अशोक का आठवाँ बृहद् शिलालेख

भूमिका

आठवाँ बृहद् शिलालेख ( Eighth Major Rock Edict ) सम्राट अशोक के चतुर्दश बृहद् शिलालेखों में से अष्टम् शिला प्रज्ञापन है।  प्रियदर्शी राजा अशोक द्वारा भारतीय उप-महाद्वीप में ‘आठ स्थानों’ पर ‘१४ बृहद् शिलालेख’ या चतुर्दश बृहद् शिला प्रज्ञापन ( Fourteen Major Rock Edicts ) लिखवाये गये। यहाँ पर ‘गिरिनार संस्करण’ का मूलपाठ उद्धृत किया गया है। गिरनार संस्करण सबसे सुरक्षित अवस्था में है। इसीलिए १४ शिला प्रज्ञापनों में बहुधा इसी संस्करण का उपयोग किया जाता रहा है। तथापि अन्य संस्करणों को मिलाकर पढ़ा जाता रहा है।

आठवाँ बृहद् शिलालेख : संक्षिप्त परिचय

नाम – अशोक का आठवाँ बृहद् शिलालेख या अष्टम् बृहद् शिलालेख ( Ashoka’s Eighth Major Rock Edict )

स्थान – गिरनार, सौराष्ट्र

भाषा – प्राकृत

लिपि – ब्राह्मी

समय – मौर्यकाल

विषय – विहार यात्रा के स्थान पर धर्मयात्रा का उल्लेख

आठवाँ बृहद् शिलालेख : मूलपाठ

१ – अतिकातं अंतरं राजानो विहार-यातां ञयासु [ । ] एत मगव्या अञानि च तारिसानि

२ – अभीरमाकिनि अहुंसु [ । ] सो देवानंपियो पियदसि राजा दसवसभिसितो संतो अयाय संबोधि [ । ]

३ – तेनेसा धंम-याता [ । ] एतयं होति बाम्हण-समणानं दसणे च दाने च थैरानं दसणे च

४ – हिरंण-पटिविधानो च जानपदस च जनस दस्पनं धंमानुसस्टी च धंमपरिपुछा च

५ – तदोपया [ । ] एसा भूय-रति भवति देवानंपियसप्रियदसिनो राञो भागे अंञे [ ॥ ]

संस्कृत रूपान्तरण

अतिक्रान्तम् अनतरं राजानः विहारयात्राम् इयासुः। अत्र मृगया अन्यानि च एतादशानि अभिरामाणि अभूवत्। तत् देवानां प्रियः प्रियदर्शी राजा दशवर्षाभिषिक्तः सन् इयाय सम्बोधिम्। तेन एषा धर्मयात्रा। तत्र इदं भवति ब्राह्मणश्रमणनां दर्शनं च दानं च स्थविराणां दर्शनं च। हिरण्यप्रतिविधानं च जानपदस्य च जनस्य दर्शनं धर्मानुशिष्टिः च धर्मपरिच्छा च। तदुपेया। एषा भूया रतिः भवति देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिनः राज्ञः भागः अन्यः।

हिन्दी रूपान्तरण

१ – बहुत समय बीत गया, राजा लोग विहार-यात्रा करते थे। इसमें मृगया और अन्य तरह के

२ – आमोद होते थे। परन्तु देवानां प्रिय प्रियदर्शी राजा अपने अभिषेक के दसवें वर्ष बोधगया गये।

३ – इससे धर्मयात्रा की प्रथा प्रारम्भ हुई। इसमें यह होता था — ब्राह्मण व श्रमणों का दर्शन और उनको दान, वृद्धों का दर्शन तथा

४ – धन से उनके पोषण की व्यवस्था, जनपद के लोगों का दर्शन, धर्म का आदेश एवं धर्म से जुड़े परिप्रश्न।

५ – देवानां प्रिय प्रियदर्शी राजा के शासन के दूसरे भाग में यह प्रचुर रति ( आनन्द ) होती है।

हिन्दी में धाराप्रवाह अनुवाद

बहुत समय से राजा लोग विहार-यात्रा पर जाते थे। इसमें आखेट और अन्य आमोद-प्रमोद होते थे। देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी ने अपने अभिषेक के १० वर्ष बाद संबोधि की यात्रा की। इससे धर्मयात्रा की शुरुआत हुई। इन धर्मयात्राओं में ब्राह्मण एवं श्रमण भिक्षुओं के दर्शन किये जाते हैं और उनको सुवर्ण दान दिया जाता है। जनपदवासियों से मिलना, धर्म सम्बंधी अनुशासन एवं प्रश्न पूछना होता है। तब से देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी को दूसरे क्षेत्र में इस तरह की यात्राओं में बहुत आनन्दानुभूति होती है।

प्रथम बृहद् शिलालेख

द्वितीय बृहद् शिलालेख

तृतीय बृहद् शिलालेख

चतुर्थ बृहद् शिलालेख

पाँचवाँ बृहद् शिलालेख

छठा बृहद् शिलालेख

सातवाँ बृहद् शिलालेख

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