भूमिका
सुपिया स्तम्भ-लेख मध्य प्रदेश के रीवा जनपद से सुपिया ग्राम के निकट से १९४३-४४ ई० में मिला है। वर्तमान में यह धुबेला संग्रहालय, मध्य प्रदेश में संरक्षित रखा गया है। इसका उल्लेख सबसे पहले बहादुरचन्द्र छाबड़ा ने किया। तत्पश्चात् दिनेशचन्द्र सरकार ने इसको सम्पादित करके प्रकाशित किया।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- स्कंदगुप्त का सुपिया स्तम्भ-लेख [ Supiya/Supia Stone Pillar Inscription of Skandgupta ]
स्थान :- सुपिया, रीवा जनपद; मध्य प्रदेश।
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- ब्राह्मी परवर्ती ( उत्तर भारतीय )।
समय :- गुप्त सम्वत् १४१ ( ४६० ई० ), स्कंदगुप्त का शासनकाल
विषय :- जैन मूर्ति और स्तम्भ के स्थापना की विज्ञप्ति।
मूलपाठ
१. [श्री]घ[टो]त्कच[ ] [।] तद्वन्शे प्रव[र्त्तमा]-
२. [ने]महार[ ]ज-[श्रीसमुद्रगु]प्तः [।] त[त्पु]-
३. [त्र]-श्रीविक्क्रमा[दित्यः] त[त्पुत्र] [।] महारा[ज]-
४. [श्री] महेन्द्रादित्य[:] तस्य [पु]त्र[:] चक्क्र[व]-
५. [र्त्ति]तु[ल्यो महा]बलविक्क्र[मे]ण र[म]-
६. [तु]ल्यो धर्म्म] प [र] तया युधिष्ठिर स [त्ये]-
७. नाचर[वि]नय महाराज-श्रीस्क[न्द]-
८. गुप्तस्य राज्य[सम्व]त्सर शते एक-
९. चत्वारि[न्शोत्त]रके [।] [अस्यां] दिवसपू-
१०. र्व्वायां [।] अवडर-वास्तव्य-कुटुम्बि[कः]-
११. कैवर्त्तिश्रेष्ठि-नप्तृ हरिश्रेष्ठि पु[त्रः] श्रीद-
१२. [त्तः।] तद्भ्रातृ वर्ग[:] [।] त[द्भ्रा] ताच्छन्दक[श्चेति] [।]
१३. स्वपुण्याप्यायनार्थ यशः-की-
१४. [र्त्ति]-प्रवर्ध[य]मान-गोत्र-शैलिका बल-य-
१५. ष्ठिः प्रतिष्ठापिता वर्गाग्रामिकेण
१६. जेष्ठमासे-शुक्लपक्षस्य द्विती-
१७. [यायां] ति[थौ] [॥]
हिन्दी अनुवाद
श्री घटोत्कच; उनके वंश में हुए महाराज श्री समुद्रगुप्त; उनके पुत्र श्री विक्रमादित्य; उनके पुत्र महाराज श्री महेन्द्रादित्य; उनके पुत्र चक्रवर्ती के समान महाबल विक्रम, राम के समान धर्म-परायण और युधिष्ठिर की तरह सत्यवादी और विनयशील महाराज श्री स्कन्दगुप्त के राज्य का संवत्सर १४१।
इस दिन अवडर-निवासी कुटुम्बिक (वैश्य) कैवर्तश्रेष्ठि के नप्ता (नाती; दौहित्र), हरिश्रेष्ठि के पुत्र श्रीदत्त; उनके भाई वर्ग्ग; उनके भाई छन्दक।
अपनी पुण्य की प्राप्ति और यश-कीर्ति के निमित्त ग्रामिक वर्ग्ग ने [इस] गोत्र-शैलिक बल-यष्ठि की प्रतिष्ठा की।
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष द्वितीया की तिथि।
विश्लेषण
शब्द विश्लेषण :
सुपिया स्तम्भ-लेख एक प्रस्तर-स्तम्भ ( Stone Pillar ) है, इसको गोत्र-शैलिक और बल-यष्टि कहा गया है। जहाँ स्तम्भ था, वहाँ के लोग इसे सती-स्तम्भ कहते थे।
