भूमिका
स्कंदगुप्त का कहौम स्तम्भ-लेख उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जनपद में कहौम नामक ग्राम में स्थापित एक स्तम्भ है। इस स्तम्भ पर पाँच तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं और यह लेख अंकित है। कहौम को कहाँव और कहाऊँ ( Kahaon ) भी लिखा जाता है।
उत्तर प्रदेश का सर्वेक्षण करते समय १८०६ और १८१६ ई० के बीच डॉ० फ्रांसिस बुकानन (हैमिलटन) [ Dr. Francis Buchanan ( Hamilton) ] ने इस लेख को देखा था। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी उस रिपोर्ट में किया है जिसे उन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालक मण्डल के सम्मुख प्रस्तुत किया था। इस हस्तलिखित रिपोर्ट के आधार पर १८३८ ई० में माण्टगोमरी मार्टीन ( Montgomery Martin ) ने अपनी पुस्तक ‘ईस्टर्न इण्डिया’ ( Eastern India ) में इस लेख का उल्लेख किया और उसकी छाप प्रकाशित की। उसी वर्ष जेम्स प्रिंसेप ( James Prinsep ) ने भी अंगरेजी अनुवाद सहित इसका पाठ प्रकाशित किया। १८६० ई० में फिट्ज एडवर्ड हाल ( Fitz Edward Hall ) ने इसके प्रथम श्लोक को अनुवाद सहित प्रकाशित किया। १८७१ ई० में एलेक्जेंडर कनिंगहम ने और १८८१ ई० में भगवानलाल इन्द्रजी ने अपने पाठ प्रकाशित किये। फिर जे० एफ० फ्लीट ने उसका सम्पादन किया।
संक्षिप्त परिचय
नाम :- स्कंदगुप्त का कहौम स्तम्भ-लेख [ Kahaum Stone Pillar Inscription of Skandgupta ] या प्राचीन दिगम्बर जैन स्तम्भ , कहाऊँ [ Ancient Digambar Jain Pillar, Kahaon ]
स्थान :- कहौम या कहाँव या कहाऊँ, देवरिया जनपद; उत्तर प्रदेश।
भाषा :- संस्कृत
लिपि :- उत्तरवर्ती ब्राह्मी
समय :- गुप्त सम्वत् १४१ ( ४६० ई० ), स्कंदगुप्त का शासनकाल
विषय :- जैन मूर्ति और स्तम्भ के स्थापना की विज्ञप्ति।
मूलपाठ
१. सिद्ध[म्] [।]
यस्योपस्थान भूमिर्नृपति-शत-शिरः-पात-वातावधूता
२. गुप्तानां वन्शजस्य प्रविसृत-यशसस्तस्य सर्वोत्तमर्द्धः
३. राज्ये शक्रोपमस्य क्षितिप-शत-पतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्ते
४. वर्षे त्रिन्शद्दशैकोत्तरक-शततमे ज्येष्ठ-मासि प्रपत्रे [॥ १]
५. ख्याते(ऽ) स्मिन्ग्राम-रत्ने ककुभ इति जनैस्साधु-संसर्ग-पूते [।]
६. पुत्तो यस्सोमिलस्य प्रचुर-गुण-निधेर्भट्टिसोमो महा[त्मा] [।]
७. तत्सूनू रुद्रसोमः पृथुल-मति-यशा व्याघ्र इत्यन्य-संज्ञो ।
८. मद्रस्तस्यात्मजो(ऽ) भूद्विज-गुरु-यतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः [॥ २]
९. पुण्य-स्कन्धं स चक्क्रे जगदिदमखिलं संसरद्वीक्ष्य भीतो
१०. श्रोयोर्त्थं भूत-भूत्यै पथि नियमवतामर्हतामादिकर्त्तृन् [I]
११. पञ्चेन्द्रां स्थापयित्वा धरणिधरमयान्सन्निखातस्ततोऽयम्
१२. शैल-स्तम्भः सुचारुगिरिवर-शिखराग्रोपमः कीर्ति कर्ता [॥ ३]
हिन्दी अनुवाद
सिद्धम् जिसकी उपस्थान-भूमि शत नृपतियों के सिर झुकाने से उत्पन्न वायु से हिल उठती है, जिसका वंश गुप्त है, जिसका यश जगत्-विख्यात है, जो समृद्धि में सर्वोत्तम है, जो शक्रोपम (इन्द्र-तुल्य) है, जो शत क्षितिपति है, उस स्कन्दगुप्त के शान्ति [पूर्ण शासन के] वर्ष एक सौ एकतालीस का यह ज्येष्ठ मास गाँव का यह रत्न ककुभ नाम से प्रख्यात है और साधु-संसर्ग से पवित्र है। इस ग्राम में सोमिल का पुत्र प्रचुर-गुणनिधि महात्मा भट्टिसोम हुआ उसका पुत्र प्रथुल-मति और यशवाला रुद्रसोम हुआ, जिसे लोग व्याघ्र नाम से भी पुकारते थे। उसका पुत्र मद्र हुआ, वह ब्राह्मण, गुरुजनों और साधु-सन्तों के प्रति श्रद्धाभाव रखता था। यह देखकर कि यह संसार सतत परिवर्तनशील है, भयभीत होकर उसने अपने लिए अधिकाधिक पुण्य बटोरने का प्रयास किया[और] समस्त जगत् के हितार्थ अर्हत् पद के आदि कर्ता पाँच इन्द्रों (जितेन्द्रों) की मूर्तियाँ उत्कीर्ण कराकर इस शैल-स्तम्भ को भूमि पर खड़ा किया जो हिमालय की चोटी की तरह दिखाई देता है।
विश्लेषण
कहौम स्तम्भ-लेख से निम्न ऐतिहासिक महत्त्व की बातें ज्ञात होती हैं :-
- यह लेख उस शैल-स्तम्भ के स्थापना की घोषणा है, जिस पर वह अंकित है।
- इस स्तम्भ के शीर्ष पर एक तथा चौपहल तल के चारों ओर एक-एक तीर्थंकर की प्रतिमा उत्कीर्ण है। ये हैं — आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी।
- इस लेख से ज्ञात होता है कि कहौम ( कहाँव / कहाऊँ ) ग्राम का, जहाँ यह स्तम्भ है, प्राचीन नाम कुकुभ था।
- इस लेख की पंक्ति संख्या ३-४ में आये ‘स्कन्दगुप्तस्य शान्ते वर्षे’ का तात्पर्य अनेक विद्वानों ने स्कन्दगुप्त के शान्त (मृत्यु) होने के पश्चात् अथवा स्कन्दगुप्त का [साम्राज्य] शान्त (समाप्त) होने पर लिया था और इसे उसके मृत्यूपरान्त अथवा उसके शासन के समाप्त होने के बाद का लेख अनुमान किया है। परन्तु भाऊ दाजी ने इसे स्कन्दगुप्त के शान्तिपूर्ण शासनकाल के अर्थ में ग्रहण किया और उसका अनुमोदन फ्लीट ने भी किया। यही अर्थ तर्कसंगत भी प्रतीत होता है।