चन्द्रगुप्त द्वितीय का उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय )

परिचय

उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय ) विदिशा के उदयगिरि पहाड़ी से मिला है। यह अभिलेख गुहा के छत पर अंकित है। गुहा के छत का ऊपरी भाग तवा के आकार का है; इस कारण यह गुहा ‘तवा-गुहा‘ के नाम से पुकारी जाती। है। इस गुहा के पिछली दीवाल पर प्रवेश-द्वार से थोड़ा बायें यह अभिलेख अंकित है। चट्टान के चिप्पड़ उखड़ जाने के कारण लेख काफी क्षतिग्रस्त हो गया है।
इसे एलेक्जेंडर कनिंघम ने ढूंढ निकाला और १८८० ई० में इसका पाठ प्रकाशित किया था। १८८२ ई० में हुल्श ने उनके पाठ के कुछ त्रुटियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया था। फ्लीट ने इसे सम्पादित कर प्रकाशित किया। तदनन्तर ब्हुहलर ने उनके पाठ में कुछ संशोधन प्रस्तुत किये।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- चन्द्रगुप्त द्वितीय का उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय ) [ Udaigiri Cave Inscription ( second ) of Chandragupta – II ]

स्थान :- उदयगिरि की तवा गुहा, विदिशा जनपद, मध्य प्रदेश

भाषा :- संस्कृत

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल

विषय :- चन्द्रगुप्त द्वितीय का अपने संधि-विग्राहक सचिव वीरसेन शैव के साथ उदयगिरि में आगमन। वीरसेन द्वारा यहाँ एक शैव गुहा के निर्माण का विवरण।

मूलपाठ

१. सिद्धम् [ ॥ ] यदं तज्जर्योतिरर्क्काममुर्व्या [ भाति निरन्तरम् ] [ । ] [ दिवा-विभावरी ]- व्यापि चन्द्रगुप्ताख्यमद्भुतम् [ ॥ ]१
२. विक्रमावक्रयकीता दास्य-न्यग्भूत पार्थिवा [ । ] [ यस्य शास ]नु – संरक्ता-धर्म्म [ ज्ञस्य वसुन्धरा ] [ ॥ ]२
३. तस्य राजाधिराजर्षेरचि [ न्त्यो ] [ ज्ज्वल -क ] [ र्म्म ] णः [ । ] अन्वय-प्राप्त-सा-चिव्यो व्या [ पृत – सान्धि – वि ] ग्रहेः [ ॥ ]३
४. कौत्सश्शवाब इति ख्यातो वीरसेनः कुलाख्यया [ । ] शब्दार्त्थ-न्याय-लोकज्ञः कवि पाटलिपुत्रकः [ ॥ ]४
५. कृत्स्न-पृथ्वी-जयार्त्येन राज्ञैवेह सहागतः [ । ]  भक्त्या भवतश्शम्भोगुहामेतामकारयत् [ ॥ ]५
  • भण्डारकर ने [ असुलभम् न्टषु ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।
  • भण्डारकर ने [ तत्सुधि हृदयम् ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।
  • भण्डारकर ने [ पृथ्वीयेमनु ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।
  • भण्डारकर ने [ सन्नय-पालिता ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।
  • भण्डारकर ने [ दार ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।
  • भण्डारकर ने [ सृष्टस् ] पाठ का अनुमान प्रस्तुत किया है।

हिन्दी अनुवाद

सिद्धि प्राप्त हो। जो अपनी अन्तर्ज्योति से, जो सूर्य की भाँति तेजस्वी है, जिसका [ यश ] रात दिन भू-मण्डल में व्याप्त हो रहा है; जो अद्भुत है और उसका नाम चन्द्रगुप्त है; जिसने अपना विक्रम-रूपी क्रय मूल्य देकर अन्य ( सभी ) राजाओं को खरीद लिया है तथा अपनी दासता ( अधीनता ) स्वीकार करने के लिए बाध्य किया है; जिसके शासन के संरक्षण में वसुन्धरा धर्म से परिपूरित है; उस अचिन्त्य शुभकर्मों वाले राजाधिराज राजर्षि का वंशानुगत रूप से सचिव पद प्राप्त करने वाला सान्धि-विग्रहिक कौत्स-गोत्रीय [ ब्राह्मण ] शाब है; उसका कुल नाम वीरसेन है; वह पाटलिपुत्र (नगर) का निवासी, कवि, व्याकरण, दर्शन एवं राजनीति आदि विषयों का मर्मज्ञ है।
समस्त पृथ्वी के जय की अभिलाषा से राजा ( चन्द्रगुप्त ) के साथ वह ( शाब ) यहाँ ( उदयगिरि ) आया। [ और उसने ] भगवान शंकर ( शम्भु ) की भक्तिवश इस गुहा का निर्माण कराया।

टिप्पणी

उदयगिरि गुहालेख ( प्रथम ) की ही तरह उदयगिरि गुहालेख ( द्वितीय  ) भी चन्द्रगुप्त के एक अधिकारी द्वारा गुहा निर्माण कराने की विज्ञप्ति है। यह अभिलेख तिथि-विहीन है। इस अभिलेख से केवल इतनी सी बात ज्ञात होती है कि चन्द्रगुप्त किसी समय मालव प्रदेश में आये थे। उसका आगमन एक सैनिक अभियान था, ऐसा इस लेख से ध्वनित होता है।
इस अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि गुप्त सम्राट धर्म सहिष्णु थे जोकि भारतीय संस्कृति की स्थायी विशेषता है। स्वयं वैष्णव होते हुए भी उनका मंत्री शैव मतावलंबी था।

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