गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहालेख ( २४वाँ वर्ष )

भूमिका

नासिक गुहालेख ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में है। नासिक से गौतमीपुत्र शातकर्णि के दो अभिलेख मिलते है। एक उसके १८वें राज्यवर्ष का और दूसरा, २४वें राज्यवर्ष का। यह गुहालेख २४वें वर्ष का है अर्थात् १३० ई०।

संक्षिप्त परिचय

नाम :- गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहालेख ( राज्यवर्ष २४ ) ( Nasik Cave Inscription of Gautamiputra Satkarni – Reg. Year 24 )

स्थान :- नासिक गुहा, महाराष्ट्र

भाषा :- प्राकृत

लिपि :- ब्राह्मी

काल :- गौतमीपुत्र सातकर्णि का राज्यावर्ष २४ ( १३० ई० )

विषय :- गौतमीपुत्र सातकर्णी का पत्र आमात्य श्यामक को जो कि नगर दान की चर्चा है।

गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहालेख ( २४वाँ वर्ष ) : मूलपाठ

१. सिद्धं ( ॥ ) गोवधने अम [ च ] स सामकस [ दे ] यो [ रा ] जाणितो ( । )

२. रञो गोतमिपुत्र सातकणि [ स ] म [ हा ] देवीय च जीवसुताय राज-मातुय वचनेन गोवधने [ अम ] चो सामको अरोग वतव ( । ) ततो एव च

३. वतवो ( । ) एथ अम्हेहि पवर्त तिरण्डुम्हि अम्हधमदाने लेणे पतिवसतानं पवजितान मिखून गा [ मे ] कखडीसु पुव खेतं दत ( । ) तं च खेत

४. [ न ] कसते सो च गामो न वसति ( । ) एवं सति य दानि एथ नगर-सीमे राजकं खेतं अम्ह-सतकं ततो एतेस पवजितानं भिखूनं तेरण्डुकानं दद [ म ]

५. खेतस निवतण-सतं १०० ( १ ) तस च खेतस परिहार वितराम अपावेस अनोमस अलोण- खादक-अरठ-सविनयिक सव-जात पारिहारिक च ( । )

६. एतेहि न परिहारेहि परिहरेठ ( । ) एत चस खेत-परिहा [ रे ] च एथ निबधापेथ ( । ) अवियेन आणत ( । ) पटिहार-( र ) लोटाय छतो लेखो ( । ) सबछरे २० ( + )

७. वासान पखे ४ दिवसे पचमे ५ ( । ) सुजिविना कटा ( । ) निबधो निबधो सवछरे २० (+) रखिय ४ गिहान पखे २ दिवसे १० ( ॥ )

  • जीवासुता से अभिप्राय है कि राजा बीमार था।

हिन्दी अनुवाद

सिद्धम्॥ गोवर्धन के आमात्य श्याम को देने के लिए राजाज्ञा पत्र। राजा गौतमीपुत्र शातकर्णि और महादेवी राजमाता जीवित पुत्र वाली के आज्ञा से गोवर्धन के आमात्य श्याम के आरोग्य की कामना की जाय ( पूछा जाय ) और इसके पश्चात् यह कहा जाय – त्रिरश्मि ( तिरण्डु ) पर्वत पर जो हमारा धर्मदान गुहा ( लेण ) है उसमें प्रव्रजित होकर रहने वाले भिक्षुओं के लिए कखड़ी ग्राम में पूर्वकाल में हमारे द्वारा दिया गया खेत है। किन्तु वह खेत न जोता जाता है और न वहाँ गाँव ही बसा है। इसलिए इस नगर की सीमा पर हमारे स्वत्व से विशिष्ट जो राजकीय खेत हैं उसमें से एक सौ निवर्तन ( भूमि की एक इकाई ) इन प्रव्रजित भिक्षुओं के लिए देते हैं। यह खेत राज्य सैनिकों के लिए अप्रवेश्य, राजकर्मचारियों द्वारा उत्पन्न बाधा से निर्लिप्त, सरकार द्वारा नमक के लिए न खोदा जाने वाला, राज्यशासन से पृथक् और सभी प्रकार की विमुक्तियों से युक्त रहेगा। इस खेत को इन सभी विमुक्तियों से मुक्त करें। इन विमुक्तियों तथा खेत के दान को पंजीकृत कराएँ। यह आज्ञा मौखिक रूप से दी गई थी। पतिहार रक्षिका लोटाद्वार आज्ञा पत्र का प्रारूप तैयार किया गया। इसे संवत्सर २४ में वर्षाकाल के चौथे पक्ष के पाँवचें दिन सुजीव द्वारा कार्यान्वित किया गया। इसे संवत्सर २४ ग्रीष्म ऋतु के दूसरे पक्ष में दसवें दिन पंजिका में निबद्ध किया गया।

नासिक गुहालेख : ऐतिहासिक महत्त्व

यह अभिलेख गौतमीपुत्र शातकर्णि नामक राजा के द्वारा उसके पूर्व अभिलेख नासिक गुहालेख ( वर्ष १८ ) के तारतम्य में है । इसकी शैली, सम्बोधनशीलता, प्रस्तुति, विवरण तथा विषयवस्तु लगभग वही है। उसी प्रकार का दान बौद्ध भिक्षुओं के लिए इस ब्राह्मण-धर्मानुयायी शासक द्वारा दिया गया है। अतः जो विशेषताएँ पूर्व अभिलेख में देखी गयी है वे सभी विशेषताएँ धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि इसमें भी हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वह दान ग्राम की भूमि का था और यह दान नगर की भूमि का है। इसे ग्राम और नगर क्रमशः शासनिक इकाई ज्ञात होते हैं।

तिथि का अन्तर इस अभिलेख में है । पूर्ववर्ती अभिलेख उसके शासन वर्ष १८ का जहाँ उल्लेख करता है वहाँ यह वर्ष २४ का उल्लेख करता है। इससे स्पष्ट है कि पूर्व अभिलेख के अनुसार शक संवत् में उल्लिखित यह तिथि ई० १३० की बोधक है क्योंकि पहले सन्दर्भ में देखा गया है कि नहपान की अन्तिम ज्ञात तिथि ४६ शक संवत् के अनुसार — ७८ ई० + ४६ = १२४ ई० है। उससे १८ वर्ष पूर्व जैसा पूर्व अभिलेख में उल्लिखित है, गौतमीपुत्र की प्रथम ज्ञात तिथि है । अतः १२४ – १८ = १०६ ई० में वह सिंहासनारूढ़ हुआ था। इसकी अन्तिम ज्ञात तिथि इस अभिलेख की २४ = १०६ + २४ = १३० ई० है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस शासक ने ने २४ वर्ष शासन किया था जो १०६ से १३० ई० के मध्य था।

यहाँ सातवाहनों के शासन व्यवस्था का भी कुछ ज्ञान मिलता है। कुछ अधिकारियों का उल्लेख यहाँ किया गया है; यथा -अमच्च, महास्वामी और प्रतिहार। साथ ही भूमिदान देने, दानपत्र के लिखे जाने तथा उस राजाज्ञा के कार्यान्वयन तक की सारी प्रक्रिया का विवरण भी इस अभिलेख से ज्ञात होता है।

गौतमीपुत्र शातकर्णि का नासिक गुहा अभिलेख ( १८वाँ वर्ष )

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