गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख ( १८वाँ वर्ष )
भूमिका गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख महाराष्ट्र के नासिक जनपद के निकट स्थित पाण्डुलेण नामक जो लयण-शृंखला ( गुहा-शृंखला ) है उसे सातवाहन और पश्चिमी क्षत्रपों ने द्वारा उत्कीर्ण कराये थे। उसी श्रृंखला के लयण ३ के बरामदे के पूर्वी दीवार पर छत के निकट ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में यह लेख अंकित है। संक्षिप्त परिचय नाम :- गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख ( Nasik Cave Inscription of Gautmiputra Satkarni ) नासिक :- नासिक, महाराष्ट्र के गुहा संख्या – ३ के दीवार पर बरामदे के पूर्वी भाग पर भाषा :- प्राकृत लिपि :- ब्राह्मी समय :- गौतमीपुत्र शातकर्णि का राज्यवर्ष १८ ( या १०६ से १३० ई० ) विषय :- बौद्धों को भूमिदान से सम्बन्धित लेख गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख : मूलपाठ १. सि [ धि ] [ ॥ ] सेनाये [ वे ] जयं [ ति ] ये विजय-खधावारा [ गो ] वधनस बेनाकटक-स्वामि गोतमि-पुतो सिरि-सदकर्णि २. आनपयति गोवधने अमच वि [ ण्हु ] पालितं [ । ] गामे अपर-कखडि- [ ये ] [ य ] खेतं अजकालकियं उसभसदातेन भूतं निवतन- ३. सतानि बे २०० एत अम्ह-खेत निवरण-सतानि बे २०० इमेस पवजितान तेकिरसिण वितराम [ । ] एतस चस खेतस परिहार ४. वितराम अपावेसं अनोमस अलोण-खा [ दकं ] अरठसविनयिकं सवजातपारिहारिक च [ । ] ए [ ते ] हि नं परिहारेहि परिह [ र ] हि [ । ] ५. एते चस खेत-परिहा [ रे ] च एथ निबधापेहि [ । ] अवियेन आणतं [ । ] अमचेन सिवगुतेन छतो [ । ] महासामियोहि उपरखितो [ । ] ६. दता पटिका सवछरे १० ( + ) ८ वास पखे २ दिवसे १ [ । ] तापसेन कटा [ ॥ ] हिन्दी अनुवाद सिद्धम्। विजयमान१ सेना के गोवर्धन [ आहार ( जिले ) ] के बेनकट२ ( स्थित ) स्कन्धावार३ [ से ] स्वामी४ गौतमीपुत्र शातकर्णि अमात्य विष्णुपालित को आदेश करते हैं — अपर-कखड़ ( अथवा अपरक खड़ ) ग्राम में पूर्वकाल में ( अजकालकिय-अद्यतन समय ) उषवदात ( ऋषभदत्त ) के अधिकार में जो २०० ( दो सौ ) निवर्तन भूमि थी, उस दो सौ निवर्तन भूमि को मैं त्रिरश्मि [ पर्वत स्थित लयण निवासी ] प्रवज्जितों ( बौद्ध भिक्षुओं ) को प्रदान करता हूँ। इस भूमि के साथ यह परिहार ( क्षेत्र सम्बन्धी राज्याधिकार-विशेष से मुक्ति ) भी प्रदान करता हूँ। [ उस भूमि में कोई राजकर्मचारी ] प्रवेश नहीं करेगा; उसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं डालेगा; [ उस क्षेत्र से प्राप्त होनेवाले ] लवण-खनिज [ पर अधिकार नहीं जतायेगा ]; उस पर किसी प्रकार के प्रशासनिक नियन्त्रण का दावा नहीं करेगा; तथा उस [ भूमि पर अन्य ] सब प्रकार के परिहार लागू होंगे। [ मेरे द्वारा दिये गये इन ] परिहारों का आप भी परिहार करें ( अर्थात् इन परिहारों को आप अपने पर लागू समझें )। इस क्षेत्र [ के दान ] तथा इन परिहारों [ के प्रमाण स्वरूप ] यह निबन्धन किया गया [ इसका ] आदेश मौखिक दिया गया था; उसे अमात्य शिवगुप्त ने अंकित किया। महा-स्वामी ( राजा ? ) ने उसे देख ( उपलक्ष ) लिया। यह पट्टिका संवत्सर १८ के वर्षा ऋतु के द्वितीय पक्ष के प्रथम दिवस को दी