भूमिका
पभोसा गुहा अभिलेख उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में पभोसा नामक स्थान स्थित एक गुहा की दीवार पर मिला है। यह लेख ब्राह्मी लिपि में प्राकृत से प्रभावित संस्कृत में अंकित है। इस गुहा अभिलेख का समय फुहरर ने ई० पू० दूसरी-पहली शताब्दी अनुमानित किया है। बुह्लर इस अभिलेख का समय १५० ई० पू० बताते हैं। दिनेशचन्द्र सरकार लिपि विशेषताओं के आधार पर इस गुहाभिलेख का समय ई० पू० प्रथम शताब्दी का अन्त मानते हैं।
पभोसा गुहा अभिलेख : संक्षिप्त परिचय
नाम :- पभोसा गुहा अभिलेख ( Pabhosa Cave Inscription )
स्थान :- पभोसा, कौशाम्बी जनपद, उत्तर प्रदेश
भाषा :- संस्कृत ( प्राकृत प्रभावित )
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- मौर्योत्तर काल
विषय :- कौशाम्बी के क्षेत्रीय इतिहास की जानकारी
पभोसा गुहा अभिलेख : मूलपाठ
प्रथम : मूलपाठ
१ — राज्ञो गोपाली-पुत्रस
२ — बहसतिमित्रस
३ — मातुलेन गोपालिया-
४ — वैहीदरी-पुत्रेन
५ — आसाढ़सेनेन लेनं
६ — कारितं ऊदाक [ स ] दस-
७ — म-सवरे [ १० अ ] हि [ छि ] त्र अरहं-
८ — [ त ] …… [ ॥ ]
हिन्दी अनुवाद
राजा गोपालीपुत्र बृहस्पतिमित्र के मातुल [ मामा ] गोपालिका वैहिदरीपुत्र आषाढ़सेन का बनाया लयण। उदाक१ के दसवें संवत्सर में [ अहिच्छत्रा ]२ के अर्हतों ( जैन अथवा बौद्ध ) [ के लिए ]।
द्वितीय : मूलपाठ
१ — अधिछत्राया राज्ञो शोनकायनी-पुत्रस्य वंगपालस्य
२ —पुत्रस्य राज्ञो तेवणीपुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण
३ — वैहिदरी पुत्रेण आषाढ़सेन कारितं [ ॥ ]
हिन्दी अनुवाद
अहिच्छत्रा के राजा शौनकायनी पुत्र वंगपाल३ के पुत्र तेवणी-पुत्र भागवत४ के पुत्र वैहिदरीपुत्र आषाढ़सेन द्वारा बनाया गया।
- उदाक को लोग शुंगवंशी वसुमित्र का उत्तराधिकारी अनुमान करते हैं किन्तु लिपि के आधार पर यह अभिलेख कदापि ई० पू० दूसरी शती में नहीं रखा जा सकता। अतः यह उससे सर्वथा भित्र शासक है। उसे कौशाम्बी का शासक कहा जाता है। यदि वह कौशाम्बी- नरेश था तो निश्चय ही बृहस्पतिमित्र का उत्तरवर्ती होगा और यदि उसी वंश का है तो उसका पुत्र अथवा पौत्र होगा। वैसी अवस्था में समसामयिक राजा आषाढसेन के साथ अपना सम्बन्ध न बताना कुछ असाधारण लगता है। अतः विद्वानों की धारणा है कि आषाढसेन का समसामयिक कौशाम्बी- नरेश उदाक नहीं, वृहस्पतिमित्र है और उदाक अहिच्छत्रा का शासक होगा तथा वह आषाढ़सेन का भ्राता होगा। आषाढ़सेन स्वयं अहिच्छत्रा का शासक नहीं है यह दूसरे अभिलेख में उसके नाम के साथ ‘राजा’ शब्द के अभाव से स्पष्ट है। उदाक जहाँ का भी शासक हो अभी तक उसके नाम के सिक्के कहीं से प्राप्त नहीं हुए हैं।१
- यह अनुमानित पाठ है।२
- बंगपाल के सिक्के अहिच्छत्रा से प्राप्त हुए हैं। उसके सिके की खप दामगुप्त के सिके पर पुनर्मुद्रित है। इससे ज्ञात होता है कि वह दामगुप्त के पश्चात् शासक हुआ था, इसी कारण अभिलेख में उसके पिता का नाम नहीं है।३
- अहिच्छत्रा के सिक्कों में अभी तक भागवत नामक किसी शासक का कोई सिक्का प्राप्त नहीं हुआ है।४
पभोसा गुहा अभिलेख : विश्लेषण
अहिच्छत्रा और कौशाम्बी के तत्कालीन प्रादेशिक इतिहास की दृष्टि से ही पभोसा गुहा अभिलेख का महत्त्व है। ये अभिलेख एक ही व्यक्ति से सम्बद्ध हैं। पहले से ज्ञात होता है कि लेख लिखानेवाले राजा आषाढ़सेन का सम्बन्ध अहिच्छत्रा के राजवंश से था। दूसरे लेख से पता चलता होता है कि वह बृहस्पतिमित्र नामक राजा का मातुल ( मामा ) था।
कौशाम्बी से बृहस्पतिमित्र नामक शासक के सिक्के बड़ी मात्र में प्राप्त हुए हैं। सम्भव है, इस अभिलेख में उल्लिखित बृहस्पतिमित्र कौशाम्बी नरेश ही हो। इस प्रकार इन अभिलेखों से कौशाम्बी और अहिच्छत्रा के राजवंशों के पारिवारिक सम्बन्ध का परिचय मिलता है। इनकी सहायता से दोनों प्रदेशों के राजवंशों के शासकों की समसामयिकता का विचार किया जा सकता है।
इन दोनों अभिलेखों से निम्नलिखित वंशवृक्ष प्राप्त होता है-