निग्लीवा स्तम्भलेख

भूमिका

निग्लीवा स्तम्भलेख नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के उत्तर-पूर्व में स्थित है। निगाली सागर स्तम्भलेख को लघु स्तम्भलेख की श्रेणी में रखा गया है। यहाँ की यात्रा स्वयं सम्राट अशोक ने की थी। इसमें पूर्व बुद्ध ‘कनकमुनि’ का विवरण मिलता है।

संक्षिप्त परिचय

नाम – निग्लीवा स्तम्भलेख; निगालीसागर लघु स्तम्भलेख ( Nigali Sagar Minor Rock Edict )

स्थान – निगाली सागर, नेपाल की तराई।

भाषा – प्राकृत

लिपि – ब्राह्मी

विषय – कनक मुनि का उल्लेख, पूर्व-निर्मित स्तूप का संवर्धन और स्वयं अशोक द्वारा यहाँ आकर इस स्थान के वंदन का विवरण सुरक्षित है।

निग्लीवा स्तम्भलेख  : मूलपाठ

१ – देवानंपियेन पियदसिन लाज़िम चोदस-वसाभिसितेन

२ – बुधस कोनासमुनस थुबे दुतियं वढिते [ । ]

३ – [ वीसति व ]साभिसितेन च अतन आगाच महीयते

४ – [ सिलो थमे च उस ] पापिते [ । ]

  • ब्यूह्लर के द्वारा मिटे हुए इस रिक्त की पूर्ति।
  • रुम्मिनदेई स्तम्भलेख के आधार पर सम्भावित पूर्ति।

हिन्दी रूपान्तरण

१ – चौदह वर्षों से अभिषिक्त देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने

२ -बुद्ध कनकमुनि का स्तूप दूना बढ़ाया ( सम्वर्धन कराकर दूना करा दिया )।

३ – [ और बीस वर्षों से ] अभिषिक्त ( राजा ने ) स्वयं आकर ( इस स्थान की ) पूजा की

४ – ( और शिला-स्तम्भ ) स्थापित करवाया।

टिप्पणी

निगालीसागर स्तम्भलेख भी रुम्मिनदेई स्तम्भलेख के समान ऐतिहासिक घटना का संकेत देता है। इससे ज्ञात होता है कि अशोक से पहले ही यहाँ पर कनकमुनि का एकस्तूप विद्यमान था। इस स्तूप का संवर्धन कराकर अशोक ने दूना करा दिया था।

कनकमुनि के सम्बन्ध में यह बताया जाता है कि ऐसे बुद्ध जो निर्वाण के लिए ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं परन्तु उन्होंने एकान्तवास ही चुना और जनता में प्रचार-प्रसार नहीं किया। यदि यह मान लिया जाय तब यह सिद्ध होता है कि अशोक के समय तक पूर्व-बुद्धो की संकल्पना साकार हो चुकी थी।

अशोक ने अपने अभिषेक के १४वें वर्ष इस स्तूप का विस्तार कराया था और २०वें वर्ष यहाँ आकर एक स्तम्भ लगवाया और पूजा की। यह सम्भव है कि जब सम्राट अशोक रुम्मिनदेई गये हों उसी समय यहाँ भी गये हों।

रुम्मिनदेई स्तम्भलेख

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