गयी। तापसेन ने इसे उत्कीर्ण किया। सेनार्ट ने वेजन्तिये को नगर नाम अनुमान कर उसकी पहचान उत्तरी कनारा स्थित बनवासी से की है। किन्तु यहाँ, ‘वैजयन्ती की सेना’ के उल्लेख का कोई तुक नहीं है। जैसा कि दिनेशचन्द्र सरकार का मत है, यह सेना के लिए सामान्य विशेषण मात्र है। यहाँ इससे किसी अभियान में विजय प्राप्त कर लौटी सेना से अभिप्राय है। यह स्थान सम्भवतः वेणच नदी के तट पर रहा होगा जो नासिक क्षेत्र में ही होगा। स्कन्धावार सैनिक छावनी को कहते हैं। यह अनुवाद सामान्य भिन्नता के साथ बुह्लर के निकट है। पर दिनेशचन्द्र सरकार ‘बेनकट-स्वामि’ को एक पद मानते हैं; और उसे सापेक्ष्य समास बनाकर the lord now residing at Benkataka का भाव ग्रहण करते हैं। उनकी धारणा है कि अभिलेखों में ‘स्वामि’ विरुद मातृनाम के बाद और राजा के नाम के पूर्व आता है। अतः यहाँ यह शातकर्णि का विरुद नहीं हो सकता। ऐसा वहीं है जहाँ ‘राजा’ और ‘स्वामी’ दोनों शब्द हैं वहाँ ‘राजा’ शब्द मातृनाम से पूर्व और ‘स्वामी’ मातृनाम के बाद है। किन्तु जहाँ केवल एक ही विरुद ‘राजा’ है, वहाँ वह सदैव अभिलेखों और सिक्कों में मातृनाम के पूर्व प्रयुक्त हुआ है। निकटतम उदाहरण नासिक से ही प्राप्त शातकर्णि का ही वर्ष २४ वाला लेख है। उसमें ‘रजो गोतमी पुतस सातकनिस’ है। ‘स्वामी’ और ‘राजा’ परस्पर पर्याय हैं। अतः प्रस्तुत अभिलेख में ‘रजो’ का स्थान ‘स्वामी’ ने लिया गया है। गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहालेख : विश्लेषण यह अभिलेख सातवाहन नरेश गौतमीपुत्र शातकर्णि द्वारा त्रिरश्मि पर्वत ( नासिक के निकट स्थित पर्वत ) कदाचित् वही पर्वत, जिसमें उत्खनित गुफा में यह लेख अंकित है, के निवासी बौद्ध भिक्षुओं को दान दी गयी भूमि का घोषणापत्र है। सामान्यतः इस प्रकार के दानों की घोषणा दान-पत्र के रूप में होती है; पर यहाँ यह भूमि-स्थित प्रदेश के राजकर्मचारी के नाम आदेश पत्र के रूप में है। यह इस अभिलेख की विशिष्टता है। नाणेघाट अभिलेख को अब तक सातवाहन अभिलेख माना जाता रहा है। उसके आधार पर सातवाहनों को ब्राह्मण तथा वैदिक धर्मावलम्बी कहा जाता है। यहाँ हम उस वंश के राजा को बौद्धों को दान देते हुए देखते हैं। प्रशासनिक दृष्टि से इस लेख का विशेष महत्त्व है। इससे भूमि पर राज्य के अधिकारों पर प्रकाश पड़ता है। इसके साथ ही आदेशों के कार्यान्वयन की विधि का भी आभास मिलता है। प्रस्तुत अभिलेख महाराष्ट्र के नासिक स्थित गुफा संख्या ३ के बरामदे के पूर्वी दीवार की छत के निकट प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि में अंकित है। यह नासिक क्षेत्र में स्थित गोवर्धन जिले के वेनाकटक स्थित स्कंधावार से स्वामी गौतमीपुत्र श्रीशातकर्णी के आमात्य विष्णुपालित को सम्बोधित है। इसमें एक भूमिदान का उल्लेख है जो बौद्ध भिक्षुओं को प्रदान किया गया है। यह विशिष्टता है कि सातवाहन नरेश वैदिक धर्मानुयायी थे। पर यहाँ बौद्ध धर्म को उनके द्वारा दान देना उनकी सहिष्णु धार्मिक नीति का परिचायक है। राजनीतिक दृष्टि से भी यह अभिलेख अपनी विशेषता रखता है। इससे कुछ प्रमुख तथ्य ज्ञात होते हैं :-
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