गुण्टूपल्ली अभिलेख

भूमिका

गुण्टूपल्ली अभिलेख आंध्र प्रदेश में पश्चिमी गोदावरी जनपद ( एलुरू ) के गुण्टूपल्ली नामक ग्राम में स्थित एक प्राचीन ध्वस्त मण्डप के चार स्तम्भों पर समान रूप से अंकित प्राप्त हुआ है। ब्राह्मी लिपि का यह अभिलेख एक स्तम्भ पर पाँच और शेष तीन पर छह पंक्तियों में उत्कीर्ण है।

गुण्टूपल्ली अभिलेख : संक्षिप्त परिचय

नाम :- गुण्टूपल्ली अभिलेख ( Guntupalli Inscription )

स्थान :- पश्चिमी गोदावरी जिला ( एलुरू ), आंघ्र प्रदेश

भाषा :- प्राकृत

लिपि :- ब्राह्मी

समय :- मौर्योत्तर काल

विषय :- मण्डप दान के सम्बन्ध में

गुण्टूपल्ली अभिलेख : मूलपाठ

१. महाराजस कलिगाधिपतिस

२. महिसकाधिपतिस म-

३. हामेखवाहनस-

४. सिरि सदस-लेख-

५. कस चुलगोमस मंड-

६. पो दानं [ । ]

हिन्दी अनुवाद

कलिंगाधिपति माहिषकाधिपति महामेख ( घ ) वाहन वंश के महासद के लेखक चुलगोम का मण्डप दान।

गुण्टूपल्ली अभिलेख : विश्लेषण

अपने सामान्य रूप में गुंटूपल्ली अभिलेख एक दान की घोषणा करता है। यह दान सम्भवतः उसी मण्डप का था जिसके स्तम्भों पर यह उत्कीर्ण पाया गया है। इस अभिलेख में प्रयुक्त ‘महाराज कलिंगाधिपति महामेघवाहन’ विरुदों का प्रयोग बहुचर्चित हाथीगुम्फा अभिलेख में खारवेल के लिए हुआ है। इस अभिलेख में वर्णित खारवेल के अभियानों के परिप्रेक्ष्य में लेख के ‘सिरि-सदस लेखक’ का अनुवाद सन्देश लेखक किया गया है और अनुमान प्रकट किया है कि इस अभिलेख में भी ‘महाराज कलिंगाधिपति महामेघवाहन’ का तात्पर्य खारवेल से है।

वस्तुत: यह अभिलेख खारवेल का न होकर श्रीसद नामक शासक के काल का है। इस तथ्य की ओर हमारा ध्यान उस समय गया जब आन्ध्र प्रदेश के गुण्टूर जिले में स्थित अमरावती के निकट वड्डमानु नामक ग्राम में स्थित पुरावशेष के उत्खनन से ‘सद’ नामान्त अनेक शासकों के सिक्के प्रकाश में आये। श्रीसद इसी वंश का आदि पुरुष रहा होगा ।

इस अभिलेख में इसे महामेघवाहन कहा गया है। इससे यह ध्वनित होता है कि श्रीसद का निकट सम्बन्ध हाथीगुम्फा अभिलेख में उल्लिखित खारवेल से था। यह सदवंश उसी से सम्बन्धित था यह बात एक अन्य अभिलेख से भी ज्ञात होता है। जो एक अन्य सदवंशी शासक का है और निकटवर्ती क्षेत्र बेल्लूपुर से प्राप्त हुआ है। इसमें उसे ऐरवंशी ( ऐरण ) कहा गया है और हाथीगुम्फा अभिलेख में खारवेल को भी ऐरण महाराज बताया गया है।

गुण्टूपल्ली अभिलेख में श्रीसद को कलिंगाधिपति और महिषकाधिपति कहा गया है। कलिंग की पहचान में कोई कठिनाई नहीं है। उड़ीसा के समुद्रतटवर्ती क्षेत्र को कलिंग कहा जाता है। खारवेल वहाँ का शासक था। अतः यह प्रदेश श्रीसद को खारवेल के बाद ही किसी समय प्राप्त हुआ होगा; किन्तु कलिंगवाले प्रदेश से अब तक ऐसा प्रमाण नहीं प्राप्त हुआ है जिससे इसके इस कथन की पुष्टि हो सके। फिरभी, कलिंग के इतिहास की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सूचना है।

दूसरे विरुद ‘महिषकाधिपति’ से ज्ञात होता है कि श्रीसद कलिंग के अतिरिक्त महिषक का भी शासक था। माहिषक का उल्लेख वायुपुराण में महाराष्ट्र और कलिंग के साथ दक्षिणी जनपद के रूप में हुआ है। रामायण में उसे विदर्भ और ऋषिक के साथ दक्षिण देश बताया गया है। महाभारत में माहिषक के अनेक उल्लेख हैं। भीष्मपर्व में उसका उल्लेख द्रविड़ और केरल के साथ दक्षिण देश के रूप में हुआ है। कर्ण और अनुशासनपर्व के उल्लेखों में वह कलिंग और द्रविड़ के साथ जुड़ा हुआ है। अश्वमेघपर्व में अर्जुन द्वारा द्रविड़ और आन्ध्र के साथ माहिषक के पराजित करने की चर्चा है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि माहिषक कलिंग, द्रविड़ और महाराष्ट्र से संवृत प्रदेश था। इस प्रकार हम उसे आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी घाटी में स्थित उस भू-भाग का अनुमान कर सकते हैं जहाँ से सद वंश के सिक्के और अभिलेख प्राप्त हुए हैं। दूसरे शब्दों में कृष्णा, गुण्टूर और पश्चिमी गोदावरी के संयुक्त भू-भाग को प्राचीन काल में माहिषक कहते रहे होंगे।

इस अभिलेख को प्रकाशित करते हुए आर० सुब्रह्मण्यम् ने काशीप्रसाद जायसवाल के इस कथन की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि पृथुण्ड, पृथु-अण्ड है और यह नाम कदाचित नगर की बनावट के कारण पड़ा था। साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि संस्कृत पिथु-अण्ड का तमिल समानार्थी शब्द गुड्डूपल्ली है और यह गुड्डूपल्ली ही गुण्टूपल्ली बन गया जान पड़ता है। इस प्रकार वे गुण्टूपल्ली की पहचान हाथीगुम्फा में उल्लिखित पिथुण्ड से करते हैं।

यदि गुण्पल्ली ही पिथुण्ड है तो इस लेख का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। इस पहचान के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सातकर्णि का असिक ( या मूषिक ) नगर, जो कलिंग से पश्चिम था, निश्चय ही गुण्टूपल्ली के उत्तर में रहा होगा, उसे वहीं खोजना चाहिए।

जिस मण्डप के स्तम्भों पर यह अभिलेख अंकित है, उसके दाता चुलगोम ने अपने को श्रीसद का लेखक बताया है। यह प्रशासन सम्बन्धी एक नयी सूचना ज्ञात होती है। जिस प्रकार मुगल शासनकाल में राज्य की ओर से प्रमुख नगरों में अखबार-नवीस नियुक्त किये जाते थे, जो वहाँ की घटनाओं और गतिविधियों की सूचना नियमित रूप से पादशाह के पास भेजते थे, उसी प्रकार की व्यवस्था सम्भवतः प्राचीन काल में भी रही होगी। राज्य की ओर से प्रमुख स्थानों पर लेखक रहा करते होंगे।

हाथीगुम्फा अभिलेख

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