रेह अभिलेख ( Reh Inscription )

भूमिका

रेह अभिलेख उत्तर प्रदेश के फतहपुर जिले में रेह नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख एक शिवलिंग पर अंकित है। इसकी भाषा प्राकृत और लिपि ब्राह्मी है। इस शिवलिंग का निचला भाग अनुपलब्ध होने के कारण अभिलेख की केवल आरम्भिक तीन पंक्तियाँ और चौथी पंक्ति के कतिपय लिपि-चिह्न ही बचे हैं।

रेह अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम :- रेह अभिलेख ( Rah Inscription )

स्थान :- रेह, फतेहपुर जनपद, उत्तर प्रदेश

भाषा :- प्राकृत

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- कुषाणकाल, विम कडफिसेस

विषय :- शैव धर्म से सम्बंधित

रेह अभिलेख : मूलपाठ

१.  महरजस रजति रजस

२.  महंतस त्रतरस धम्मि-

३.  कस जयंतस च अप्र-

४.  ………………………

हिन्दी अनुवाद

महाराज रजतिराज महान्, त्राता, धार्मिक, जयन्त और अप्र [ … ]

रेह अभिलेख : विश्लेषण

रेह अभिलेख पर तीन पंक्ति ही पूर्ण रूप से मिली है। चौथी पंक्ति अपठित है। इस पर किसी राजा का नाम नहीं प्राप्त होने से विरुद के आधार पर विद्वानों ने इसके राजा की पहचान करने का प्रयास किया है। विवाद मुख्य रूप से मिनाण्डर और विम कडफिसेस के मध्य है कि रेह अभिलेख किसका है?

क्या यह मिनांडर का अभिलेख है?

इस अभिलेख को प्रयाग विश्वविद्यालय के प्राध्यापक गोवर्धनराय शर्मा ने प्रकाशित किया है और चतुर्थ पंक्ति के लिये अपना अनुमानित पाठ [ जितस ] मिनन्द- ( दे? ) रस प्रस्तुत किया है। इस प्रकार उन्होंने इसे यवन-नरेश मिनेन्द्र ( Menander ) का लेख बताया है। इस अभिलेख को गंगा घाटी में यवनों के प्रवेश का प्रमाण माना है।

जी०आर० शर्मा की यवन आक्रमण की अवधारणा को बी०एन० मुखर्जी और रिचर्ड सैलोमन ( Richard Salomon ) सरीखे विद्वानों ने भ्रामक व गलत बताया गया है।

शर्मा के अनुसार अभिलेख में आये हुए विरुद यवन विरुदों BASILIOS BASILION MEGALAU SOTOROS DIKAIOU KAI ANEKETAU के अविरल प्राकृत अनुवाद है और वे विरुद मिनेन्द्र ( Menander ) के हैं ।

इस प्रसंग में ज्ञातव्य यह है कि BASILIOS BASILION और उसके समानान्तर विरुद रजतिराज का प्रयोग युक्रितिद ( Eucratideo ) के कुछ सिक्कों के अतिरिक्त किसी अन्य यवन-नरेश द्वारा हुआ ही नहीं किया गया है। महरज रजतिरज का संयुक्त प्रयोग तो शक पह्लव शासकों से पूर्व सर्वथा अज्ञात ही था। अन्य विरुदों में भी त्रातर और ध्रमिक दो ही विरुद ऐसे हैं जिनका प्रयोग मिनेन्द्र ( Menander ) के सिक्कों पर किया गया है, उन पर भी ये दोनों विरुद कभी एक साथ नहीं देखे गये हैं। शेष विरुदों का प्रयोग अन्य यवन-शासकों ने ही किया है। परन्तु उन्होंने भी सदैव अलग-अलग ही किया है, कभी एक साथ नहीं। समूची विरुदावली किसी भी यवन-शासक के लिये कभी प्रयोग में आयी ही नहीं है। इस प्रकार यह अभिलेख मिनेन्द्र ( Menander ) तो क्या किसी भी यवन-शासक का अनुमान किया ही नहीं जा सकता है। अतः जी०आर० शर्मा की कल्पना सर्वथा निराधार है।

क्या यह विम कडफिसेस का अभिलेख है?

उत्तर-पश्चिमी अफगानिस्तान स्थित कामरा नामक स्थान से मिले एक अभिलेख में प्रस्तुत अभिलेख की समूची विरुदावली का उल्लेख लगभग अविकल रूप से एक कुषाण-शासक के प्रसंग में हुआ है। उस परिप्रेक्ष्य में यह अनुमान सहजभाव से किया जा सकता है कि यह अभिलेख भी किसी कुषाण-नरेश का हो। अभिलेख का अगला अंश अनुपलब्ध होने के बावजूद अन्य साक्ष्यों के सहारे निश्चितरूप से कहा जा सकता है कि अभिलेख विम कदफिसेस का होगा।

अभिलेख में आये विरुद ‘महन्तस त्रतरस’, Soter megas की याद दिलाते हैं। Soter megas नामधारी सिक्के विम कदफिस के अनुमान किये जाते हैं। वे सिक्के विम कदफिस के हों या न हों यह तो तथ्य है ही कि Soter ( त्राता, त्रतर ) विरुद का प्रयोग विम ने अपने नामवाले सिक्कों पर किया है; और यह विरुद परवर्ती सभी शासक के लिए अनजाना है। दूसरी ओर विम कदफिस का कोई भी पूर्ववर्ती कुषाण गंगा-यमुना के काँठे में कभी आया ही नहीं था। अतः इसे विम कदफिस के अतिरिक्त किसी दूसरे शासक के होने की सम्भावना प्रकट करने की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं है।

विम कदफिसेस के अभिलेख के रूप में लेख का महत्त्व इस बात में है कि वह इस बात का द्योतक है विम कदफिस के काल में ही कुषाणों का प्रवेश गंगा-यमुना काँठे में हो गया था। इस लेख के प्रकाश में आने से हमारे इस अनुमान को बल प्राप्त होता है कि हाथीगुम्फा अभिलेख * में विम कदफिस ( विमक, विमिक ) का उल्लेख है। इस अभिलेख में उसका मगध तक बढ़ जाना पूर्णतः सम्भव है।

  • घाता पयिता राजगहं उपपीडपयति [ । ] एतिनं च कंमपदान संनादेन [ संवित ] सेन-वाहने विपमुचितु मधुरं अपयातो यवनरा [ ज ] [ विमिक ]…….. यछति………. पलव [ भार ] ( हिन्दी अनुवाद :- पर घात ( आक्रमण ) कर राजगृह [ के राजा ] को उत्पीड़ित ( त्रस्त ) करते हैं। इन दुष्कर कर्मों को सम्पादित करते देखकर, उसकी सेना और वाहनों से भयभीत होकर यवनराज विमक मथुरा भाग जाता है। …… [ तब ] वह ( खारवेल ) पल्लव [ भार ] से युक्त )

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