बहादुरचन्द्र छाबड़ा ने इसे षष्ठी से सम्बन्धित अनुमान किया था। षष्ठी कार्तिकेय की पत्नी का नाम है। सन्तान-जन्म के उपरान्त इनकी पूजा जन्म के छठे दिन किये जाने की प्रथा उत्तर भारत के प्रायः सभी परिवारों में पायी जाती है। दिनेशचन्द्र सरकार ने इस लेख का सम्पादन करते हुए इस कल्पना का खण्डन किया है। उनके मत के अनुसार यह ग्रामिक (ग्राम के मुखिया) वर्ग द्वारा स्थापित गोत्र-शैलिक है और परिवार के मृत व्यक्तियों की स्मृति में स्थापित किया गया था।
गोत्र-शैलिक के साथ एक अन्य पद बल-यष्टि का उल्लेख है। बल-यष्टि का उल्लेख इसी क्षेत्र के भूमरा नामक स्थान से प्राप्त परिव्राजक महाराज के काल के एक लेख में भी हुआ है। वहाँ फ्लीट ने इसका तात्पर्य ‘सीमा स्तम्भ‘ लिया है। परन्तु गोत्र-शैलिक के प्रसंग में इसकी कोई संगति नहीं बैठती है। दिनेशचन्द्र सरकार ने बल-यष्टि को गोत्र-शैलिक का विशेषण माना है और उसका अर्थ भारी-भरकम स्तम्भ (stout pillar) माना है। यष्टि का तात्पर्य स्मारक स्तम्भ जान पड़ता है उसे ही गोत्र-शैलिक भी कहा गया है और परिवार के [मृत] लोगों की स्मृति में स्थापित किया गया था।
चक्रवर्ती गुप्त राजाओं की वंशावली :
- सुपिया स्तम्भ-लेख की उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें गुप्त वंश के शासकों का उल्लेख करते हुए उसका आरम्भ आदि-पुरुष श्रीगुप्त से न करके घटोत्कच से किया गया है।
- इसमें गुप्त वंश को ‘घटोत्कच वंश’ कहा गया है।
- घटोत्कच के बाद सीधे समुद्रगुप्त का उल्लेख है। यहाँ चन्द्रगुप्त (प्रथम) के नाम की उपेक्षा की गयी है। यद्यपि वैयक्तिक लेख में विशेष महत्त्व की बात भले ही न कही जाय परन्तु विचारणीय अवश्य है।
- समुद्रगुप्त के बाद उनके उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त (द्वितीय) और कुमारगुप्त (प्रथम) का उल्लेख उनके नामों से न करके उनके विरुदों द्वारा विक्रमादित्य और महेन्द्रादित्य के रूप में किया गया है। यह बात भी अप्रत्याशित और असाधारण है।
- समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त (प्रथम) को केवल ‘महाराज’ कहा गया है जबकि घटोत्कच के लिए किसी भी विरुद का प्रयोग नहीं किया गया है।
- इस लेख की सबसे महत्त्व की बात तो यह है कि स्कन्दगुप्त को चक्रवर्ती राजा के समान, राम के समान महाबली-विक्रमी और युधिष्ठिर के समान सत्यवादी और विनम्र कहा गया है। इस लेख में इस प्रकार की प्रशंसा इस बात की अभिव्यक्ति है कि जनसाधारण उन्हें बड़ी ऊँची दृष्टि से देखती थी; वह लोक-प्रिय थे।
स्तम्भ संथापक का विवरण :
सुपिया स्तम्भ-लेख के प्रतिष्ठापक वर्ग को ग्रामिक कहा गया है; वह कदाचित् अपने ग्राम का मुखिया है। वह कदाचित् वही वर्ग है जिसे कुटुम्बिक कैवर्ति-श्रेष्ठि का का नप्ता (दौहित्र) कहा गया है। वहाँ कदाचित् इस ग्राम का निवासी नहीं था और अपने मातामह के परिवार में गृहीत (गोद लिया गया था।) उसके मातामह वैश्य (कुटुम्बी) होने के साथ श्रेष्ठि (सेठ) अर्थात् महाजन भी थे।