भूमिका
कृष्ण का नासिक गुहा अभिलेख महाराष्ट्र के नासिक जनपद में स्थित एक लयण ( गुफा ) के दाहिनी ओर की खिड़की के ऊपर प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में अंकित है। नासिक में एक पहाड़ी है जिसमें लयणों ( गुफाओं ) की एक शृंखला है जिसको पाण्डुलेण कहा जाता है।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- कृष्ण का नासिक गुफा अभिलेख या कृष्ण का नासिक लयण अभिलेख
स्थान :- महाराष्ट्र प्रांत में गोदावरी नदी तट पर स्थित नासिक जनपद में
भाषा :- प्राकृत
लिपि :- ब्राह्मी
समय :- प्रथम शताब्दी ई०पू० का उत्तरार्ध, कन्ह या कृष्ण का शासनकाल
विषय :- श्रमणों के लिए लयण बनवाने का विवरण
कृष्ण का नासिक गुहा अभिलेख : मूलपाठ
१. सादवाहन-कु [ ले ] कन्हे राजनि नासिककेन
२. समणेन महामातेण लेणं कारितं [ । ]
हिन्दी अनुवाद
सातवाहन कुल के कृष्ण राजा [ के शासन काल में ] नासिक नगर स्थित श्रमणों के महामात्र [ का बनवाया हुआ ] लयण।
कृष्ण का नासिक लयण अभिलेख : विश्लेषण
इस अभिलेख में सातवाहन कुल के राजा कृष्ण ( कन्ह ) का उल्लेख है। नाणेघाट से प्राप्त अभिलेख (अभिलेख ३६) में सिमुक सातवाहन का उल्लेख हुआ है। पुराणों में सिमुक और कृष्ण दोनों नामों का उल्लेख आन्ध्र अथवा आन्ध्र भृत्य कहे जानेवाले शासकों के रूप में हुआ है। इससे प्रकट होता है कि अभिलेखों में जिसे सातवाहन कहा गया है, उसे ही पुराण ने आन्ध्र अथवा आन्ध्र नृत्य के नाम से पुकारा है।
पुराणों के अनुसार कृष्ण सिमुक का भाई और उसका उत्तराधिकारी था और उसने १८ वर्ष तक शासन किया था।
बुहर के मतानुसार यह अभिलेख ई०पू० दूसरी शती के आरम्भ काल ( अन्तिम मौर्य अथवा प्रारम्भिक शुंगकाल ) का है। पर उनका यह मत अनेक विद्वानों को ग्राह्य नहीं है। रामप्रसाद चन्दा ने नाणेघाट के अभिलेखों के अक्षरों का विवेचन करते हुए बताया है कि वे अभिलेख इस काल के बहुत बाद के हैं। उस अभिलेख में जिस सिमुक सातवाहन का उल्लेख है वह कृष्ण का भाई और पूर्ववर्ती था। अतः यह अभिलेख उससे पूर्व का नहीं हो सकता।
दिनेशचन्द्र सरकार ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि स्वयं इस अभिलेख के कुछ अक्षर कोणात्मक ( angular ) है, जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि यह अभिलेख ई०पू० प्रथम शती के उत्तरार्ध से पूर्व का नहीं हो सकता।
इसके अतिरिक्त यह भी द्रष्टव्य है कि जिस लयण पर यह अभिलेख अंकित है, उसके सम्बन्ध में कला-मर्मज्ञों का मत है कि वह ई०पू० प्रथम शती के उत्तरार्ध का होगा।
इस प्रकार इस लेख के आधार पर सातवाहनों को ई०पू० दूसरी शती में नहीं रखा जा सकता। उनका समय ई० पू० प्रथम शती के उत्तरार्ध में ही रखना होगा।
इतिहासकारों के अनुसार सातवाहन नरेश शिमुक या सुशर्मा का शासनकाल ६० ई०पू० से ३७ ई०पू० माना गया है। कान्ह ( कृष्ण ) शिमुक का अनुज था। कान्ह शिमुक के बाद शासक बना और उसका शासन १८ वर्ष रहा। इस तरह कृष्ण का शासनकाल ३७/३६ ई०पू० से लेकर १९/१८ ई०पू० तक माना गया है। अतः यह अभिलेख पहली शताब्दी ई०पू० के उत्तरार्ध का है।