भूमिका
भानुगुप्त का एरण स्तम्भ-लेख मध्य प्रदेश के सागर जनपद में स्थित इसी नाम के स्थल ( एरण ) से मिला है। १८७४-७५ अथवा १८७६-७७ ई० में कनिंघम महोदय ने इसे ढूँढ निकाला था। अभिलेख को उन्होंने १८८० ई० में प्रकाशित किया। तदनन्तर जे० एफ० फ्लीट ने इसका सम्पादन करके corpus Inscriptionum Indicarum में प्रकाशित किया।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- भानुगुप्त का एरण स्तम्भ-लेख [ Eran Pillar Inscription of Bhanugupta ]
स्थान :- एरण, सागर जनपद; मध्य प्रदेश
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी
समय :- गुप्त सम्वत् १९२ ( ५१० ई० ), भानुगुप्त का शासनकाल
विषय :- भानुगुप्त कालीन एरण स्तम्भ-लेख सती प्रथा का अभिलेखीय साक्ष्य
मूलपाठ
१. [स्वस्ति।] संवत्सर शते एकनवत्युत्तरे श्रावण-बहुलपक्ष-स[प्त]म्य[ा] [।]
२. संवत् १०० (+) ९० (+) १ श्रावण-ब-दि ७ ॥ सुलक्खशादुत्पन्नो — —
३. राजेति विश्रुतः [।] तस्य पुत्रो (ऽ) तिविक्क्रान्तो नाम्ना राजाथ माधवः॥ गोपराजः
४. सुतस्तस्य श्रीमान्विख्यात-पौरुषः [।] शरभराज-दौहित्तः स्ववश-तिलको[भवद् ?] [II]
५. श्रीभानुगुप्तो जगति प्रवीरो राजा महा(न्) पार्थ-समो(ऽ)ति-शूरः [।] तेनाथ सार्द्धन्त्विह गोपर[जो]
६. मैत्तानुदश्या च कितानुयातः॥ कृत्वा [च] [यु]द्धं सुमहत्प्रकाशं स्वर्ग गतो दिव्य-न[ रे ?] [न्द्र कल्पः] [I]
७. भक्तानुरक्ता च प्रिया च कान्ता भ[ार्याव]ल[ग्न][नुगता[ग्नि]र[ा]शिम् ।।
हिन्दी अनुवाद
स्वस्ति ! संवत्सर एक सौ एक्यानबे (१९१) श्रवण बहुल (कृष्ण) पक्ष सप्तमी। सुलक्ख वंश में उत्पन्न – – – – राज नाम का एक प्रख्यात राजा हुआ। उसका अत्यन्त विक्रान्त पुत्र राजा माधव हुआ। उसका पुत्र विख्यात पौरुषवाला श्री गोपराज हुआ [जो] शरभराज का दौहित्र और अपने वंश का तिलक था।
जगत्-प्रवीर पार्थ (अर्जुन) के समान महान् शूर महाराज श्री भानुगुप्त हैं। उनके साथ गोपराज भी आया और मैत्रों को पराभूत किया। उस प्रसिद्ध युद्ध में लड़ते हुए वह स्वर्ग गया और सर्वोत्तम इन्द्रपद प्राप्त किया भक्तिभाव से अनुरक्त उसकी प्रिया, कान्ता, भार्या, (पत्नी) ने उनका अनुगत बनकर अग्नि में प्रवेश किया।