भूमिका
दशरथ के गुहा अभिलेख बिहार के जहानाबाद जनपद में नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाओं में अंकित हैं। बराबर और नागार्जुनी नामक जुड़वा पहाड़ियों को काटकर मौर्यकाल में गुफाएँ बनवाकर आजीवक सम्प्रदाय को दान में दी गयी थी। इन गुफाओं का निर्माण सम्राट अशोक और उनके पौत्र दशरथ ने करवाया था। इसमें इन दोनों सम्राटों के अभिलेख भी मिलते हैं।
बराबर की पहाड़ी में चार गुफाओं का निर्माण कराया गया जबकि नागार्जुनी की पहाड़ी को काटकर तीन गुहाओं का निर्माण कराया गया।
- बराबर पहाड़ी की गुफाएँ — सुदामा गुफा, कर्ण-चौपड़ गुफा, विश्व-झोपड़ी गुफा और लोमश ऋषि की गुफा।
- नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाएँ — गोपिका गुफा, वहियक गुफा और वडथिका गुफा।
दशरथ के गुहा अभिलेख : संक्षिप्त परिचय
नाम :- दशरथ के नागार्जुनी गुहालेख ( Dashratha’s Nagarjuni Cave Inscriptions ) या दशरथ के गुहा अभिलेख ( Dashratha’s Cave Inscrioptins )
स्थान :- नागार्जुनी पहाड़ी, जनपद जहानाबाद, बिहार
भाषा :- प्राकृत
लिपि :- प्राकृत
समय :- मौर्यकाल
विषय :- आजीवक सम्प्रदाय को गुहादान
दशरथ के गुहा अभिलेख का मूलपाठ
इन अभिलेखों की संख्या तीन है जो निम्नवत हैं –
पहला गुहालेख : मूलपाठ
१ — वहियक [ । ] कुभा दषलथेन देवानांपियेना
२ — आनन्तलियं अभिषितेना [ आजीवकेहि ]१
३ — भदन्तेहि२ वाष-निषिदियाये निषिठे
४ — आ-चन्दम-षूलियं [ । ]
- आजीवकेहि :- यह शब्द प्रायः सभी गुहा अभिलेखों में मिटे पाये जाते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि मौखरि शासक अनन्तवर्मा के समय में, जब इन गुफाओं में कृष्ण और शिव की मूर्तियों की स्थापना की गयी, तब इस शब्द को मिटाया गया होगा।१
- भदन्तेहि :- कुछ विद्वानों ने भदन्त को ‘भवद्भय’ के रूप में ग्रहण किया है।२
हिन्दी अनुवाद
वहियक गुफा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषिक्त होने के तत्काल बाद ( आनन्तर्य, बिना अन्तर ) आजीवक ( भिक्षुओं ) के निषिद्धवास ( वर्षाकाल में जब भिक्षु बाहर नहीं जा सकते थे ) के लिए बनवाया। जब तक सूर्य-चन्द्र रहें।
दूसरा गुहालेख : मूलपाठ
१ — गोपिका कुभा दषलथेना देवानंपि-
२ — येना आनन्तलियं अभिषितेना आजी-
३ — विके [ हि ] भदन्तेहि वात-निषिदियाये
४ — निसिठा आ-चन्दम-षूलियं [ । ]
अनुवाद
गोपिका गुहा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषेक होने के बाद ही आजीवक भदन्तों ( भिक्षुओं ) के निषिद्ध-वास के लिए बनवाया। जब तक चन्द्र-सूर्य रहें।
तीसरा अभिलेख : मूलपाठ
१ — वडथिका कुभा दषलथेना देवानं-
२ — पियेना आनन्तलियं अभिषेतना [ आ ]-
३ — [ जी ] विकेहि भदन्तेहि वा [ ष-निषि ] दियाये
४ — निषिठा आ चन्दम-षूलियं [ ॥ ]
अनुवाद
वडथिका गुहा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषेक होने के बाद ही आजीवक भिक्षुओं के निषिद्धवास के लिए बनवाया। जब तक चन्द्र-सूर्य रहें।
टिप्पणी
इन गुहा अभिलेखों में अशोक के गुहा अभिलेखों की भाँति ही आजीविकों का उल्लेख है। इस अभिलेख में मात्र आजीविकों का उल्लेख न होकर आजीविकेहि भदन्तेहि है। इसका अर्थ हमने आजीवक भिक्षु किया है; किन्तु इस बात की भी सम्भावना प्रकट की जा सकती है। कि भदन्त का तात्पर्य यहाँ बौद्ध भिक्षुओं से है और उक्त पद का तात्पर्य आजीविक और बौद्ध दोनों से है। लयण दोनों सम्प्रदायों के भिक्षुओं के वर्षावास के लिए बनवाया गया था।