यह लिपि की भूल है अथवा जान-बूझकर ऐसा किया गया है कहना मुश्किल है।

इस अभिलेख में तीन तिथियों के उल्लेख से ऐसा भ्रम होता है कि इसमें भिन्न-भिन्न तीन दानों का उल्लेख है। वस्तुतः इसमें केवल दो ही दानों की चर्चा है। अन्तिम दो तिथियों का सम्बन्ध एक ही दान से है।

इस अभिलेख के पूर्वांश से ज्ञात होता है कि ऋषभदत्त ने वह गुफा निर्माण कराया था जिसमें अभिलेख अंकित है। इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि यह गुहा किसी संघ या सम्प्रदाय विशेष के लिये न था वरन् देश में प्रचलित सभी संघों के भिक्षु इस गुहा में रह सकते थे। इस लयण निर्माण के साथ-साथ ऋषभदत्त ने ३००० कार्षापण से एक अक्षयनीवि की स्थापना की थी और उसने इस धन को दो श्रेणियों अथवा निकायों को दिया था। यह धन एक प्रकार का ( आधुनिक शब्दावली में ) सावधि जमा ( Fixed Deposit ) था; किन्तु वह अप्रतिदातव्य था अर्थात् निकाय, जिनको यह धन दिया था, वे इस धन को किसी को दे या लौटा नहीं सकते थे। वह उनके पास स्थायी रूप से जमा किया गया था; उसका सूद ही वे दे सकते थे और उस सूद का ही निर्दिष्ट कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता था। ऋषभदत्त ने अपना यह धन दो भिन्न निकायों को और सूद के दो भिन्न दरों पर दिया था। दरों की यह भिन्नता आर्थिक दृष्टि से विचारणीय है।

एक निकाय को दिये गये धन से गुहा में रहनेवाले २० भिक्षुओं को चीवर देने की व्यवस्था थी। इसके लिए मिलनेवाला सूद २० कार्षापण था। दूसरे निकाय को दिये गये धन से केवल ७ कार्षापण सूद की उपलब्धि थी। इससे कुशणमूल की व्यवस्था थी। कुशणमूल से क्या तात्पर्य है यह भी तर्क स्पष्ट नहीं हो पाया है।

द्रष्टव्य है कि दोनों ही अक्षयनीवि कोलिक ( जुलाहों ) की दो श्रेणियों ( निकायों ) में स्थापित किये गये थे। चीवर के लिये जुलाहों की श्रेणी में नीवि की स्थापना स्वाभाविक है। वे कपड़ों की व्यवस्था स्वयं कर सकते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में दूसरी कोलिक श्रेणी में नीवि की स्थापना को देखने से ऐसा जान पड़ता है कि कुशण-मूल का भी तात्पर्य किसी प्रकार के वस्त्र से ही होगा जो भिक्षुओं के काम आता रहा होगा।

इन दोनों अक्षयनीवियों और उनके उपयोग की चर्चा के बाद ८००० कार्षापण मूल्य के एक नारियल के बगीचे के दिये जाने का उल्लेख है। इससे धारणा होती है कि यह दान पूर्वदान के ही क्रम में है। परन्तु यह भी सम्भव कि यह दान उससे स्वतन्त्र हो और पूर्वदान से एक वर्ष पहले वर्ष ४१ में दिया गया था। बाद में वर्ष ४५ में इस बगीचे के बदले ८००० कार्षापण नकद दिये गये, जिनमें ७००० तो कार्षापण के रूप में और शेष एक हजार कार्षापण के बदले ३५ सुवर्ण दिये गये। इससे प्रकट होता है कि तत्कालीन सुवर्ण और कार्षापण का पारस्परिक मान लगभग १ और २८.५७ का था। आर्थिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण सूचना है।

इस अभिलेख से एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह ज्ञात होती है कि दान अथवा नीवि व्यवस्था की घोषणा निगम सभा में की जाती थी और उसका फलक पर आलेखन होता था।

इसके अतिरिक्त इस अभिलेख से निम्न जानकारी मिलती है :-

  • उषावदत्त ( ऋषभदत्त ) के पिता का नाम दिनिक ( Dinika ) था।
  • उषावदत्त ( ऋषभदत्त ) क्षहरातवंशी शक शासक नहपान ( Nahapana ) का जामाता था।
  • एक अन्य नासिक अभिलेख जो इसी के ऊपर अंकित है से ज्ञात होता है कि उषावदत्त की भार्या दक्षमित्रा थी। इसको दक्षमित्रा का नासिका गुहालेख कहते हैं।

उषावदत्त का तिथिविहीन नासिक गुहालेख

उषावदत्त का कार्ले अभिलेख

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