वाशिष्क का साँची अभिलेख

भूमिका

वाशिष्क का साँची अभिलेख १८६३ ई० में फ्युहरर को साँची के ध्वंसावशेषों की साफ-सफाई कराते समय बुद्ध की एक ऐसी मूर्ति प्राप्त हुई। मूर्ति के आसन पर यह लेख ब्राह्मी लिपि में संस्कृत से प्रभावित प्राकृत भाषा में अंकित है।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- वाशिष्क का साँची अभिलेख ( Sanchi Inscription of Vashishka )

स्थान :- साँची, रायसेन जनपद, मध्य प्रदेश

भाषा :- प्राकृत ( संस्कृत प्रभावित )

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- वाशिष्क के शासनकाल का, कनिष्क संम्वत् २८ ( = १०६ ई० )

विषय :- बौद्धधर्म से सम्बन्धित

वाशिष्क का साँची अभिलेख : मूलपाठ

१. [ महाराज ] स्य रा [ जातिराजस्य [ देव ] पुत्रस्य षाहि वासिष्कस्य सं २० [ + ] ८ हे १ [ दि ५ ] [ । ] [ ए ] तस्यां पूर्वा [ यां ] भगव-

२. [ तो ] ………. स्य जम्बुछाया-शैलाग्रस्य ( गृहस्य ) धर्मदेव-बिहारे प्रति [ ष्ठा ] पिता खरस्य धितर मधुरिक—

३. ……. —णं देयधर्म-परि [ त्यागेन ] ……..

हिन्दी अनुवाद

महाराजा रजतिराज देवपुत्र षाहि वाशिष्क के संवत् २८ के प्रथम हेमन्त का दिन ५। इस पूर्वकथित दिन को भगवान् [ शाक्यमुनि की प्रतिमा ] को धर्मदेव विहार में जामुन की छाया में स्थित शैलगृह ( जम्बुच्छाया शैलगृह ) में खर की दुहिता मधुरिका ने प्रतिष्ठापित किया।……… देवधर्म के परित्याग……

  • पूर्णिमांत मार्गशीर्ष

विश्लेषण

इस अभिलेख का महत्त्व केवल इस दृष्टि से समझा जाता रहा है कि इसमें महाराज देवपुत्र षाहि वाशिष्क का उल्लेख है और उसमें जो वर्ष २८ है वह कनिष्क ( कुषाण ) संवत् है। विद्वानों ने कनिष्क सम्वत् को शक सम्वत् ( ७८ ई०  ) माना है। अतः वाशिष्क साँची अभिलेख का समय १०६ ई० ठहरता है।

मथुरा के निकट ईसापुर से एक यूपस्तम्भ प्राप्त हुआ है उस पर भी वाशिष्क के २४वें वर्ष का अभिलेख है, जिससे यह प्रकट होता है कि इससे पूर्व वह किसी समय शासक हुआ होगा। मथुरा से ही कनिष्क का २३वें वर्ष और हुविष्क का २८वें वर्ष का अभिलेख प्राप्त है।

इस तरह कनिष्क प्रथम का उत्तराधिकारी वाशिष्क हुआ और उसके बाद हुविष्क शासक बना। इन्होंने क्रमशः २३ वर्ष ( ७८ – १०१ ई० ), ४ वर्ष ( १०२ – १०६ ई० ) और ३४ वर्ष ( १०६ – १४० ई० ) शासन किया।

इस तरह यह अभिलेख भगवान बुद्ध की मूर्ति की स्थापना का विवरण देता है। इसको धर्मदेव नामक विहार में खर की दुहिता मधुरिका ने प्रतिष्ठापित करवाया था।

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