भूमिका
प्रथम बृहद् शिलालेख ( First Major Rock Edict ) सम्राट अशोक के चतुर्दश बृहद् शिलालेखों में से पहला लेख है। सम्राट अशोक के भारतीय उप-महाद्वीप में ‘आठ स्थानों’ से ‘चौदह बृहद् शिलालेख’ या चतुर्दश बृहद् शिला प्रज्ञापन ( Fourteen Major Rock Edicts ) मिलते हैं। इसमें से ‘गिरनार संस्करण’ सबसे सुरक्षित है। इसीलिए अधिकतर विद्वानों ने इसका ही प्रयोग किया है। साथ ही यत्र-तत्र अन्य संस्करणों का भी उपयोग किया गया है।
संक्षिप्त परिचय
नाम – अशोक का प्रथम बृहद् शिला अभिलेख या पहला बृहद् शिला प्रज्ञापन या प्रथम बृहद् शिलालेख ( First Major Rock-Edict )।
स्थान – गिरनार, जूनागढ़ जनपद, गुजरात।
भाषा – प्राकृत।
लिपि – ब्राह्मी।
समय – अशोककालीन ( २७२ – २३२ ई०पू० )।
विषय – हिंसा और समाज का विरोध, पाकशाला और व्यक्तिगत जीवन।
मूलपाठ
१ – इयं धंम-लिपी देवानंप्रियेन
२ – प्रि यदसिना राञा लेखा पिता ( । ) इध न किं—
३ – चि जीवं आरभित्पा प्रजूहितव्यं ( । )
४ – न च समाजो कतव्यो ( । ) बहुकं हि दोसं
५ – समाजम्हि पसति देवानंर्पिप्रियो प्रियदसि राजा ( । )
६ – अस्ति पि तु एकचा समाजा साधु-मता देवानं—
७ – प्रियस प्रियदसिनो राञो ( । ) पुरा महानसम्हि१
८ – देवानंर्पि ( प्र ) यस र्पि ( प्रि ) यदसिनो राञो अनुदिवसं ब-
९ – हूनि प्राण-सत-सहस्रानि आरभिसु सूपाथाय ( । )
१० – से अज यदा अयं धंमलिपी लिखित ती एवं प्रा—
११ – णा आरभरे सूपाथाय द्वो मोरा एको मगो सो पि
१२ – मगो न ध्रुवो ( । ) एते पित्री प्राणा पछा न आरभिसरे ( ॥ )
- १ सरकार ने इसको ‘मेहानसेम्हि’ माना है।
संस्कृत रुपान्तरण
इयं धर्मलिपिः देवानांप्रियेण प्रियदर्शिना राज्ञा लेखिता। इह न कश्चित् जीवः आलभ्य प्रतोतव्यः। न च समाजः कर्तव्यः। बहुकं हि दोषं समाजे देवानांप्रियः प्रियदर्शी राजा पश्यति। संति अपि या एकत्याः समाजाः साधुमताः देवानांप्रियस्य प्रियदर्शिनाः राज्ञः। पुरा महानसे देवानं प्रियस्य प्रियदर्शिनः राज्ञः अनुदिवसं बहूनि प्राणशतसहस्राणि आल्भ्यन्त सूपार्थाय। तत् अद्य यथा इयं धर्मलिपिः लिखिता त्रयः एव प्राणाः आलभ्यन्ते सूपार्थाय-द्वौ मयूरौ, एकः मगः१। सोपि मगः न ध्रुवः। एतेऽपि त्रयः प्राणाः पश्चात् न आलप्स्यन्ते॥
हिन्दी अनुवाद
१ व २ – यह धम्मलिपि देवानांप्रिय ( देवताओं के प्रिय ) प्रियदर्शी राजा ( अर्थात् अशोक ) द्वारा लिखवायी गयी। यहाँ कोई भी
३ – जीव बलि के लिए नहीं मारा जायेगा।
४ – न कोई समाज किया जायेगा। बहुत-सा दोष
५ – समाज में देवानंप्रिय प्रियदर्शी राजा देखता है।
६ व ७ – फिर भी निश्चित प्रकार के समाज को ही देवानंप्रिय प्रियदर्शी राजा उचित मानता है। पहले भोजनालय में
८ व ९ – देवानंप्रिय प्रियदर्शी के प्रत्येक दिन सहस्रों प्राणी सूप ( व्यंजन ) के लिए मारे जाते थे।
१० व ११ – पर आज से जब से यह धम्मलिपि लिखवायी गयी तब से तीन प्राणी ही — दो मोर एवं एक मग ( हरिण / मृग ) व्यंजन के लिए मारे जाते हैं।
१२ – इसमें भी मग का मारना निश्चित नहीं है। पीछे ये तीन जीव भी नहीं मारे जायेंगे।
हिन्दी में धारा प्रवाह अनुवाद
यह धर्मलिपि देवताओं के प्रिय, प्रियदर्शी राजा द्वारा लिखवायी गयी। यहाँ कोई प्राणी मारकर बलि न दिया जाय, न कोई समाज किया जाय, क्योंकि देवताओं का प्रिय राजा समाज के बुरा मानता है। परन्तु कुछ समाज ऐसे हैं जिन्हे देवताओं का प्रिय राजा अच्छा मानता है।
पूर्व में देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी के भोजनालय के लिये सहस्स्रों प्राणियों की हत्या की जाती थी, परन्तु अब जबसे यह धर्मलिपि लिखवायी गयी, भोजनालय के लिये केवल तीन प्राणी ही मारे जाते है — दो मयूर और एक मृग। परन्तु अब हरिण भी प्रत्येक दिन नहीं मारा जाता है। भविष्य में इन तीन जीवों की हत्या नहीं की जायेगी।
सोहगौरा अभिलेख या सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख