भूमिका
तृतीय बृहद् शिलालेख ( Third Major Rock Edict ) सम्राट अशोक के चतुर्दश बृहद् शिलालेखों में से तीसरा लेख है। सम्राट अशोक द्वारा भारतीय उप-महाद्वीप में ‘आठ स्थानों’ पर ‘चौदह बृहद् शिलालेख’ या चतुर्दश बृहद् शिला प्रज्ञापन ( Fourteen Major Rock Edicts ) स्थापित करवाये गये। ‘गिरनार संस्करण’ इसमें से सबसे सुरक्षित है। इसलिए अधिकतर विद्वानों ने इसका ही प्रयोग किया है। इसके साथ ही यदा-कदा अन्य संस्करणों का भी उपयोग किया गया है।
तृतीय बृहद् शिलालेख : संक्षिप्त परिचय
नाम – अशोक का तृतीय बृहद् शिलालेख ( Ashoka’s Third Major Rock-Edict )
स्थान – गिरनार, जूनागढ़ जनपद, गुजरात।
भाषा – प्राकृत।
लिपि – ब्राह्मी।
समय – अशोक के सिंहासनारोहण के १२ वर्ष के बाद।
विषय – युक्त, राजुक, प्रादेशिक को अपने-अपने कार्यक्षेत्र में प्रत्येक पाँचवें वर्ष जा-जाकर उपदेश देने का निर्देश।
मूलपाठ
१ – देवानं प्रियदसि राजा एवं आह [ । ] द्वादसवासाभिसितेन मया इदं आञपितं [ । ]
२ – सर्वत विजिते मम युता च राजुके प्रादेसिके च पंचसु पंचसु वासेसु अनुसं—
३ – यानं नियातु एतायेव अथाय इमाय धंमानुसस्टिय यथा अञा—
४ – य पि कंपाय [ । ] साधु मातिर च पितरि च सुस्रूसा मिता-संस्तुत-ञातीनं ब्राह्मण—
५ – समणानं साधु दानं प्राणानं साधु अनारंभो अपव्ययता अपभांडता साधु [ । ]
६ – परिसा पि युते आञपयिसति गणनायं हेतुतो च व्यंजनतो च [ । ]
संस्कृत पाठ
देवानांप्रियः प्रियदर्शी राजा एवमाह। द्वादशवर्षाभिषिक्तेन मया इदमाज्ञप्तम्। सर्वत्र विजिते मम युक्ताः राजुकाः प्रादेशिकाश्च पञ्चसु पञ्चसु वर्षेषु अनुसंयानाय निर्वान्तु, एतस्मै अर्थाय अस्मै धर्मानुशस्तये यथा अन्यस्मा अपि कर्मणे। साधुः मातुपित्रयोः शुश्रूषा। मित्रसंस्तुतज्ञातीनां च ब्राह्मण श्रमणानां च साधु दानम्। प्राणानामनालम्भः साधू। अपव्ययता अल्पभाण्डता साधु। परिषदोऽपि च युक्तान् गणने आज्ञापयिष्यन्ति हेतुतश्च वयञ्जनतश्च।
हिन्दी अनुवाद
१ – देवों का प्रिय प्रियदर्शी राजा इस प्रकार कहता है – बारह वर्षों से अभिषिक्त हुए मुझ द्वारा यह आज्ञा गयी—
२ – मेरे विजित ( राज्य ) में सर्वत्र युक्त, राजुक एवं प्रादेशिक पाँच-पाँच वर्षों में जैसे अन्य [ शासन सम्बन्धित ] कार्यों के लिए दौरा करते हैं, वैसे ही
३ – इस धर्मानुशासन के लिए भी अनुसंयान ( दौरे ) पर निकलें [ ताकि देखें ]
४ – माता व पिता की शुश्रूषा अच्छी है; मित्रों प्रशंसितों ( परिचितों ), सम्बन्धियों और ब्राह्मणों [ और ]
५ – श्रमणों को दान देना अच्छा है। प्राणियों ( जीवों ) को न मारना अच्छा है। थोड़ा व्यय करना एवं थोड़ा संचय करना अच्छा है।
६ – परिषद् भी युक्तियों को [ इसके ] हेतु ( कारण, उद्देश्य ) एवं व्यंजन ( अर्थ ) के अनुसार गणना ( हिसाब जाँचने, आय-व्यय-पुस्तक के निरीक्षण ) की आज्ञा देगी।
धाराप्रवाह हिन्दी रूपान्तरण
देवताओं का प्रिय, प्रियदर्शी राजा ऐसा कहता है — अपने राज्याभिषेक के १२वें वर्ष बाद मैंने यह आदेश दिया — मेरे राज्य में सर्वत्र युक्त, राजुक एवं प्रादेशिक प्रति ५वें वर्ष अन्य कार्यों के साथ-साथ यह धर्मानुशासन बताने के लिए भी दौरे पर जायें — माता व पिता की शुश्रूषा करना अच्छा है। मित्रों, परिचितों एवं सम्बन्धियों, ब्राह्मणों व श्रमणों के प्रति उदारता अच्छी है, अल्प व्यय तथा अल्प संचय अच्छा है। परिषद युक्तों को इसका, शब्दों एवं भावनाओं दोनों के अनुसार ब्यौरा रखने की अनुमति दे।